कुछ एहसास

दिल नहीं चहाता अब और इंतजार करना
मुददतें हो गईं अब संघर्ष करते
बेपनाह ख्वाब देखे
बेपनाह उभरी चाहते
परछाइयों पे चले
साया बन के साथ चले
काया बन के साथ रहे
चट्टानों की तरह डटे रहे
फलक की तरह फैले रहे
धरा की तरह झुके रहे
हर दर्द को सीने में दफन करते रहे
न कोई गिला न कोई गम
खुशनुमा जिंदगी को बस निहारते रहे
यादों की कुछ खनक उठी
जट से आंखों में बादल छाया और बरसा पानी
अश्रु लिए सो गए
सुबह की किरणों ने एहसास दिलाया
यह थी कहानी पुरानी
नए सवेरे के पल भी कुछ थे, रुठे रुठे कुछ उखड़े कुछ उलझे से
ये पहेली थी कैसी सहेली थी, अनजान थी सुलझाने में
रेत की तरह उड़ जाते
मिट्टी में गुल जाते एहसास सारे
अगर बेखबर होते अरमान हमारे
पल छिन गया गुबार उठा
आंखों में रस्ता फिर नजर आ गया
अंधियारा गया रौशनदान फिर दर हो गया।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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