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कभी-कभी : चले जाना जरा ठहरो…!

यू.एस. मिश्रा मुंबई

तमिलनाडु के एक संस्कारी परिवार में जन्मी शारदा फिल्मी गीतों में रुचि होने के कारण गीत-संगीत में मन का सुकून तलाशने लगीं। रेडियो में बज रहे गीतों को वे बड़े ध्यानपूर्वक सुनतीं और बज रहे गीत के साथ सुर में सुर मिलातीं। संगीत कार्यक्रमों और समारोहों में भाग लेते हुए धीरे-धीरे वे एक दिन मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की एक जानी-पहचानी गायिका बन गर्इं।
राज कपूर का मिला निमंत्रण- उन दिनों शारदा तेहरान में थीं, जब राज कपूर अपनी फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ की रिलीज के सिलसिले में वहां गए हुए थे। राज कपूर के स्वागत में वहां एक शानदार समारोह आयोजित किया गया जहां शारदा ने गीत गाया। शारदा की आवाज सुनकर राज कपूर ने उन्हें मुंबई आने का न्योता देते हुए कहा, ‘आप मुंबई आ जाइए…।’ मुंबई आने के बाद राज साहब ने उनसे कहा, ‘उनकी आवाज का माइक्रोफोन टेस्ट होगा।’ शारदा की आवाज टेस्टिंग के बाद राज कपूर ने शारदा से कहा, ‘आप हमारे म्यूजिक डायरेक्टर शंकर-जयकिशन से जाकर मिल लो।’ शारदा अब शंकर-जयकिशन के पास पहुंच गर्इं। शारदा को फिल्मी गीतों का एक्सपीरियंस न होने के कारण शंकर ने शारदा से एक टेस्ट सॉन्ग रिकॉर्ड करवाया। साथ ही साथ उन्होंने शारदा को संगीत सिखाने के लिए एक गुरु का भी बंदोबस्त करवा दिया। जब ये बात शारदा के माता-पिता को पता चली तो उन्होंने शारदा से कहा कि फिल्मों में गीत गाने की कोई जरूरत नहीं है। फिल्मों में गीत गाने के मुद्दे पर उनका शारदा से झगड़ा भी हो गया लेकिन शारदा की जिद के आगे वे झुक गए। फिल्मों में सबसे पहले शारदा को ब्रेक देनेवाले शंकर-जयकिशन ने शारदा से फिल्म ‘सूरज’ के लिए ‘तितली उड़ी…’, ‘देखो मेरा दिल मचल गया…’ गीत गवाए। इन दोनों गीतों के सुपरहिट होते ही शारदा रातोंरात स्टार बन गर्इं। उनका नाम सभी की जुबान पर आ गया और ‘तितली उड़ी…’ के लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर अवॉर्ड’ की विशेष ट्रॉफी से नवाजा गया।
उच्चारण-आवाज की आलोचना- १९६७ में शंकर-जयकिशन की फिल्म ‘अराउंड द वर्ल्ड’ के ‘चले जाना जरा ठहरो…’, ‘दुनिया की सैर कर लो…’, जैसे गीतों के लिए जहां हर तरफ उनकी तारीफ हुई, वहीं दूसरी तरफ उनकी कच्ची, अनगढ़ आवाज और उच्चारण में दोष की भी जमकर आलोचना होने लगी। मीडिया में खबरें प्रकाशित होने लगीं कि शारदा के प्रेम में पागल होकर शंकर उन्हें दूसरी लता मंगेशकर बनाने पर तुल गए हैं। खैर, लोगों की लाख आलोचनाओं के बावजूद शंकर शारदा को मौका देते रहे। जयकिशन जहां लता मंगेशकर से गीत गवाना चाहते थे, वहीं शंकर गायिका शारदा को प्रमोट किए जा रहे थे, जो अंतत: उनके बीच दरार का कारण बनी। फिल्मों में महज बीस गीत गाने के बाद ‘जहां प्यार मिले’ के लिए दूसरा ‘फिल्मफेयर पुरस्कार’ जीतनेवाली शारदा को शंकर के अलावा संगीतकार उषा खन्ना ने भी मौका दिया। बड़ी-बड़ी फिल्मों और बड़े-बड़े गायक-गायिकाओं के साथ गीत गानेवाली खूबसूरत शारदा को शम्मी कपूर ने अपनी फिल्म में बतौर हीरोइन रोल भी ऑफर किया था लेकिन गायिकी की ओर ज्यादा झुकाव होने के कारण उन्होंने शम्मी कपूर को मना कर दिया था। खैर, १९८७ में शंकर के इस दुनिया से अलविदा कहते ही संगीत से किनारा कर लेनेवाली शारदा ने कई फिल्मों में संगीत भी दिया था। ‘गुमनाम’, ‘गुनाहों का देवता’, ‘हरे कांच की चूड़ियां’, ‘सीमा’, ‘सपनों का सौदागर’ जैसी कई फिल्मों में बेहतरीन गीत गानेवाली शारदा अपने अंतिम दिनों में वैंâसर जैसी असाध्य बीमारी से जूझ रही थीं। १९६६ में फिल्म ‘सूरज’ के लिए ‘तितली उड़ी…’ गीत गानेवाली शारदा ८५ वर्ष की उम्र में १४ जून, २०२३ को अपने गाने ‘तितली कहे मैं चली आकाश’ की तर्ज पर इस दुनिया से उड़कर उस दुनिया में चली गईं जहां जाने के बाद दोबारा लौटकर कोई वापस नहीं आता। श्रद्धांजलि…!!!

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