रवींद्र मिश्रा
समाजसेवी विलास सखाराम येवले का मानना है कि माता-पिता और गुरु के ऋण के साथ ही हम सब पर सामाजिक ऋण भी होता है, समाज के प्रति हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है। महाराष्ट्र के सातारा जिले के एक छोटे से गांव में पैदा होनेवाले विलास येवले सातारा से ग्रेजुएट की डिग्री लेकर आगे की पढ़ाई करने मुंबई आए। मुंबई के लॉ कॉलेज से उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू की, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था, जिससे उनका वकील बनने का सपना अधूरा रह गया। पिता सखाराम टाटा मिल में काम करते थे और मिल के बंद हो जाने के बाद भी विलास ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी समाजसेवा निरंतर जारी रखी। सन् २००० में मानव सेवा चैरिटेबल एंड मेडिकल ट्रस्ट की स्थापना कर उन्होंने समाज सेवा शुरू की। येवले का कहना है कि सेवा तन, मन और धन से की जाती है। जिसके पास धन है वो धन देकर, जिसके पास धन नहीं है वो तन से और जो हर तरह से दुर्बल है वो मन से लोगों की सेवा करता है। येवले का कहना है कि मानव सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता इसलिए प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह मानव सेवा करे क्योंकि शास्त्रों में मानव सेवा को नारायण की सेवा कहा गया है। ३० वर्षों तक मुंबई के जसलोक अस्पताल में कार्य करनेवाले विलास बताते हैं कि वहां से रिटायर होने के बाद उन्होंने गरीब और जरूरतमंदों के साथ ही आदिवासी क्षेत्रों में रहनेवालों की सेवा का संकल्प लिया। यह काम इतना आसान नहीं था इसलिए लोगों को जोड़ना शुरू किया। समय-समय पर मेडिकल वैंâप लगाकर लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उन्हें दवाइयां वितरित करने के साथ ही नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन कर जरूरतमंदों को चश्मा वितरण करने के साथ ही मोतियाबिंद वाले मरीजों को अस्पताल में भर्ती करवाकर उनकी आंखों का ऑपरेशन करवाने को येवले अपना कर्तव्य मानते हैं। येवले बताते हैं कि जब वे जसलोक अस्पताल में कार्यरत थे तो उनके मन में उठनेवाला एक सवाल उन्हें बार-बार परेशान करता कि अमीरों के अस्पताल जसलोक में गरीबों का इलाज कैसे होगा? खैर, एक दिन वे मुंबई के चैरिटी कमिश्नर से मिले। येवले की मेहनत रंग लाई और सरकार की तरफ से आदेश आया कि कुछ प्रतिशत बिस्तर गरीबों के लिए मामूली रकम पर आरक्षित किए जाएं। पिछले २३ वर्षों से आषाढ़ महीने में वारकरियों के लिए मेडिकल कैंप लगाकर उनकी सेवा करनेवाले विलास येवले पालघर, दहाणू, तलासरी, विक्रमगढ़, जव्हार, मोखाडा, वसई-विरार के आदिवासी गांवों में समय-समय पर जरूरत की चीजों का वितरण कर आदिवासियों की सेवा करते हैं। वैंâसर के मरीजों को टाटा अस्पताल में भर्ती करवाने के साथ ही उस मरीज की हरसंभव मदद करने को वे अपना परम कर्तव्य मानते हैं।