मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनालघुकथा : कुल्हाड़ी

लघुकथा : कुल्हाड़ी

प्रभुनाथ शुक्ल

देखिए! हमने इस पेड़ को खरीद लिया है। इसे काटने का अधिकार मेरा बनता है, क्योंकि यह आम का पेड़ मोंगाराम का है। उन्होंने इस पेड़ को मुझे बेच दिया है। आप लोग पेड़ काटने से नहीं रोक सकते। गांव के चार बुजुर्गों को समझाते हुए लकड़ी व्यापारी जोधाराम ने कहा था। उसका काम ही हरे और सूखे पेड़ों को काटना था।
लेकिन जोधाराम जी यह तो गैर कानूनी है। हरे पेड़ों को आप नहीं काट सकते हैं। वह भी आम का पेड़, इस वक्त तो इसमें फल हैं। यह कानूनन जुर्म है। बुजुर्ग जेठालाल ने चिंता जताते हुए कहा था।
जेठालाल जी, आपकी बात सच है, लेकिन इस जमाने में कौन कानून मानता है। सब पैसे पर काम हो जाता है। फॉरेस्ट ऑफिसर तो अपना करीबी है। रोज की उठक-बैठक है। फिर पर्यावरण संरक्षण का कानून बनानेवाली सरकारें भी तो विकास की आड़ में पेड़ों का कतल करती हैं। जोधाराम ने जेठालाल को समझाते हुए कहा था।
व्यापारी की बात सुनकर जेठालाल ने कहा यह तो मोंगाराम ने पैसे के लालच में आकर गलत किया। जमीन का पैसा तो हम चारों भाइयों से ले लिया था। कम से कम इस पेड़ को ही छोड़ जाते। इसके साथ पीढ़ियों तक उनकी यादें बनी रहतीं। देखिए जोधाराम जी, हम लोग इस पेड़ को कटने नहीं देंगे। क्योंकि इस पेड़ से हमारी यादें जुड़ी हैं। इस आम के पेड़ ने हम सब को फल, ताजी हवा, छांव दिया है। बचपन में हम लोगों ने इसी पर उछल कूद कर आनंद लिया है।
इसके मीठे फल का कर्ज हम कभी नहीं उतार सकते। ज्येष्ठ की दुपहरी में हमें इसी पेड़ के नीचे आराम मिला है। कितने मवेशी इसकी छांव में अपना वक्त काटते हैं। राहगीरों ने भी इसके नीचे शीतलता पायी। हमारी पीढ़ियां इसी के सानिध्य में पली है। यह हमारे पर्यावरण को स्वच्छ रखता है। जीवनदायी वायु देता है। यह हमारे सुख-दु:ख का साथी रहा। फिर इस पर कुल्हाड़ी कैसे चलने देंगे?
जोधाराम जी अंतिम बात यह है कि इस पेड़ को बचाने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन आपकी कुल्हाड़ी इस पर नहीं चलने देंगे। जेठालाल की चेतावनी के बाद जोधाराम उलझ गया था, क्योंकि पेड़ की खरीद के लिए उसने मोंगाराम को दस हजार रुपए दे दिए थे। जोधाराम किसी पचड़े में पड़ना नहीं चाहता था। लिहाजा उसने जेठालाल के चारों भाइयों के सामने एक प्रस्ताव रखा कि मैंने इस पेड़ को मोंगाराम से दस हजार रुपए में खरीदा है। अगर मेरे पैसे मिल जाएं तो मैं पेड़ पर कुल्हाड़ी नहीं चलाऊंगा
जेठालाल और उसके भाई व्यापारी के इस प्रस्ताव पर तैयार हो गए। चारों भाइयों ने अपने हिस्से के ढाई-ढाई हजार रुपए व्यापारी जोधाराम को देकर आम के पेड़ को कटने से बचा लिया। जोधाराम को पैसा पाने के बाद सुकून मिला और वह किसी तरह चुपचाप भाग निकला। इधर जेठालाल और उसके भाइयों ने जैसे ही आम की तरफ निहारा शांत पड़ी उसकी डालियां झूमने लगीं। जैसे प्राण बचने की खुशी में जेठालाल और उसके भाइयों का सिर झुकाकर वे अभिवादन दे रहीं थीं।
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और समीक्षक)

अन्य समाचार

पहला कदम