सैयद सलमान मुंबई
भाजपा के कर्नाटक में सहयोगी एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे और कर्नाटक सरकार के पूर्व मंत्री एचडी रेवन्ना अपहरण मामले में एसआईटी की हिरासत में पहुंच गए। देशभर को झकझोर देने वाले सेक्स स्वैंâडल के प्रमुख आरोपी और एचडी रेवन्ना के सांसद बेटे प्रज्वल रेवन्ना फरार होकर जर्मनी पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसी प्रज्वल के लिए वोट मांगे थे। जब से यह मामला गरमाया है, तब से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री खामोश हैं। खैर, ये लोग तो मणिपुर पर भी खामोश थे इसलिए इनसे उम्मीद नहीं है। लेकिन जैसा कि दावा किया जा रहा है, प्रज्वल से जुड़ी जानकारी अमित शाह को पहले ही दे दी गई थी, उसके बावजूद प्रज्वल को टिकट देना, उसका प्रचार करने प्रधानमंत्री का जाना सब शर्मनाक है या तो मोदी-शाह कह दें कि उन्हें नहीं पता था। लेकिन तब तो दोनों के मंत्रालय पर ही सवाल उठेंगे कि उनके मातहत वाली एजेंसियां अपराध करने से लेकर भाग जाने तक कहां सोई हुई थीं? विपक्ष के खिलाफ तो सारी केंद्रीय जांच एजेंसियां `आउट ऑफ द वे’ जाकर पड़ताल करती हैं।
कटघरे में चरित्र
केवल कर्नाटक ही नहीं, पश्चिम बंगाल भी यौन उत्पीड़न के मामले को लेकर चर्चा में है। यहां तो सीधे राज्यपाल ही कटघरे में हैं। दरअसल, राजभवन की एक महिला कर्मचारी ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए थाने में लिखित शिकायत दी है। हालांकि, राज्यपाल आरोपों का खंडन कर रहे हैं। वैसे भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३६१ के तहत, वह फिलहाल सुरक्षित हैं, क्योंकि राज्यपाल के पद पर रहते हुए किसी अदालत में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। केंद्र की अनुशंसा पर राज्यपाल बने सीवी आनंद बोस से लेकर रेवन्ना तक और देश के अलग-अलग कोने से भाजपा नेताओं के खिलाफ महिला उत्पीड़न-शोषण की अनेक खबरें उसके चरित्र को कटघरे में खड़ा करती हैं। लेकिन भाजपा इस पर कोई कार्रवाई करने की बजाय इसे बढ़ावा देती नजर आ रही है। दिखावे के लिए महिला पहलवानों के मामले के आरोपी बृजभूषण का टिकट तो काटा, लेकिन उनके ही बेटे को देने का आखिर क्या अर्थ निकलता है? क्या जनता मूर्ख है?
हर मोड़ पर फजीहत
मुंबई में शिंदे गट से अंतिम समय में टिकट पाकर लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने पहुंचे एक नेता के काफिले में `बिना शर्त समर्थन’ वाले दल के लोग भी शामिल थे। फॉर्म भरने की प्रक्रिया भीतर चल रही थी और बाहर अन्य नेता, कार्यकर्ता कड़ी धूप से परेशान इधर-उधर छांव तलाश रहे थे। एक टोली ने नजदीक ही के एक रेस्टॉरेंट में आसरा तलाशा और चाय-पानी, शरबत का ऑर्डर दे दिया। टोली में बिना शर्त समर्थन देने वाले दल के भी मंडल स्तर के एक नेताजी जबरन `मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तर्ज पर शामिल हो गए। परिचित वे सबके थे, पर उनका साथ आना टोली को सुहा नहीं रहा था। सब उनकी खिचाई कर रहे थे। एक ने कहा, `कुछ खाओगे-पियोगे तो है नहीं, बिना शर्त समर्थन जो है।’ नेताजी झेंप गए। एक अन्य ने कहा, `रोज हाजिरी लगाना, वरना शर्त का उल्लंघन होगा।’ बेचारे फिर खिसियाकर रह गए। इतने पर भी उन्होंने चाय भी पी और छांछ भी। कोई स्वाभिमानी होता तो नकार देता। लेकिन स्वाभिमान जब गद्दारों को समर्थन देते समय नहीं जागा, तो कार्यकर्ताओं की ऐसी फजीहत हर मोड़ पर होगी।
बदला लेंगे नौजवान
उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर मूल के एक प्रवासी नौजवान से एक सलून में भेंट हुई। बातों-बातों में उसने अपनी चर्चा का रुख कब सियासत की तरफ मोड़ दिया पता ही नहीं चला। यूं भी उत्तर भारत के लोग इस मामले में बदनाम हैं कि उनकी नस-नस में सियासत बसी हुई है। युवक ने पिछले दिनों पुलिस भर्ती की परीक्षा दी थी। लगभग उसने बिफरते हुए बताया कि पेपर लीक मामले के कारण परीक्षा निरस्त करने से हर परीक्षार्थी दुखी और नाराज है। युवक का कहना था कि इतनी मेहनत से परीक्षा की तैयारी की, लेकिन पेपर लीक करने वालों के कारण सब चौपट हो गया। योगी शासन पर वो बरसते हुए कहने लगा कि वे कहते हैं कि यूपी में अपराध खत्म हुआ है तो क्या पुलिस भर्ती से लेकर चपरासी भर्ती तक के पर्चे लीक होना अपराध नहीं है? उसने अग्निवीर की भी तैयारी की थी, लेकिन साथियों ने समझाया कि ४ साल बाद फिर कहां खाक छानोगे? अब ऐसे नौजवानों ने मोदी-योगी सरकार से बदला लेने की ठानी है। इस जमीनी हकीकत से दूर भाजपा नेता हिंदू-मुस्लिम खेल से जीतने की आस लगाए हुए हैं।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)