गीत

गीत लिखती हूं हां मैं गीत लिखती हूं
इस धरा पर इक नई सी प्रीत लिखती हूं l
तोड़ कर सब वर्जनाएं रीत लिखती हूं
हां सुनो मैं मान्यता के गीत लिखती हूं l
जग है भूला मोह में जाने किस व्यामोह में
हैं कुटिल संवेदनाएं दुःख नहीं विछोह में
इन सभी को रख परे मैं नए अब मीत लिखती हूं
हां सुनो मैं रोज नूतन गीत लिखती हूं l
अस्त होते सूर्य की सिंदूरी आभा
प्रेरणा है दूर करती सारी बाधा
रेशमी सूरज की सारी रश्मियों से संगीत लिखती हूं
हां सुनो मैं रोज नूतन गीत लिखती हूं l
रात की अब कालिमा दूर होने को है
उदित अब आकाश पर चंद्र होने को है
धवल सुंदर चांदनी में नव गीत लिखती हूं
हां सुनो मैं रोज नूतन गीत लिखती हूं l
शस्य श्यामल इस धरा पर प्यार हो
वैर की छाया हटे संस्कार हो
इस नए संसार में मानवता की जीत लिखती हूं
हां सुनो मैं रोज नूतन गीत लिखती हूं l

-डॉ. कनक लता तिवारी

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