मुख्यपृष्ठस्तंभकभी-कभी : कड़ी मेहनत से मिला मकाम!

कभी-कभी : कड़ी मेहनत से मिला मकाम!

यू.एस. मिश्रा

चंद्रमा की कलाओं की तरह ही वे भी अपनी कला में परिपूर्ण थीं। रोल चाहे कोई भी क्यों न हो अपनी अदायगी से वो उसमें इस कदर जान फूंक देतीं कि पर्दे पर वो किरदार जीवंत हो उठता। फिल्मी पर्दे पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन किरदार निभानेवाली इस अभिनेत्री को फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले हफ्तों खाना नसीब नहीं होता था। बातचीत में मराठी लहजा और उर्दू का ज्ञान न होने के कारण उनके हाथ से जब एक फिल्म फिसल गई तो उन्होंने उर्दू सीखने का मन बना लिया और इंडस्ट्री में अपना सिक्का ऐसा जमाया कि उनकी छवि दर्शकों में हमेशा-हमेशा के लिए बस गई।
नहीं आती थी उर्दू : ४ अगस्त, १९३२ को सोलापुर के एक मराठी परिवार में जन्मी शशिकला जवालकर को १९४४ में फिल्म ‘चांद’ में एक बहुत ही छोटा सा रोल ऑफर हुआ था। इस फिल्म के बाद फिल्मों में काम पाने के लिए उन्हें बहुत स्ट्रगल करना पड़ा क्योंकि उस वक्त उनकी उम्र कुछ ऐसी थी, जिसमें वो न तो किसी मासूम लड़की का किरदार निभा सकती थीं और न ही किसी हीरोइन का। स्ट्रगल के दौरान काम के सिलसिले में स्टूडियो दर स्टूडियो भटकती शशिकला गायिका-एक्ट्रेस नूरजहां से मिल चुकी थीं। खैर, नूरजहां के पति शौकत हुसैन रिजवी एक फिल्म बना रहे थे, जिसमें नूरजहां की बेटी का एक रोल था। फिल्म में काम करनेवाली एक्ट्रेस नसीम की मौत और फिल्म का सेट के तैयार हो जाने के कारण शौकत हुसैन रिजवी काफी परेशान थे। उन्होंने एक ऐसी लड़की ढूंढना शुरू किया जिसकी शक्लो-सूरत नूरजहां से मेल खाती हो। शौकत हुसैन को परेशान देख नूरजहां ने उनसे कहा, ‘मुझे एक लड़की जिसका नाम शशि है ‘सेंट्रल स्टूडियो’ में मिली थी। देखो, वो कहां है।’ कुछ लोग शशिकला को ढूंढते-ढूंढते उनके पास पहुंचे। इसके बाद शशिकला के पिता शशिकला को अपने साथ लेकर शौकत हुसैन रिजवी के पास पहुंचे। अब शौकत हुसैन रिजवी ने शशिकला से बातचीत शुरू की। बकौल शशिकला, ‘मैं ठहरी एक नंबर की मराठन। मुझे कहां से उर्दू आती। जैसे मराठनें जवाब देती हैं, मैंने उन्हें वैसे जवाब दे दिया।’ बातचीत के बाद शशिकला के पिता से शौकत बोले, ‘शशिकला को तो एक भी शब्द उर्दू का नहीं आता है। मैं शूटिंग वैâसे कर पाऊंगा। मुझे तो जल्द ही शूटिंग भी करनी है।’ शौकत हुसैन रिजवी की बात सुनकर शशिकला को एक गहरा झटका लगा। मन ही मन वे सोच में पड़ गईं कि तीन-चार साल स्ट्रगल करने के बावजूद काम नहीं मिला और जब रोल ऑफर हुआ तो मेरे हाथ से वो रोल इसलिए निकल गया क्योंकि मेरे साथ भाषा की प्रॉब्लम है। खैर, तत्क्षण शशिकला ने तय कर लिया कि आज से मैं मराठी नहीं बोलूंगी और उर्दू सीखूंगी।
बीस रुपए से मनाई दिवाली : इसके बाद उन्होंने शौकत हुसैन रिजवी की फिल्म ‘जीनत’ में भी काम किया। शौकत हुसैन शशिकला का नाम बदलकर बेबी नूरजहां करना चाहते थे। लेकिन शशिकला के पिता ने कहा शशिकला नाम ठीक है। फिल्म ‘जीनत’ की कव्वाली ‘आहें न भरी शिकवे न किए…’ की शूटिंग के दौरान शौकत हुसैन रिजवी ने सेट पर उपस्थित लड़कियों से कहा कि जो भी लड़की सबसे अच्छा परफॉर्मेंस देगी उसे बीस रुपए मिलेंगे। शशिकला के लिए बीस रुपए मिलना अपने आप में बहुत बड़ी बात थी क्योंकि शशिकला जब सोलापुर छोड़ के अपने परिवार सहित मुंबई आई उन दिनों उनके घर में खाने तक के लिए भी पैसे नहीं थे। आठ-आठ दिनों तक शशिकला सहित उनका परिवार भूखा रहता। खैर, शशिकला के लिए बेहतरीन काम करके वो बीस रुपए पाना बहुत बड़ी बात थी। शुरुआत से ही हर चीज में अपना बेस्ट देनेवाली शशिकला ने इतना बेहतरीन परफॉर्मेंस दिया कि उन्हें बीस रुपए के साथ ही एक मेडल भी दिया गया। उस बीस रुपए से शशिकला के घर पहली बार दिवाली मनाई गई। शशिकला के पिता ने शशिकला के लिए गुलाबी और ब्लू रंग की दो साड़ियां और उनके भाई-बहनों के लिए कपड़े खरीदे। पहली बार शशिकला ने अपने भाई-बहनों संग पटाखे जलाए। इस फिल्म के बाद शौकत हुसैन रिजवी ने शशिकला के पिता से कहा, ‘आपकी बेटी बहुत स्मार्ट है। आप इसे उर्दू सिखाइए। ये मेरी पिक्चर की हीरोइन बनेगी और नूरजहां इसके लिए प्लेबैक देंगी। शौकत हुसैन रिजवी की फिल्म ‘जुगनू’ में भी शशिकला ने काम किया। देश का बंटवारा होने के बाद नूरजहां अपने पति शौकत हुसैन रिजवी के साथ पाकिस्तान चली गईं लेकिन फिल्म ‘जुगनू’ में अपनी बेहतरीन अदाकारी से दर्शकों का मन मोह लेनेवाली शशिकला रजत पटल पर ऐसा चमकीं, जिसकी दमक आज भी सिनेप्रेमियों के दिलों में बरकरार है।

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