मुख्यपृष्ठग्लैमर‘तो मेरी क्या मजाल थी कि...!’-कोंकणा सेन शर्मा

‘तो मेरी क्या मजाल थी कि…!’-कोंकणा सेन शर्मा

कोंकणा सेन शर्मा एक उम्दा अभिनेत्री के साथ ही एक बेहतरीन निर्देशिका हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। हाल फिलहाल में कोंकणा निर्देशित ‘लस्ट स्टोरीज’ की काफी सराहना हो रही है। मशहूर फिल्म अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा निर्देशिका अपर्णा सेन और दूरदर्शन के जाने-माने निर्माता-निर्देशक मुकुल शर्मा की सुपुत्री हैं। पेश है, कोंकणा सेन शर्मा से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

•‘लस्ट स्टोरीज’ की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
सच तो यह है कि प्रेरणा सिर्फ अंग्रेजी फिल्मों से ली जाती है, ऐसा नहीं है। प्रेरणा पाने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी काफी है। हमारे इर्द-गिर्द क्या कुछ नहीं होता। राजनीतिक घटनाएं, अपराध जगत की उठापटक, किसी करीबी के जीवन का उतार-चढ़ाव सहित बहुत कुछ हो रहा है सभी के जीवन में। देखा जाए तो फिल्म या ओटीटी की कहानी के लिए यही बहुत है हमें। घटनाएं जो दिल को कचोटे, हादसे जो हमें बेचैन कर दें, यही है लेखक-निर्देशक की प्रेरणा। दिनभर में ऐसी कई वारदातें घटती रहती हैं, हम मानसिक शांति खो रहे हैं।

• ‘लस्ट स्टोरीज’ के लिए आपकी प्रशंसा हो रही है, लेकिन क्या इसे स्वीकारना एक तरह से रिस्क नहीं था?
‘लस्ट स्टोरीज’ की अगर तारीफ हुई है तो इसका मतलब यह हुआ कि आम पब्लिक ने इसे पसंद किया और लोग इसे देखकर कहीं-न-कहीं रिलेट कर रहे हैं। फिर वैâसी रिस्क? जो फिल्म अगर हिट हो तो उसका मतलब होता है इसे बहुत लोगों ने देखा, खुद से कनेक्ट किया और अगर बात नहीं जमी तो फिल्म फ्लॉप होती। मैंने रिस्क ली लेकिन कॉन्टेंट अच्छा होने पर हम इसे रिस्क नहीं मान सकते।

• सुना है, आपकी मम्मी आपको फिल्में देखना अलाउड नहीं करती थीं, क्या यह सच है?
हां, मां और पिताजी दोनों एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े हैं लेकिन उनकी इच्छा थी कि मुझे सबसे पहले अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। उनकी यही शर्त थी कि पहले अपनी पढाई-लिखाई मैं पूरी करूं और अगर फिल्में मुझे देखना ही है तो मैं इसे हॉबी के रूप में लूं। मां ने मुझे जो फिल्में दिखार्इं वो थीं चार्ली चैपलिन की फिल्म ‘किड’ यह फिल्म १९२१ में रिलीज हुई थी। ‘समर १९९३’ जो १९९७ में रिलीज हुई, ‘वी नीड टू टॉक अबाउट केविन’, ‘जूल्स एंड जिम’, ‘द ४०० ब्लोज’ जैसी कई फिल्में मैंने परिवार के साथ देखी। इन फिल्मों को देखने से मेरी परवरिश काफी अच्छी हुई। मध्यमवर्गीय मूल्यों में मेरी परवरिश हुई, जिसमें मां द्वारा दिए गए संस्कार काफी सशक्त थे।

• सुना है आपकी मां ने आपको रामायण-महाभारत पढ़ने के लिए कहा था?
मेरे नानी-नाना बचपन में रामायण-महाभारत की कहानियां सुनाया करते थे और वो सारी कहानियां मुझे बाय हार्ट हो गई थीं। मेरे बेटे हारून को भी मैंने कहानियां सुनाई हैं लेकिन मेरे खयाल से रामायण से भी ज्यादा महाभारत हमें जीना सिखाता है कि मुश्किल वक्त हमें क्या करना चाहिए। यह महाभारत से पता चलता है। रामायण के मध्यवर्ती किरदार हैं श्रीरामचंद्र। महाभारत के कई मध्यवर्ती किरदार हैं श्रीकृष्ण, पांच पांडव, कौरव, कर्ण, कुंती, गांधारी। इन सभी पात्रों ने जीवन के पाठ पढ़ाए हैं। जीवन की लड़ाई लड़नी है तो हमारे ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने जीवन को अच्छी तरह से समझाया है।

• अपने करियर में ज्यादा फिल्में न करने की क्या वजह रही?
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा या फिर यह मेरा भ्रम था कि मैं अपनी उम्र से ज्यादा ही नजर आती हूं। ऐसा किसी ने कहा नहीं, बस मुझे लगता रहा। डेब्यू फिल्म में ही मैंने एक बच्चे की मां का किरदार निभाया था। अमूमन यह ट्रेंड हिंदी फिल्मों में कम ही पाया जाता है, जहां पर फिल्म की मुख्य हीरोइन अपनी डेब्यू फिल्म में मां का किरदार करने को राजी हो जाए। इस फिल्म को मेरी मां ने निर्देशित की थी, शी वॉज ब्रेन चाइल्ड बिहाइंड दिस फिल्म। जब मां ने मुझे चुन लिया तो मेरी क्या मजाल थी कि मैं मां को इंकार कर दूं। वैसे मुझे भी इतनी सूझबूझ नहीं थी खासकर हिंदी फिल्मों की कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। बस, मां ने कहा सो मैंने स्क्रीन पर मां बनना पसंद किया।

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