सैयद सलमान
मुंबई
देश में बढ़ती नफरत में अब तक आम इंसानों को ही निशाना बनाया जा रहा था, लेकिन अब विभिन्न समुदायों के आराध्यों, पीर-पैगंबरों को भी नहीं बख्शा जा रहा। इस काम में स्लीपर सेल अब माहिर हो गए हैं। एक्स मुस्लिम, एक्स हिंदू, एक्स क्रिश्चियन जैसे फर्जी नामों से सोशल मीडिया पर वह गंध फैलाई जा रही कि दिमाग सन्न रह जाए। हाल में ही एक धर्मगुरु ने मुसलमानों की भावनाओं को आहत करने वाला बयान दिया। उन्होंने इसे बांग्लादेश के संदर्भ में दिया गया बयान बताकर सफाई दी। फिर उन्हीं के मंच से राज्य के मुख्यमंत्री ने उनका समर्थन और तारीफ कर मुसलमानों के जलते पर नमक छिड़कने का काम किया। राज्य के मुखिया को छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती पर सत्ता के नशे में नहीं आना चाहिए, बल्कि जनता को निष्पक्ष आंखों से देखना चाहिए जैसा कि छत्रपति शिवाजी महाराज देखा करते थे। मुस्लिम महिला को ससम्मान घर पहुंचाने और जंग के दौरान कुरआन मिलने पर अपने सर पर रख कर उसे सुरक्षित जगह पहुंचाने का वाकया शायद मुख्यमंत्री ने पढ़ा ही नहीं। न ये पढ़ा होगा कि उन्हें अपने मुस्लिम साथियों पर इतना विश्वास था कि अफजल खान को मारने के लिए अपने साथ अपने मुस्लिम साथी को ही ले गए थे। खैर, फरेब और धोखे की बुनियाद पर खड़ी सरकार के मुखिया की छत्रपति शिवाजी महाराज से तुलना ही शर्मनाक और बेमानी है।
जहां तक बात मुसलमानों की है, उन्होंने कई पुलिस थानों में कथित धर्मगुरु के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी है। कानून का सहारा लेना ही सही तरीका है। जहां तक पैगंबर मोहम्मद साहब की ६ वर्षीय बीबी आयशा से विवाह की बात है, तो उक्त धर्मगुरु द्वारा दिए गया बयान और सोशल मीडिया पर चल रही यह चर्चा बेहद झूठी और अपमानजनक है। इतिहास में ऐसा कोई उल्लेख नहीं मिलता कि यह मुद्दा कभी मोहम्मद साहब के समय में उठाया गया हो। अन्यथा यह उन दुश्मनों के लिए एक बड़ा अवसर होता, जिसके जरिए वह मोहम्मद साहब और बीबी आयशा को बदनाम कर सकते थे। इसके लिए एक पुरानी हदीस का हवाला दिया जाता है। उस हदीस का संदर्भ बेहद कमजोर है। कई इस्लामी विद्वान कम उम्र में शादी के सबूत के तौर पर पेश की गई इस हदीस को अनधिकृत मानते हैं। इस्लामी मामलों के जानकार नौशाद उस्मान ने कई रिसर्च के अनुसार, अपने एक लेख में उल्लेख किया है कि बीबी अस्मा पैगंबर की पत्नी बीबी आयशा सिद्दीका की बहन थीं। वे बीबी आयशा से दस वर्ष बड़ी थीं। बीबी आयशा के साथ पैगंबर का विवाह मक्का से मदीना हिजरत करने से कुछ ही दिन पहले हुआ था और बीबी आयशा हिजरी के दो साल बाद यानी २ हिजरी में पैगंबर के घर गई थीं। बीबी अस्मा का निधन ७३ हिजरी में हुआ, जब वह लगभग १०० वर्ष की थीं। यानी बीबी अस्मा हिजरी के वक्त १०० में से ७३ साल घटा देने से २७ साल की हुर्इं। इसका मतलब यह है कि तब बीबी आयशा १७ साल की थीं। हिजरत के दो साल बाद यानी १९ साल की उम्र में बीबी आयशा पैगंबर के घर चली गर्इं। इस प्रकार छह वर्ष के भीतर विवाह का संदर्भ पूर्णतया गलत है। सभी फिरके के इस्लामी विद्वानों की मान्यता है कि जो हदीस कुरआन से असंगत हो या उस से टकराए उसे अनधिकृत माना जाएगा। ६ साल वाली हदीस कुरआन की निम्न आयत के खिलाफ जाती है जिसमें साफ शब्दों में कहा गया है कि ‘अनाथों की देखभाल करो, जब तक कि वे विवाह योग्य न हो जाएं’- (अल-कुरआन – ४:६) विवाह के योग्य होने का अर्थ ही है बालिग होना। कहने का अर्थ कि संवाद, शिक्षण और तर्कों के सहारे से अपनी बात रखी जानी चाहिए, न कि हंगामा करना चाहिए।
दरअसल, मुसलमानों ने कुरआन और पैगंबर मोहम्मद पर कब्जा कर रखा है। कुरआन और मोहम्मद साहब सभी के लिए हैं, न कि केवल मुसलमानों का इस पर एकाधिकार है। पैगंबर मोहम्मद और कुरआन की सार्वभौमिकता बताते हुए मुसलमानों को कई स्तर पर काम करने की जरूरत है, जिस से गलतफहमियां न होने पाएं। कुरआन स्पष्ट रूप से कहता है कि यह केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक मार्गदर्शन है। उदाहरण के लिए, कुरआन (२:२) कहता है कि यह किताब उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शक है जो ईश्वर में विश्वास करते हैं। ‘अंतिम पैगंबर’ के रूप में मोहम्मद साहब का संदेश समाज के सभी वर्ग के लिए है। इस्लाम के अनुसार, उन्होंने समस्त मानव जाति में दया और शांति का संदेश पैâलाया। यही नहीं असल इस्लामी शिक्षाएं पूरी मानवता के लिए हैं, जो शांति, सहिष्णुता और समानता पर जोर देती हैं। जरूरत है जईफ हदीसों के पुनर्मूल्यांकन की, जिसके आधार पर मुसलमानों को जज किया जाता है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)