प्रेम यादव
सन १९७१ को मुंबई के मालाड में जन्मे सुरेश पांढरे ने एस.वाई.बी. कॉम करने के बाद कंस्ट्रक्शन और इन्वेस्टमेंट कंसलटेंसी के व्यवसाय में कदम रखा। अपने संघर्ष भरे जीवन में सुरेश पांढरे ने हमेशा समाजसेवा को प्राथमिकता दी। १९९५ में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की विद्यार्थी इकाई से जुड़कर चारकोप, कांदिवली में विद्यार्थी सेवा के विभागाध्यक्ष के रूप में उन्होंने कार्य किया। १९९९ में राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरदचंद्र पवार) से जुड़ने के बाद इन्होंने जिला महासचिव का पद संभाला। २००५ से २०१५ तक महाराष्ट्र सरकार में विशेष कार्यकारी अधिकारी (एसईओ) के रूप में लोगों की मदद करने के साथ ही निर्भय भारत संस्था में उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
सुरेश पांढरे महावीर नगर की कृति समिति के अध्यक्ष बने, जहां उन्होंने म्हाडा के विभागों से लड़ाई कर कई लोगों को घर दिलवाया। उन्होंने २०१० में ह्युमन राइट्स फाउंडेशन से जुड़कर समाज में पुलिस, स्लम रेगुलेशन अथॉरिटी, सरकारी और निजी अस्पतालों की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई। समाजसेवा के प्रति इनके समर्पण का विस्तार सिर्फ सहायता तक ही नहीं सीमित रहा, बल्कि उन्होंने सांस्कृतिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नवरात्रि, हनुमान जयंती, रामनवमी और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन संस्था के माध्यम से नियमित रूप से करते आ रहे हैं, जिससे समाज में एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा मिला है। कोरोना महामारी के दौरान सुरेश ने अपने पैसों से लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाया। डॉक्टरों की फीस कम करवाने और रेमडेसिविर दवा की व्यवस्था कर लोगों की जान बचाई। सुरेश पांढरे की समाजसेवी गतिविधियों के लिए उन्हें महापौर ज्योत्स्ना हसनाले के हाथों ‘कोरोना योद्धा’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने मराठी कामगार संघ और श्रमिक सेवा यूनियन के साथ मिलकर श्रमिकों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया। परिवार में पत्नी, जो पहले अकाउंटेंट थीं, अब गृहिणी हैं और एक बेटा अभिषेक साइबर फॉरेंसिक में एमएससी कर रहा है। श्री स्वामी समर्थ और गणपति बाप्पा को अपना गुरु माननेवाले सुरेश माननीय हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे को राजनीति में अपना आदर्श मानते हैं। सुरेश पांढरे एनसीपी के प्रदेश प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय होकर समाजसेवा को राजनीति के माध्यम से आगे बढ़ाते रहे हैं। हमेशा समाज के जरूरतमंद लोगों की बिना किसी दिखावे के मदद करनेवाले सुरेश पांढरे का जीवन संघर्ष, सेवा और समर्पण की मिसाल है।