सैयद सलमान, मुंबई
क्या बिहार में सचमुच जल्द ही चुनाव होंगे? यह सवाल इसलिए, क्योंकि देश के गृह मंत्री खुद ऐसा कह रहे हैं। अमित शाह चाहते हैं कि किसी भी तरह लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच कलह करवाकर बिहार को चुनाव की तरफ धकेला जाए। इसी रणनीति के तहत वह लालू-नीतीश गठबंधन को तेल और पानी जैसा मिलन बता रहे हैं। अमित शाह का कहना है कि दोनों लंबे समय तक एक साथ नहीं रह सकते, क्योंकि लालू अपने बेटे तेजस्वी को सीएम बनाना चाहते हैं और नीतीश बाबू को प्रधानमंत्री बनना है। जबकि नीतीश कुमार अमित शाह को इंडिया गठबंधन से डरा हुआ बताकर अपने खेमे का विश्वास गिरने नहीं देना चाहते। दरअसल, इंडिया गठबंधन बनने के बाद से भाजपा खेमे में हताशा दिखने लगी है। अमित शाह भी शायद इसीलिए जल्द चुनाव की बात कर रहे हैं। भाजपा को लालू से पुरानी खुन्नस तो है लेकिन भाजपा का साथ छोड़कर लालू के साथ जा चुके नीतीश उसके निशाने पर कुछ ज्यादा हैं। कोई अचंभा नहीं होगा, जो बिहार सरकार को किसी बहाने की आड़ में केंद्र सरकार गिरा दे।
ओवैसी का पाकिस्तान विरोध
असदुद्दीन ओवैसी राजनीतिक बिसात पर कभी-कभी ऐसे मोहरे बिछाते हैं कि अच्छे-अच्छे सोच में पड़ जाते हैं। हालांकि, उनकी हर चाल कामयाब नहीं होती। वह कभी भाजपा की बी टीम कहलाते हैं, कभी वोट कटवा कहलाते हैं, कभी ऐसे राज्य में चुनाव लड़ने की घोषणा कर जाते हैं, जहां ठीक से उनकी पार्टी का संगठन भी न खड़ा हुआ हो। लेकिन एक बात तो है कि उन्हें चर्चा में रहना आता है। पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न होने की आवाज सबसे पहले शिवसेना प्रमुख स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे ने उठाई थी। शिवसैनिकों ने पिच खोदकर पाकिस्तान को उसकी औकात बताई थी। हालांकि, स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी देश के विदेश मंत्री के रूप में और फिर प्रधानमंत्री के रूप में भी पाकिस्तान के साथ बेहतर संवाद बनाने में लगे रहते थे। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी औचक पाकिस्तान यात्रा चर्चा में रही। लेकिन ओवैसी का पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलने का बयान लोग समझ नहीं पा रहे। वैसे ओवैसी ने इस कदम से अपनी कट्टरपंथी छवि को तोड़ने का प्रयास जरूर किया है।
मर्यादा भूलते नेता
भाजपा नेता केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं। सत्ता में हैं तो विपक्ष की आलोचना करना उनकी ड्यूटी भी बनती होगी, ताकि अपने बड़े नेताओं को खुश रख सकें। वे इंडिया गठबंधन को एक अनार, सौ बीमार की स्थिति वाला गठबंधन बताते हैं। यहां तक तो उनके बयान राजनीतिज्ञ की तरह नजर आते हैं। लेकिन, जब वह यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय पर निजी टिप्पणी करते हैं तो राजनीतिज्ञ कम, बड़बोले और चापलूस किस्म के आम आदमी ज्यादा नजर आते हैं। अपने स्तर से गिरकर टिप्पणी करना किसी उपमुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता। लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ने अजय राय को `मुल्ला’ कहकर अपना ही स्तर गिरा लिया है। अजय राय को मौर्य की टिप्पणी पसंद नहीं आई। उन्होंने केशव प्रसाद के बयान को बचकाना करार दिया और कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए अपनी मर्यादा खोना उपमुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता। लेकिन अजय राय भूल गए कि केशव प्रसाद मौर्य की पार्टी में मर्यादा वाली भाषा का उपयोग करनेवाले अब बचे ही कहां हैं।
हाथ बांधे महाराज
मध्यप्रदेश में होने वाले चुनाव में इस बार जिस व्यक्ति पर सबकी निगाहें टिकी हैं वे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया। लगातार अपनी उपेक्षा का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ भाजपा की शरण में पहुंचे सिंधिया को तात्कालिक रूप से काफी फायदा हुआ। लोकसभा चुनाव तो वह भाजपा से हारे थे, लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद सिंधिया को राज्यसभा की सदस्यता दी गई। उन्हें केंद्रीय मंत्री का पद मिला। उन्हें दिल्ली में अपना घर भी वापस मिल गया। हालांकि, यह भी तय है कि ये सभी अस्थायी सुविधाएं हैं। इसके दूरगामी परिणाम के लिए आम चुनाव तक रुकना होगा। अगर मध्य प्रदेश में सिंधिया की वजह से भाजपा को लाभ होता है तो उनके भाजपा में जाने को सही माना जाएगा। लेकिन, भाजपा हार गई तो उनका राजनीतिक कद कम हो जाएगा। कारण यह कि कभी वह राहुल गांधी के सबसे करीबी नेताओं में से एक थे और कांग्रेस में उनकी तूती बोलती थी। लोग उन्हें महाराज कहते थे। अब वे भाजपा के केंद्रीय नेताओं के सामने हाथ बांधे ख़ड़े नजर आते हैं।
(लेखक देश के प्रमुख प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक व मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं।)