शरीर और आत्मा दो अलग-अलग क्षेत्र हैं।
शरीर का भोजन है दाल-चांवल, सब्जी-रोटी।
और आवश्यकता है रोटी-कपड़ा, और मकान।
इन सब पदार्थों के लिए पूरा जीवन बिता देते हैं।
आत्मा का भोजन है-
प्रेम, शांति, त्याग, करुणा- समर्पण।
और आवश्यकता है परम शांति परमानंद।
इसके लिए समय नहीं देते।
इस कारण अनमोल जीवन यूं ही बिता दिया।
‘आत्मज्ञान’- आत्मा को जानना ही जीवन का मकसद रहा है।
अस्वस्थ शरीर के लिए औषधि-उपचार करते हैं।
आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए नजरअंदाज करते हैं।
ध्यान रहे मित्रों, आत्मा से शरीर का अस्तित्व है,
न कि शरीर से आत्मा का।
इसीलिए ‘आत्मा का भोजन’ उपलब्ध करना परम आवश्यक है ।
-आर.डी.अग्रवाल ‘प्रेमी’
मुंबई