सामना संवाददाता / मुंबई
येन केन प्रकारेण देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ही ली, परंतु इस शपथ के पीछे लंबी कहानी है, जिसमें एकनाथ शिंदे का ड्रामा भी है और विनोद तावडे की कटिंग भी है। इसमें डर भी है और खटपट का खौफ भी। यदि सभी कुछ योजना के अनुरूप नहीं हुआ होता तो शायद महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर देवेंद्र फडणवीस शपथ नहीं ले पाते। ५ दिसंबर को मुंबई के आजाद मैदान में राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने से पहले तक देवेंद्र फडणवीस की धड़कनें बढ़ी हुई थीं।
राजनीतिक गुप्तचरों की मानें तो इसके लिए लंबी योजना बनाई गई थी, जिसके पहले अध्याय के तहत विनोद तावडे को वसई में ट्रैप कराया गया था, क्योंकि उस वक्त तक भाजपा के संभावित मुख्यमंत्रियों के चेहरे के तौर पर तावडे का नाम सबसे आगे चल रहा था। तावडे की प्रतिमा को मलिन किए बिना उन्हें दरकिनार करना संभव नहीं था। इसलिए गुप्तचर मानते हैं कि भाजपाई खेमे से तावडे की वसई यात्रा की खबर लीक कराई गई, बावजूद इसके चुनावी नतीजों के बाद तावडे का ही सेंसेक्स शीर्ष पर बना रहा। भाजपा के आलाकमान द्वय तावडे के ही पक्ष में थे। इसके कारण अनेक हैं, राजनैतिक भी और व्यक्तिगत भी। इसलिए उन्हें महाराष्ट्र का जातिगत गणित साधने के लिए मराठा चेहरे की दरकार थी, जो तावडे के रूप में पूरी भी हो रही थी। गुप्तचर दावा करते हैं कि जब इसकी भनक तावडे विरोधी खेमे को लगी तो उन्होंने एकनाथ शिंदे को बतौर मोहरा इस्तेमाल किया। उन शिंदे को, जिन्हें बखूबी ज्ञात था कि उनकी झोली में मुख्यमंत्री पद ठीक उसी तरह टपका है, जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है। वे जानते थे कि वे मुख्यमंत्री पद के लिए किसी भी लिहाज से दावेदार नहीं हैं, फिर भी कई दिनों तक उनके रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहा और आलाकमान को लगातार इस भ्रम में बनाए रखा गया कि यदि महायुति के घटक दलों को बांधे रखना है तो फडणवीस से बेहतर ‘बॉन्डिंग एजेंट’ कोई नहीं हो सकता है।
भाजपा का यही ‘नया इतिहास’ है
भारी बहुमत के बाद भी विश्व की ‘सबसे बड़ी पार्टी’ भाजपा लगभग दो सप्ताह तक मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर सहमत नहीं हो सकी। वह भी तब, जब उसके पास भारी-भरकम संख्या बल था। इसका कारण शिंदे तो थे ही, साथ ही विनोद तावडे भी थे। जब चेहरा तय नहीं हुआ तो विपक्ष ने भारी दबाव बनाया। उस पर विधानसभा की अवधि भी समाप्त हो गई। आखिर तमाम तरह के दबावों के बीच तावडे के नाम को काटकर फडणवीस के नाम को फाइनल किया गया। हालांकि, राजनैतिक गुप्तचर दावा करते हैं कि राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित किए जाने तक फडणवीस का दिल फड़फड़ा रहा था कि कहीं आखिरी क्षण पर भी पासा पलट न जाए क्योंकि भाजपा का यही ‘नया इतिहास’ है। योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, रमण सिंह जैसे कई चेहरे इसके शिकार हैं। कई कतार में हैं क्योंकि शिकारियों की फितरत अभी बदली नहीं है। उनकी नजर अब की मुख्यमंत्रियों से हटी नहीं है। आगे देखेंगे होता है क्या? ै