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सियासतनामा: वादों का झुनझुना

जनसंवाद कार्यक्रम के बहाने जनसमस्याएं सुनने की राजनीति कर रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सोचा भी नहीं होगा कि किसी गांव के नाराज ग्रामीण उन्हें ४ घंटे तक बंधक बना लेंगे। दरअसल, एक गांव में नाराज ग्रामीणों ने उनका घेराव किया था, जिससे प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए। घेराव करनेवालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। नाराज ग्रामीणों की मांग थी कि उनके गांव को उप तहसील का दर्जा दिया जाए, जबकि खट्टर किसी और गांव को यह दर्जा देने की घोषणा कर चुके थे। यह जो जनता के साथ झूठ, उम्मीद, जुमलों और वादों का खेल खेला जाता है, जब जनता को वादे के मुताबिक मिलता नहीं तो लोगों का गुस्सा इसी प्रकार निकलता है। खट्टर की तर्ज पर कई राज्य और केंद्र में सत्तासीन कई नेताओं ने लोगों को वादों और उम्मीदों का झुनझुना थमा रखा है। हरियाणा के इस गांव से अगर लोगों ने प्रेरणा ले ली तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि किन-किन नेताओं को इसी तरह की घेराबंदी का सामना करना पड़ सकता है।
तर्कपूर्ण बहिष्कार?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नीति आयोग गवर्निंग काउंसिल की बैठक में ११ मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए। राजधानी दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के विरोध में दिल्ली, पंजाब, बंगाल, बिहार और तेलंगाना सहित कई मुख्यमंत्रियों ने बैठक का बहिष्कार किया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ११ मई को आदेश दिया था कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेगा। आनन-फानन में केंद्र सरकार ने २० मई को एक अध्यादेश लाकर ये अधिकार उपराज्यपाल को दे दिए। केजरीवाल की पहल पर बाकी मुख्यमंत्री इसी अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं। भाजपा इस बात से भन्नाई हुई है। इसे मोदी विरोध की इंतेहा बताया जा रहा है, जो मुख्यमंत्री बैठक में नहीं आए, उन्हें जनता विरोधी और गैर-जिम्मेदार बताया जा रहा है। विपक्ष द्वारा पहले संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के बाद नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार हुआ। बहिष्कार को कोसने वाली भाजपा जवाब दे कि अगर यह बहिष्कार गलत है तो सुप्रीम कोर्ट के पैâसले को पलटना वैâसे सही हो सकता है?
सिद्धारमैया-शिवकुमार बनाम गहलोत-पायलट
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा में एक के बाद एक मिली जीत से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। कमजोर समझी जा रही कांग्रेस के प्रति विपक्ष के कई नेताओं के रुख में बदलाव आया है। यहां तक कि ममता और केजरीवाल की भाषा भी बदली-बदली लग रही है। लेकिन बाहर से सब कुछ ठीक-ठाक दिखानेवाली कांग्रेस राजस्थान में अपने दो नेताओं की लड़ाई से परेशान है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट की दुश्मनी हर दिन कोई न कोई नया रंग दिखा रही है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी वर्ष में, कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच संबंधों को सुधारने का अंतिम प्रयास कर रहा है। इसके तहत पायलट को फिर से प्रदेश अध्यक्ष पद पर लाने का फॉर्मूला तैयार किया गया है। गहलोत इस से नाराज बताए जाते हैं। ऐसे में अगर यह विवाद जारी रहा तो कांग्रेस ही नहीं विपक्ष के लिए भी यह बड़ा नुकसान होगा। कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की नहीं बनती, फिर भी दोनों ने साथ रहना ही उचित समझा। फिर गहलोत-पायलट में यह तनातनी क्यों?
भाभी जी ‘लिखिन’
नोटबंदी को लेकर विरोध और समर्थन की हजारों पोस्ट सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। बात करते हैं अपने एक निकट परिजन की जो पेशे से वकील हैं। समाज में सम्मानजनक रुतबा है। कई वर्षों से नोटरी हैं, इसलिए नियमित आय को अतिरिक्त सहयोग भी मिल जाता है। इस बार उनकी हज की लॉटरी निकली है। अपनी बारी के हिसाब से जल्द ही वह हज की पवित्र यात्रा पर निकल जाएंगे। इस बीच आरबीआई का फरमान आया कि २ हजार के नोट प्रतिबंधित हो जाएंगे। ३० सितंबर तक उन्हें बदलना होगा। चूंकि हज यात्रा के अलावा भी बहुत से खर्च होते हैं, सो हमारे भाई आर्थिक इंतजाम में लगे हुए थे कि एक दिन सुघड़ गृहिणी भाभी जी ने उनके हाथ में एक लिफाफा थमाकर, उसमें रखी नोटों को बदलने की बात कही। रकम बहुत ज्यादा नहीं, पर ठीक-ठाक तो थी ही जिसने भाई की चिंता को काफी हद तक दूर कर दिया। लेकिन लिफाफे पर लिखा मजमून पढ़कर नोटबंदी को कोसनेवाले हमारे भाई सहित पूरा परिवार मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। उस पर लिखा था, ‘जेब से निकाला हुआ पैसा।’

सैयद सलमान
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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