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सॉल्ट लैंड पर झुग्गियां बन गईं एसआरए को भनक तक नहीं! …आरटीआई ने खोली पोल

सामना संवाददाता / मुंबई
झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) को नमक की भूमि पर झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार की योजना की कोई जानकारी नहीं है। यह खुलासा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। पर्यावरण के हो रहे अनुचित कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने वाली संस्था ‘नेटकनेक्ट फाउंडेशन’ के निदेशक बी. एन. कुमार ने इस बारे में राज्य शहरी विकास विभाग से जानकारी मांगी थी।
कुमार ने नमक की भूमि और मैंग्रोव क्षेत्रों को झुग्गी पुनर्वास के लिए खोलने की योजना पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या इस पर सरकार ने हितधारकों से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित की हैं। इस पर यूडीडी ने उक्त प्रश्न एसआरए-ग्रेटर मुंबई को भेजा, जिसने जवाब दिया कि इस संबंध में उनके पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। एसआरए के जन सूचना अधिकारी एचएस जाइट द्वारा हस्ताक्षरित जवाब में आरटीआई आवेदन के निपटारे की सूचना दी गई। बी. एन. कुमार ने कहा कि आरटीआई अधिकारियों के बीच यह आम चलन है कि जब उनके पास कोई जानकारी नहीं होती है, तो वे कहते हैं कि ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि इस परियोजना में लोगों की भागीदारी के बिना सरकार का आर्द्रभूमि को कंक्रीट में तब्दील करने का निर्णय शहर के पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है।
इन्वायरमेंटलिस्ट नंदकुमार पवार ने कहा कि नमक की भूमि और आर्द्रभूमि अपनी प्रकृति के कारण ज्वार और बाढ़ के पानी को सोखने का काम करती है और शहरी स्पंज की तरह कार्य करती है। नीति निर्माताओं द्वारा इन आर्द्रभूमियों का कंक्रीटीकरण करना शहर के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक समस्या है और समुद्र के बढ़ते जलस्तर के बारे में वैश्विक चिंता व्यक्त की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी हाल ही में समुद्र के बढ़ते स्तर को लेकर चेतावनी दी है, जो तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए खतरा बन सकता है। इसके बावजूद शहरी योजनाकारों द्वारा आर्द्रभूमि क्षेत्रों में निर्माण कार्य करना विनाशकारी साबित हो सकता है।कुमार ने बताया कि सरकार ने धारावी झुग्गी पुनर्वास के लिए २५५ हेक्टेयर भूमि आवंटित करने की योजना बनाई है। वहीं, शिवसेना (यूबीटी) के नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने भांडुप में पंपिंग स्टेशन के लिए नमक की भूमि के उपयोग को लेकर बीएमसी के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था और इसके लिए केंद्र की आलोचना भी की थी।
नमक की भूमि का महत्व
पर्यावरणविदों का मानना है कि नमक की भूमि और आर्द्रभूमि जलवायु संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। इन क्षेत्रों को संरक्षित करने से समुद्र के बढ़ते जलस्तर और बाढ़ के खतरों को कम करने में मदद मिल सकती है।

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