मुख्यपृष्ठस्तंभसमाज के सिपाही : अबला पर अन्याय बर्दाश्त नहीं

समाज के सिपाही : अबला पर अन्याय बर्दाश्त नहीं

रवीन्द्र मिश्रा 

‘घर-परिवार की आधारशिला महिलाएं होती हैं और उन्हें घर की लक्ष्मी कहा जाता है। महिलाएं परिवार में किसी की बहन, किसी की बेटी, किसी की पत्नी और किसी की मां होती हैं। लेकिन जिस समाज में महिलाएं उपेक्षित एवं तिरस्कृत होती हैं वो समाज कभी भी प्रगति नहीं करता।’ कहते हुए हंसराज प्रभाकर पाटील की आवाज बेहद भावुक हो जाती है।
हंसराज पाटील भले ही पेशे से भवन निर्माता हैं, लेकिन उनका अधिकतर वक्त समाजसेवा में व्यतीत होता है। मुख्य रूप से वे महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ मुखर रहते हैं। पाटील कहते हैं कि आजकल महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहा है। महिला उत्पीड़न की खबर सुनकर उनका खून खौल उठता है। महिलाओं पर अत्याचार उनसे बर्दाश्त नहीं होता। जब कभी उन्हें पता चलता है कि उनके इलाके में कोई व्यक्ति शराब के नशे में धुत होकर अपनी पत्नी को पीट रहा है तो ये उनसे बर्दाश्त नहीं होता और उनके कदम खुद-ब-खुद उस घर की ओर बढ़ जाते हैं जहां कोई मर्द अपनी पत्नी की पिटाई कर रहा होता है।
‘मैं वहां पहुंचकर सबसे पहले तो उस मर्द को समझाने की कोशिश करता हूं, लेकिन काफी प्रयासों के बावजूद अगर वो नहीं समझता तो सामाजिक और कानूनी तौर से उस महिला को न्याय दिलाने का प्रयास करता हूं।’ कहते हैं पाटील।
नालासोपारा (प.) स्थित नीले गांव में रहनेवाले हंसराज प्रभाकर पाटील पेशे से भवन निर्माता का कार्य करते हैं। उनके पिता प्रभाकर पाटील पश्चिम रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे। पिता का सेवाभावी गुण उनके पुत्र हंसराज को मिला है। हंसराज कहते हैं, ‘जीवन में मुझे कुछ ऐसे लोग भी मिले जो पैसों के अभाव में अपना मकान तक नहीं बनवा सकते थे। मैंने उन लोगों का मकान बनवाया। इसके बाद उन्होंने थोड़ा-थोड़ा कर मकान में लगनेवाले मटीरियल और मजदूरों का रुपया मुझे दे दिया। आज जब मैं उन रास्तों से गुजरता हूं तो मन में मुझे बड़ा सुकून मिलता है।’
वे कहते हैं, ‘जरूरतमंंद छात्रों को नोटबुक, स्कूल बैग देना, बीमार व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने का कार्य मुझे बेहद अच्छा लगता है। हमारे गांव में किसी भी घर में शादी-ब्याह पड़ने पर बाहर से आए मेहमानों को रुकने की व्यवस्था न होने पर मैं अपना मकान उन्हें रहने के लिए दे देता हूं।’
हंसराज पाटील बताते हैं कि एक दिन एक विद्यालय की दिव्यांग महिला शिक्षिका उनके पास आई। उन्हें अपने विद्यालय का वार्षिकोत्सव समारोह आयोजित करना था। हॉल वाले ज्यादा किराया मांग रहे थे। लिहाजा, उन्होंने अपने परिचित के खाली पड़े भूखंड की साफ-सफाई करवाकर वहां मंच बनवाकर कुर्सियां लगवा दीं। बच्चों का कार्यक्रम बेहतरीन ढंग से हो गया। इस तरह उस टीचर के हजारों रुपए बच गए। आध्यात्मिक सोच रखतेवाले हंसराज पाटील ने कोरोना काल में जरूरतमंंदों को अनाज, दवाई तथा आर्थिक मदद कर उनकी सहायता की थी, जिसे लोग आज भी नहीं भूले हैं। किसी भी मंदिर में हो रहे भोज-भंडारे में हंसराज पाटील बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

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