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रुक नहीं पा रही है मवेशियों की तस्करी …सालाना २० लाख मवेशी भेजे जाते हैं बांग्लादेश

नदियों और जोखिम भरे रास्तों का सहारा
पड़ोसी बांग्लादेश में गोमांस की बड़ी मांग है।‌ इसे पूरा करने के लिए हिंदुस्थान से बड़े पैमाने पर मवेशियों की तस्करी की जाती है। सालाना लगभग २० लाख मवेशियों की तस्करी हिंदुस्थान से बांग्लादेश में की जाती है। यह तस्करी नदियों और सीमा के जोखिम भरे रास्तों से की जाती है।
हालांकि, वर्ष २०१६ के बाद से इसमें गिरावट दर्ज की गई है लेकिन इस कारोबार से जुड़े लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं।‌ वर्ष १९४७ से पहले यह सब व्यापार का हिस्सा था। पूर्वी बंगाल के पास गोमांस की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त मवेशी नहीं थे। मवेशियों को झुंड में ले जाया जाता था और बेचा जाता था। अब गोवंश की रक्षा में आवाज उठने के बाद इस कारोबार को चोरी-छुपे अंजाम दिया जाता है।‌ पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों से मवेशियों की खरीद-फरोख्त की जाती है। एक जोड़ी मवेशी को सीमा पार कराने में १,५०० से २,५०० रुपए मिलते हैं। २,२१७ किमी पश्चिम बंगाल में सटा है, जिसमें से ५७९ किमी नदियों और दलदल के कारण तस्करों के लिए यह काफी सुविधाजनक रास्ता है। बीएसएफ के अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर बिना बाड़ वाली नदी का हिस्सा दक्षिण बंगाल में है और उत्तर बंगाल में १०० किमी से थोड़ा अधिक है।
इन रास्तों से पहुंचते हैं मवेशी
इमामबाजार, महलदारपारा बंगाल के सबसे अलग-थलग गांवों में से एक है, जो सीमा पर मुर्शिदाबाद के एक दूरस्थ हिस्से में स्थित है। निकटतम शहर, बेरहामपुर लगभग १०० किमी दूर है और गांव में पक्की सड़क, स्वास्थ्य केंद्र, बाजार या यहां तक कि स्वच्छता सुविधाएं भी नहीं हैं। यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से १,५०० किमी से अधिक दूर तस्करी किए गए मवेशियों के लिए एक संपन्न बाजार है। जगताई, नूरपुर, देबीपुर, हमीदपुर, वाजीबपुर और बंगाल के कई अन्य गांव भी राज्य में अरबों डॉलर के मवेशी तस्करी मार्गों पर महत्वपूर्ण लिंक हैं। मवेशियों की तस्करी गंगा, पद्मा और भागीरथी नदियों के माध्यम से की जाती है।‌ इमाम बाजार के निवासी २८ वर्षीय जैनुल आबेदीन बताते हैं कि बीएसएफ के जवान संदिग्ध स्थिति में देखते ही गोली मार देते हैं। जीवनयापन के लिए गोलियों का जोखिम उठाना पड़ता है।‌ उनके जैसे युवकों को मवेशियों के जोड़े को नदी पार कराने के लिए भुगतान किया जाता है। डूबने से बचने के लिए हम उनकी पूंछ को पकड़कर रखते हैं।‌
कोलकाता के इतिहासकार प्रो. अनीश सेनगुप्ता के अनुसार पूर्व और पश्चिम बंगाल में हमेशा एक बड़ी गोमांस खानेवाली आबादी थी और उस मांग को पूरा करने के लिए मवेशियों को विभिन्न राज्यों से लाया जाता था। वह व्यापार था। आज पचहत्तर साल बाद वही आर्थिक सिद्धांत काम कर रहे हैं।

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