मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से बगावत कर भाजपा घटक के प्रत्याशी का समर्थन कर सुर्खियों में आये बागी विधायक अभय सिंह को हत्या के प्रयास के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक मामले में दो जजों की पीठ ने एक-दूसरे से पूरी तरह अलग-अलग फैसला सुनाया। जस्टिस मसूदी ने अभय सिंह को तीन साल की सजा सुनाई, तो जस्टिस अभय श्रीवास्तव ने उन्हें बरी कर दिया। अब चूंकि दोनों जजों के फैसले अलग-अलग हैं, इस लिए यह मामला अब चीफ जस्टिस की बेंच में जाएगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह मामला 2010 का है, जब गोसाईगंज से समाजवादी पार्टी के बागी विधायक अभय सिंह हत्या के प्रयास के आरोप में नामजद हुए थे। विधिक मामलों के जानकारों के अनुसार, अगर तीन साल की सजा का फैसला कायम रहा, तो अभय सिंह की विधायकी खतरे में पड़ जाएगी। अभय सिंह को माफिया और आपराधिक छवि के नेता के तौर पर जाना जाता है और उनके खिलाफ गंभीर अपराधों के कई मामले भी चल रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चीफ जस्टिस की बेंच इस विवादास्पद मामले में क्या निर्णय देती है।
अभय सिंह की राजनीति की कहानी लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति से अयोध्या के गोसाईंगंज सीट से विधायक बनने तक की यात्रा रही है, लेकिन उनके सफर में विवादों का भी खूब जिक्र है। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बीएसपी से की थी, लेकिन बाद में सपा में शामिल हो गए। 2022 में उन्होंने बीजेपी की आरती तिवारी को 13 हजार वोटों के अंतर से हराकर दूसरी बार विधायक बने। इससे पहले 2012 में भी उन्होंने आरती तिवारी के पति खब्बू तिवारी को हराया था।
अभय सिंह का नाम पूर्व माफिया सांसद मुख्तार अंसारी के करीबी के रूप में लिया जाता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति से लेकर प्रदेश की राजनीति तक उनका सफर मुख्तार अंसारी के संरक्षण में हुआ, जो उनके बारे में कई सवाल खड़े करता है। अभय सिंह विवादों से हमेशा घिरे रहे हैं। लखनऊ के जेलर आरके तिवारी की हत्या के मामले में उनका नाम आरोपित रहा है। इसके अलावा लखनऊ जेल में खब्बू तिवारी से उनका विवाद भी खूब चर्चा में रहा। विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में भी उनका नाम सामने आया था। इस तरह अभय सिंह का राजनीतिक सफर हमेशा विवादों से जुड़ा रहा है।