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केवल नाम का है सायन अस्पताल … बाहर कराए जाते हैं टेस्ट   निजी लैब चालकों की चांदी

स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव मरीजों की हो रही दुर्दशा
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा द्वारा संचालित सायन अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को दुर्दशा झेलनी पड़ रही है। आलम यह है कि ओपीडी और वॉर्डों में भर्ती होनेवाले मरीजों को सही तरीके से उपचार नहीं मिल पा रहा है। खून के नमूनों को जांच के लिए निजी लैबों में भेजा जाता है। इससे अस्पताल के आस-पास स्थित निजी लैब चालकों की चांदी हो गई है। दूसरी तरफ मरीजों के परिजन यह भी आरोप लगा रहे हैं कि अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं का भारी अभाव है, जिसका खामियाजा उनके जैसे तमाम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि सायन अस्पताल के आउट पेशेंट विभाग में रोजाना कम से कम साढ़े पांच हजार मरीज विभिन्न बीमारियों की जांच के लिए आते हैं। अस्पताल में बेड की संख्या करीब १,९०० है, जिसे ३,२०० तक पहुंचाने की योजना बनाई गई है। सायन अस्पताल के ओपीडी में सालाना करीब १९ लाख रोगी इलाज कराने के लिए आते हैं। इसके साथ ही यहां सालाना ८०,००० मरीज भर्ती भी होते हैं। यहां के एक मेडिकल स्टॉफ का कहना है कि लापरवाही के चलते अस्पताल में मौजूद स्वास्थ्य व्यवस्थाएं फेल हो रही हैं। मनपा के प्रमुख अस्पतालों में से एक सायन अस्पताल भी मरीजों की देखभाल के दबाव का सामना कर रहा है। यह अस्पताल मुख्य सड़क पर होने के कारण कई जगहों से मरीजों की भीड़ लगी रहती है।
एमआरआई के नंबर आने का इंतजार
एमआरआई जांच के लिए मरीजों को लंबा डेट दिया जाता है। इसके चलते एमआरआई करवाने के लिए एक बड़ी प्रतीक्षा सूची है। ऐसे में उनका नंबर आने तक बीमारी बहुत जटिल बन जाती है। कुछ यही हालत सीटी स्वैâन, एक्सरे और सोनोग्राफी विभाग की भी है।
मरीजों की लगी रहती हैं लंबी कतारें
गरीबों के लिए निजी अस्पतालों में इलाज कराना पहुंच से बाहर होता जा रहा है। ऐसे में लाखों मरीजों के पास मनपा के विभिन्न अस्पतालों के साथ ही सायन के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ऐसी स्थिति में अस्पताल मरीजों की बढ़ती संख्या को सुविधाएं देने में विफल रहा है। केस पेपर निकालने से लेकर मेडिकल चेकअप, ब्लड टेस्ट के लिए लंबा मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती हैं।
तारीख पर तारीख
मरीजों का कहना है कि डॉक्टर उन्हें कुछ टेस्ट कराने के लिए कहते हैं। हालांकि, कई सारे ऐसे टेस्ट होते हैं, जिसकी जांच के लिए डॉक्टर २० से २५ दिन के बाद की तारीख देते हैं। इस स्थिति में सभी टेस्टों के लिए तारीख पर तारीख मिलती रहती है। इस स्थिति में मरीजों और उनके परिजनों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही कई सारे ऐसे ब्लड टेस्ट होते हैं, जिन्हें बाहर के निजी लैबों से कराने के लिए कहा जाता है। इसके चलते अस्पताल में आनेवाले गरीब मरीजों को पैसे भी खर्च करने पड़ते हैं।

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