गीत : विषय शीत

धूप है कुछ गुनगुनी सी
बात भी कुछ अनसुनी सी
याद आई चुपके से यूँ
शीत दोपहर अनमनी सी

छत पे फैली चादरें हैं
नैन मेरे वावरे हैं
देखती है रास्ता अब
प्रीत मेरी संगिनी सी

जल रहे ये अलाव हैं
यादों के कुछ घाव हैं
पूछती है शाम मुझको
लग रही कुछ सुनगुनी सी

बूढ़ी काकी की रज़ाई
कल है पोती की सगाई
देखते रह जाएंगे सब
मेरी बिटिया चाँदनी सी

डॉ कनक लता तिवारी

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