अनिल तिवारी
इन दिनों देश में ‘लाडली बहन योजना’ के बड़े चर्चे हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान अब भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री न रहे हों, परंतु अब भी वे अपनी इसी ड्रीम योजना का बराबर ढिंढोरा पीट रहे हैं और भला क्यों न पीटें? उनकी इसी योजना की बदौलत मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को बंपर जीत जो मिली थी। विधानसभा ही क्या लोकसभा चुनाव में भी राज्य की सभी २९ सीटें भाजपा के खाते में आई थीं। यह बात दीगर है कि विधानसभा की बंपर जीत के बाद भी पार्टी आलाकमान (दिल्ली) ने उनका पत्ता साफ कर दिया और किसी मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया गया। परंतु मामा भी कम चतुर नहीं निकले। दिल्ली में मंत्री पद पाते ही वे रोज अपनी योजना का ढिंढोरा पीट-पीटकर आला नेताओं को चिढ़ाने से बाज नहीं आ रहे। गाहे-बगाहे वे इस योजना का उल्लेख करके अपनी पीठ थपथपा ही लेते हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान भी वे गाजे-बाजे के साथ इसका उल्लेख करते थे और एमपी में १ करोड़ ३२ लाख लाभार्थी महिलाओं को जल्द ही १,२५० रुपए प्रति माह से बढ़ाकर तीन हजार रुपए प्रति माह देने का वादा करते रहते थे। जबकि उनके पास यह वादा करने का न तो कोई अधिकार है, न ही कोई औचित्य। खैर, भाजपा आलाकमान की लाख कोशिशों के बाद भी उनकी कटिंग तो नहीं हो सकी, बल्कि अब तो महाराष्ट्र जैसे प्रदेश भी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए उन्हें कॉपी करने लगे हैं। इस हकीकत को भूलकर की कॉपी और कट के सहारे न तो विरोधियों का खात्मा किया जा सकता है, न ही चुनाव जीते जा सकते हैं।