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भूख हड़ताल के 21वें दिन सोनम वांगचुक को मिला अभिनेता प्रकाश राज का समर्थन

–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। पूर्ण राज्य सहित विभिन्न मांगों को लेकर आमरण अनशन पर बैठे पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक सहित अन्य आंदोलनकारियों को 21वें दिन दिग्गज अभिनेता प्रकाश राज का समर्थन मिला जो अपने जन्मदिन के अवसर पर लेह में पहुंचे थे। उन्होंने वंगचुक से मुलाकात की और उनके इस आंदोलन का समर्थन किया। प्रकाश राज ने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ लद्दाख के लिए नहीं है, सिर्फ सोनम वांगचुक के लिए नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के हित के लिए है। उन्होंने कहा कि पानी, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए जो संघर्ष यहां किया जा रहा है, वो किसी एक लिए नहीं है, बल्कि सारी जनता के लिए है। सरकार कुछ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए लद्दाख के लोगों की मांगों को पूरा नहीं कर रही है।

जानकारी के लिए लद्दाख को 6ठी अनुसूची में शामिल करने व राज्य का दर्जा दिलाने की मांग के समर्थन में वांगचुक का अनशन आज 21वें दिन में प्रवेश कर गया। वांगचुक ने कहा कि 350 लोग माइनस 10 डिग्री में रातें बिता रहे हैं। यहां दिन में पांच हजार के करीब लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला गया।

दरअसल स्वतंत्र केंद्र शासित राज्य बनने के बाद लद्दाख के लोग बहुत खुश थे। उन्हें लगा था कि अब लद्दाख का विकास तेजी से होगा, जो जम्मू कश्मीर के साथ होने की वजह से नहीं हो पा रहा था। लेकिन, धीरे-धीरे उनके सपने टूटने लगे। हर बात के लिए उन्हें केंद्र सरकार की ओर देखना पड़ रहा है। इसके लिए माध्यम के रूप में लेफ्टिनेंट गवर्नर और एक सांसद ही हैं। अब उन्हें लग रहा है कि उनके हाथ से सब कुछ छिनता जा रहा है। ऐसे में धीरे-धीरे लोग एकजुट हुए और अपने अधिकारों को लेकर धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया।

आंदोलनकरियाें का कहना था कि अगर केंद्र सरकार उनकी मांगें मान लेती है तो लद्दाख में काफी कुछ बदल जाएगा। मांग है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले, जिससे वे अपने लोगों के माध्यम से अपने हक की मांग कर सकें। लेह और करगिल को अलग-अलग संसदीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए। स्वायत्त जिले बनाने का अधिकार मिलने के बाद जिला परिषद के पास असीमित अधिकार आ जाएंगे, जो अभी नहीं है। भूमि, जल, जंगल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, पुलिस जैसी व्यवस्था जिला परिषद को रिपोर्ट करेगी। यह कमेटी नियम-कानून बना सकेगी। यह सब होने के बाद काफी कुछ लद्दाख के हक में होगा। स्थानीय लोग अपने हिसाब से राज्य का विकास कर पाएंगे।

केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू कश्मीर में तो विधानसभा बची हुई है लेकिन लद्दाख से विधायक नहीं चुने जाने का प्रावधान किया गया है। पहले यहां से चार एमएलए चुनकर जम्मू-कश्मीर विधान सभा में लद्दाख का प्रतिनिधित्व करते थे। लोगों के आक्रोश का एक बड़ा कारण यह भी है। इनका आरोप है कि अब उनकी बात सरकार तक पहुंचाने का कोई उचित माध्यम नहीं है। सरकार ने जितने वायदे किए थे, सब बेदम साबित हुए। आरोप है कि अब तो भाजपा के जिम्मेदार लोग इस आंदोलन को ही खारिज कर रहे हैं।

हालांकि, यह मांग मान लेना सरकार के लिए एकदम आसान नहीं है। इसमें बड़ी रकम खर्च होगी। लद्दाख में राजस्व की संभावना बेहद क्षीण है। पर्यटन ही यहां का एक मात्र व्यवसाय है। यह बात अलग है कि सरकार अगर राजस्व के पहलू को छोड़ दे तो यह इलाका सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान-चीन की संवेदनशील सीमाएं यहां से लगती हैं। ऐसे में इसे राज्य का दर्जा देने को यही नजरिया रखना होगा, तभी यह संभव है। अन्यथा, तीन लाख की आबादी का यह इलाका वोट के हिसाब से तो बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है।

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