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सियासतनामा : मरता लोकतंत्र

सैयद सलमान
मुंबई

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद यह साफ हो गया है कि भाजपा के लिए आगामी लोकसभा का चुनाव जीवन-और मरण का प्रश्न है। भाजपा ने तो केजरीवाल की गिरफ्तारी के पटाखे फोड़कर जश्न भी मनाया। विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए इसे तानाशाही करार दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई विपक्षी नेता केजरीवाल के समर्थन में खुलकर बोले हैं। जिस शीला दीक्षित पर तमाम तरह के आरोप लगाकर केजरीवाल ने सत्ताच्युत किया था, उसी शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित न केवल केजरीवाल के समर्थन में बोले, बल्कि उनके घर जाकर उनके परिवार को सांत्वना दी। राहुल गांधी का ‘डरा हुआ तानाशाह, एक मरा हुआ लोकतंत्र बनाना चाहता है’ वाला बयान तो खूब ट्रेंड में रहा। शरद पवार से लेकर अखिलेश यादव तक और मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर सीताराम येचुरी तक केजरीवाल के समर्थन में आगे आए। इससे इंडिया गठबंधन की एकजुटता भी दिखी। इससे ऐसा लगता है, जैसे भाजपा ने केजरीवाल की गिरफ्तारी का जो दांव चला है, वह बैक फायर भी कर सकता है।

बदले की राजनीति
काफी दिनों चर्चा से दूर रहीं महुआ मोइत्रा एक बार फिर चर्चा में हैं। केंद्र की सरकार से हमेशा पंगा लेने वाली महुआ के आवास सहित कई ठिकानों पर सीबीआई ने वैâश फॉर क्वेरी मामले में छापामारी कर दी। सीबीआई ने इस मामले में टीएमसी नेता के कोलकाता स्थित आवास और अन्य स्थानों पर भी तलाशी अभियान चलाया। ज्ञात हो कि पिछले साल दिसंबर में महुआ मोइत्रा को वैâश-फॉर-क्वेरी मामले में अपनी सांसद पद गंवानी पड़ा थी। लोकसभा ने इस मामले में अपनी आचार समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया था, जिसमें उन्हें जांच के बदले नकद मामले का दोषी पाया गया था। टीएमसी ने महुआ के खिलाफ की गई इस छापेमारी को ‘बदले की राजनीति’ बताया है। विपक्ष के अनुसार केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने का यह बेहतरीन उदाहरण है। हेमंत सोरेन, अरविंद केजरीवाल, के. कविता की गिऱफ्तारी और अब महुआ को सीबीआई के जरिए घेरना इस बात का इशारा है कि लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को डराने के लिए भाजपा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करते हुए उन्हें काम पर लगा चुकी है।

अपनेपन से दरार तक
उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर, कौशांबी और फूलपुर संसदीय क्षेत्र समाजवादी पार्टी और अपना दल कमेरावादी के बीच गठबंधन की दरार का कारण बन गया। लोकसभा चुनाव में अपना दल कमेरावादी ने इन्हीं तीन सीटों की मांग इंडिया गठबंधन से की थी। अखिलेश ने मना किया तो इनके साथ ही कई सीटों से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी गई। माना जा रहा है कि अब मायावती की बसपा से इस विषय में बात हो रही है। एनडीए से भी अपना दल कमेरावादी को ऑफर दिया गया है। कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल इस विषय में बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। रोचक बात यह है कि २०२२ का विधानसभा चुनाव पल्लवी पटेल ने सपा के चुनाव चिह्न पर लड़ा था, इसलिए तकनीकी रूप से वह सपा की विधायक हैं। सियासत भी अजीब है, कभी इतना अपनापन था कि सपा का चिह्न ले लिया, कभी इतना विरोध कि गठबंधन तोड़ दिया। लेकिन डॉ. संजय चौहान, पल्लवी पटेल और चंद्रशेखर रावण के साथ गठबंधन की बात कर, फिर मुकर जाने वाले अखिलेश को लेकर इंडिया गठबंधन में नाराजगी बढ़ सकती है।

निजी खुन्नस की विजेता
राजनीति का स्तर किस कदर गिरा है, इसकी मिसाल बिहार भाजपा अध्यक्ष और राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का एक बयान है। उन्होंने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद को टिकट बेचने का माहिर खिलाड़ी बताते हुए आरोप लगाया कि लालू ने किडनी के बदले अपनी सगी बेटी रोहिणी को टिकट दिया है। इस बयान पर लालू के कार्यकर्ता और नेता हमलावर हैं। बजाय एक बेटी के अपने पिता को किडनी देने की तारीफ करने के, सम्राट चौधरी ने उसका उपहास उड़ाया है। यह सम्राट चौधरी की ही नहीं भाजपा की भी असलियत है, जो महिलाओं का इसी तरह अपमान करती है। सम्राट चौधरी और उनकी पार्टी से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या अपने पिता को अपनी किडनी देना उनके प्रति किसी बेटी का त्याग, कर्तव्य और प्रेम नहीं हो सकता? क्या कभी ऐसा त्याग, प्रेम और आदर किसी भाजपा नेता ने प्रकट किया है? राजनीतिक विरोध की आड़ में निजी खुन्नस निकालना वर्तमान राजनीति का हिस्सा बनता जा रहा है, जिसकी विजेता सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही हो सकती है यह सम्राट चौधरी ने साबित कर दिया है।

लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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