मुख्यपृष्ठस्तंभसियासतनामा : असुरक्षा और अहंकार

सियासतनामा : असुरक्षा और अहंकार

सैयद सलमान

भाजपा इस लोकसभा चुनाव के बाद कितना असुरक्षित महसूस कर रही है, इसका अंदाजा प्रोटेम स्पीकर के पक्षपात पूर्ण चयन से लगाया जा सकता है। अब तक की परंपरा के अनुसार, जिस सांसद का कार्यकाल सबसे ज्यादा होता है, उसे नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने के लिए संसद सत्र के शुरुआती दो दिनों तक प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। १८वीं लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सांसद कांग्रेस के कोडिकुन्निल सुरेश और भाजपा के वीरेंद्र कुमार हैं। दोनों नेता अपना आठवां कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। चूंकि वीरेंद्र कुमार केंद्र में मंत्री बनाए गए हैं, ऐसे में परंपरा अनुसार, कोडिकुन्निल सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए था। लेकिन भाजपा ने उनकी जगह सात बार के सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बनवाया। यानी भाजपा ने देश की शानदार लोकतांत्रिक परंपरा और संसदीय मानदंडों का खुलेआम मजाक उड़ाया। संविधान भले ही प्रोटेम स्पीकर के पद के बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहता हो, लेकिन हमारी परंपरा तो यही रही है। भाजपा इस परंपरा का पालन न कर अपना अहंकार प्रदर्शित कर रही है।

चर्चा में वायनाड
केरल की वायनाड सीट एक बार फिर चर्चा में है। राहुल गांधी द्वारा रायबरेली सीट अपने पास रखकर वायनाड सीट खाली करना और फिर वहां से प्रियंका गांधी को उतारने की रणनीति पर काम करना, कांग्रेस के लिहाज से अच्छा कदम माना जा रहा है। प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार तो खूब किया है, लेकिन खुद चुनावी मैदान में पहली बार उतरेंगी। राहुल गांधी वायनाड के लोगों को यह महसूस कराने में सफल रहे हैं कि वो वायनाड के लोगों को नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि अपनी बहन को चुनाव लड़ने के लिए भेजकर और भी करीब आ रहे हैं। उधर भाजपा के लिए सिरदर्द बनी ममता बनर्जी ने प्रियंका का प्रचार करने की हामी भरकर भाजपा को और भी चिढ़ाने का काम किया है। वैसे ममता के इस कदम से केरल का वाम लोकतांत्रिक मोर्चा भी खुश नहीं होगा। वाम दलों और ममता के बीच ३६ का आंकड़ा है। भाजपा इसे भुनाने का जरूर प्रयास करेगी। हालांकि, वायनाड से आ रही खबरों के मुताबिक प्रियंका को लेकर वहां की जनता काफी उत्साहित है और लोकसभा में प्रियंका की ग्रैंड एंट्री करवाने की तैयारी में है।

अयोध्या का दर्द
अयोध्या नगरी स्थित सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत राजू दास और स्थानीय डीएम नीतीश कुमार के बीच की लफ्जी झड़प खूब सुर्खियां बटोर रही है। यह झड़प यूपी के कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रतापी शाही की मौजूदगी में हुई। मजे की बात यह कि झड़प उस जगह हुई, जहां अयोध्या से भाजपा की हार पर समीक्षा हो रही थी। जिस राम मंदिर के नाम को भाजपा ने भुनाया, उसी राम की नगरी अयोध्या में उसे पराजय का सामना करना पड़ा। यह बात भाजपा को भीतर तक साल रही है। विपक्ष अयोध्या के मतदाताओं को शाबाशी दे रहा है। भाजपा बैठक पर बैठक कर यह जानना चाह रही है कि आखिर मतदाता उससे क्यों नाराज हुआ। महंत राजू दास आए दिन अपने विवादित बयानों के कारण मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं। उनका आरोप था कि प्रशासन के कारण भाजपा की हार हुई है। इसी बात पर डीएम भड़क गए। झड़प के बाद राजू दास की सुरक्षा हटा ली गई। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई, भाजपा के हराने की समीक्षा बैठक में डीएम क्या कर रहे थे?

मामा-पुत्र की हुंकार
भाजपा में घोषित-अघोषित कई खेमे बन चुके हैं। हालांकि, सत्ता की कुंजी मोदी-शाह की जोड़ी के पास है इसलिए सभी खामोश हैं। लेकिन रह-रहकर आवाजें उठती रहती हैं। नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह इत्यादि का नाम अक्सर इस बात के लिए उछलता रहता है कि ये लोग मोदी-शाह से ज्यादा परिपक्व और सुलझे हुए हैं। लेकिन मामला इसलिए भी टांय-टांय फिश हो जाता है कि वे लोग खुद कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। अब इस सूची में एक नाम और जुड़ गया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों में मध्य प्रदेश का बहुत बड़ा योगदान रहा है, जहां भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की है। इसका सेहरा शिवराज सिंह चौहान के सिर बंधना स्वाभाविक है। जहां मोदी खुद प्रधानमंत्री रहते हुए भी कड़ी टक्कर में मात्र डेढ़ लाख वोटों से जीते, वहीं शिवराज सिंह चौहान तकरीबन आठ लाख वोट से न सिर्फ खुद जीते, बल्कि मध्य प्रदेश की सभी सीटें जीतने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही। उनके बेटे कार्तिकेय चौहान ने तो हुंकार भरी है कि अब दिल्ली भी मामा के सामने नतमस्तक है। इशारा साफ है, आगे का अध्याय रोमांचक होगा।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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