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झुग्गीवासी डेवलपर्स के हाथों पीड़ित हैं, सरकार और एसआरए बने मूकदर्शक  …‘झुग्गी मुक्त मुंबई’ को लेकर हाई कोर्ट ने जताई चिंता

– सरकार और प्राधिकरण को लगाई फटकार
सामना संवाददाता / मुंबई 
बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘झोपड़पट्टी पुनर्विकास परियोजनाओं’ (एसआरए) में हो रही देरी को लेकर भी चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि झुग्गीवासी उन डेवलपर्स के हाथों पीड़ित हैं जो काम करने का इरादा नहीं रखते। इस स्थिति में सरकार और झोपडपट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण मूकदर्शक बनकर बैठे हैं। कोर्ट ने कहा कि हमारा लक्ष्य मुंबई को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाना होना चाहिए। न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और सोमशेखर सुंदरेसन की पीठ ने एक सुनवाई के दौरान निजी डेवलपर्स द्वारा झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के शोषण के बारे में चिंता व्यक्त की। पीठ ने झोपडपट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण और अन्य पक्षों को अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई की तारीख २० सितंबर तय की।
परियोजनाओं की तय हो जवाबदेही
न्यायालय ने झुग्गी पुनर्विकास परियोजनाओं में लंबे समय से हो रही देरी और उनकी गुणवत्ता के बारे में चिंता जताते हुए एसआरए और अन्य संबंधित निकायों की झुग्गीवासियों की दुर्दशा के प्रति ‘मूक दर्शक’ बने रहने के लिए आलोचना की। पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आप झुग्गी में रहते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको डेवलपर्स के विवेक पर छोड़ दिया गया है। पीठ ने पुनर्विकास परियोजनाओं में जवाबदेही और उच्च मानकों का आह्वान किया।
सख्त क्रियान्वयन की आवश्यकता
बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र झुग्गी क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम के सख्त क्रियान्वयन की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला। इस बारे में पीठ ने कहा कि मुंबई, जिसे अंतरराष्ट्रीय शहर माना जाता है और जो भारत की वित्तीय राजधानी है, उसे झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाना है। यह एक्ट (अधिनियम) हमें मुंबई को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाने में मदद करेगा। जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, एक्ट का परफॉर्मेंस ऑडिट करने के लिए पिछले सप्ताह पीठ का गठन किया गया था।
हमें सतत विकास की जरूरत
अदालत ने सवाल करते हुए कहा कि भविष्य के बारे में सोचिए। अगले १०० वर्षों में यही होगा। क्या वहां सिर्फ गगनचुंबी इमारते ही रहेंगी? क्या हमें खुले स्थानों की जरूरत नहीं? लंदन जैसे अन्य शहरों का उदाहरण देते हुए अदालत ने कहा कि हमें सतत विकास की जरूरत है। हम केवल कॉक्रीट का जंगल नहीं बना सकते, जिसमें कोई खुली जगह न हो।

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