अमिताभ श्रीवास्तव
अब तक आपको लगता होगा कि हार्ट अटैक के कारण गलत जीवन शैली या खानपान हैं, मगर ऐसा नहीं है क्योंकि जो रिसर्च सामने आई है वो चौंकाने वाली है। जी हां, हार्ट अटैक का संबंध बेरोजगारी से भी है। नौकरी चली जाने के बाद की स्थिति हार्ट अटैक का कारण भी बन सकती है। एक नई रिसर्च में इस बात की ताकीद दी गई है कि बेरोजगारी हार्ट अटैक जैसे जोखिमों को कई गुना बढ़ा देती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की एक रिसर्च में दावा किया गया है कि बेरोजगारी, हेल्थ इंश्योरेंस नहीं होना, उच्च शिक्षा से वंचित रहना जैसे कारक हार्ट डिजीज, स्ट्रोक के जोखिम को कई गुना बढ़ा देता है। खासकर, एशियन लोगों में। रिसर्च के मुताबिक ये ऐसे कारण हैं, जो हेल्थ के लिहाज से समाज में किसी व्यक्ति को मुकाम दिलाते हैं। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, स्टडी की नेतृत्वकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की प्रोफेसर डॉ. यूजेनी यांग कहती हैं कि आम धारणा यही है कि एशियन लोग हेल्थ के मोर्चे पर अन्य लोगों की तुलना में थोड़ा बेहतर हैं, लेकिन अध्ययन में ऐसी बातें सामने नहीं आर्इं। हमारे अध्ययन में पाया गया कि जो लोग सामाजिक रूप से नौकरी की वजह से अलग-थलग रहते हैं, उनमें हार्ट से संबंधित बीमारियों का खतरा कहीं ज्यादा था। उन्होंने कहा कि एशियाई लोगों में समय से पहले हार्ट डिजीज की आशंका सबसे अधिक है। यहां तक हार्ट डिजीज के कारण इन लोगों की समय से पहले मौत का जोखिम भी ज्यादा है।
अजीब एलर्जी
जब एलर्जी की बात होती है तो सामान्य सी बात लगती है, मगर ये असामान्य है। आप सोच भी नहीं सकते कि एलर्जी ऐसी चीज की भी हो सकती है। जी हां, अमेरिका के मैसाच्युसेट्स की रहने वाली एक लड़की को अजीब ही एलर्जी है। वो ऐसी कोई चीजें नहीं खा सकती है, जिन्हें खाकर आप लोग जिंदा रहते हैं। २४ साल की वैâरोलिन क्रे की समस्या सुनकर ही आपको अजीब लगने लगेगा, लेकिन वो एक ऐसे डिसऑर्डर की शिकार है, जिसकी वजह से वो रोटी-चावल, मछली, मूंगफली, तिल-सरसों या फिर किवी भी नहीं खा सकती। अगर इनमें से उसने कुछ भी खा लिया तो उसे एनाफिलैटिक शॉक लग सकता है और वो मरने के कगार तक पहुंच सकती है। सितंबर, २०१७ में पहली बार उसे एलर्जी हुई थी, जब उसने आइसक्रीम खा ली थी और उसे १२ घंटे अस्पताल में रहना पड़ा था। इतना ही नहीं पिज्जा, ब्रेड, चावल और बींस खाकर भी उसे आईसीयू में जाना पड़ गया था। उसे एलर्जी के दौरान गले में सूजन, खुजली और हाइव्ज हो जाते हैं। इन हालात से बचने के लिए अब लड़की सिर्फ दो चीजों पर जिंदा है-ओटमील और बच्चों को दिया जाने वाला फॉर्मूला मिल्क। वो दिन में तीन वक्त यही खाकर सर्वाइव कर रही है।
यहां एक ही सरनेम रखना होगा!
जी हां, यह न केवल चेतावनी है, बल्कि कानून भी है कि यहां जो भी रहेगा सबका एक ही सरनेम होगा। इस देश में ऐसा कानून है कि चाहे जाति, धर्म कोई भी हो, आपको एक ही सरनेम रखना होगा। बाकायदा कानून में इसका प्रावधान किया गया है। अगर आप नहीं करते हैं तो सजा भुगतनी पड़ सकती है। यह देश जापान है। बता दें कि ये कोई आज का कानून नहीं है। यह कानून १८९८ में बनाया गया था और २०१५ में जापान के सर्वोच्च न्यायालय ने इसे बरकरार रखा था। एक्सपर्ट के मुताबिक, यह कानून जापान के ‘मीजी’ युग का है। जब सामंती परिवार प्रणाली थी। परिवार लंबे-लंबे होते थे। महिलाओं और बच्चों को परिवार के पुरुष मुखिया के अधीन रखा जाता था, लेकिन आज के वक्त में सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बरकरार रखा, इसकी वजह समझ में नहीं आती। जापान में अभी ‘सातो’ सरनेम सबसे लोकप्रिय है। १.५ फीसदी से ज्यादा आबादी इस सरनेम का उपयोग करती है। २०२२ और २०२३ के बीच इसमें लगभग १०० फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यही हाल रहा तो २४४६ तक देश के आधे से अधिक लोगों के पास ‘सातो’ सरनेम होगा। अगर ये कानून नहीं बदला जाता तो २५३१ तक पूरे देश में हर किसी का सरनेम ‘सातो’ होगा। जापान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां विवाहित जोड़ों को एक ही सरनेम रखना पड़ता है।
मजाक-मजाक में बन गया साइंटिस्ट
कोई मजाक-मजाक में ही साइंटिस्ट बन जाए तो इसे क्या कहेंगे? कोलोराडो के बिली बर्र एक सामान्य इंसान थे। छोटी-मोटी नौकरी की, लाइब्रेरी में काम किया। कुछ दिनों तक एक कंपनी में बिजनेस मैनेजर का भी काम किया, लेकिन उन्हें आंकड़े एकत्र करने का शौक था। एक दिन अचानक मन में खयाल आया और रॉकी पर्वत की ओर चल पड़े। १२,६०० फीट ऊंची इस पहाड़ी पर होने वाली बर्फबारी को एक छोटे से एनालॉग उपकरण से रिकॉर्ड करने लगे। मौसम में बदलाव को नोटिस करते थे और हर एक चीज अपने नोटबुक पर लिखा करते थे। अचानक एक दिन अमेरिका के एक वैज्ञानिक की नजर उन पर पड़ गई। उन्होंने उनके बारे में पता लगाया और जब मिले तो देखकर हैरान रह गए। ७३ साल के इस शख्स के पास मौसम को लेकर ऐसे-ऐसे डाटा थे कि दुनियाभर में किसी भी साइंटिस्ट के पास नहीं। उन्होंने बताया कि वेस्ट अमेरिका क्यों सूख रहा है। तापमान वैâसे बदल रहा है। जंगली फूलों के खिलने के समय के बारे में बताया। जानवरों की गतिविधि के बारे में जानकारी शेयर की। उन्होंने बताया कि जब आप समझते हैं बर्फ पिघल रही है, लेकिन ऐसा नहीं होता। यह जानकर साइंटिस्ट दंग रह गए।
लेखक ३ दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं व सम सामयिक विषयों के टिप्पणीकर्ता हैं। धारावाहिक तथा डॉक्यूमेंट्री लेखन के साथ इनकी तमाम ऑडियो बुक्स भी रिलीज हो चुकी हैं।