मुख्यपृष्ठस्तंभविशेष : अलविदा रतन टाटा ...! ...एक दुर्लभ औद्योगिक शख्सियत

विशेष : अलविदा रतन टाटा …! …एक दुर्लभ औद्योगिक शख्सियत

डॉ. अनिता राठौर

मुंबई में सुबह के समय एक महिला स्कूटर से अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के लिए जा रही थी कि अचानक तेज बारिश होने लगी। मां, बेटा भीगने लगे। संयोग से उधर से रतन टाटा अपनी कार में बैठे हुए निकल रहे थे। उन्होंने इस मंजर को देखा। उन्हें दुख हुआ, तभी उनके मन में विचार आया कि ऐसी स्थितियों से मध्य वर्ग को बचाने के लिए क्यों न एक छोटी व सस्ती कार का निर्माण किया जाए। इस तरह नैनो कार वजूद में आई, जो इतनी सस्ती है कि उसे आम आदमी भी खरीदकर अपने परिवार के साथ धूप व बारिश से बचता हुआ सफर कर सकता है। रतन टाटा ऐसे ही संवेदनशील उद्योगपति थे, जो अपने व्यापार में अपने कर्मचारियों का ही नहीं, बल्कि जनता का भी ख्याल रखते थे।
टाटा ग्रुप को ग्लोबल ख्याति दिलाने का श्रेय रतन टाटा को ही जाता है, जिनका ९ अक्टूबर २०२४ की देर रात मुंबई के ब्रीच वैंâडी अस्पताल में निधन हो गया, जहां वह कुछ दिनों से इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती थे। वह ८६ वर्ष के थे। रतन टाटा केवल एक उद्योगपति ही नहीं थे, बल्कि जिस तरह वह भारतीय उद्योग में नई क्रांति लेकर आए और अपने पारिवारिक कारोबार का दुनियाभर में प्रभावी विस्तार किया, उस आधार पर यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि वह अपने आप में एक दुर्लभ औद्योगिक विचार थे। यह भी एक कारण था कि हर क्षेत्र में उनका सम्मान था। उन्हें श्रद्धांजलि देनेवालों में राजनेताओं, खिलाड़ियों, एक्टर्स व सीईओ से लेकर आम आदमी तक शामिल रहे। महाराष्ट्र में एक दिन के शोक की घोषणा की गई, सभी सरकारी कार्यालयों में शोक के प्रतीक के रूप में राष्ट्रीय झंडा आधा झुका रहा और सभी सरकारी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए। टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा का राजकीय सम्मान से मुंबई के वर्ली इलाके में अंतिम संस्कार किया गया।
दरियादिल रतन नवल टाटा का जन्म २८ दिसंबर १९३७ को बॉम्बे में हुआ था। वह नवल टाटा के पुत्र थे, जिन्हें रतनजी टाटा ने गोद लिया था। रतनजी टाटा जमशेदजी टाटा के पुत्र थे, जिन्होंने टाटा ग्रुप की स्थापना की थी। रतन टाटा ने आर्किटेक्चर में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर से स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने १९६१ में टाटा को ज्वॉइन किया, जहां वह टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम करते थे। जब १९९१ में जेआरडी टाटा रिटायर हुए टाटा संस के चेयरमैन पद से तो उनकी जगह रतन टाटा ने ली। अपने कार्यकाल के दौरान रतन टाटा ने भारत-केंद्रित टाटा समूह को ग्लोबल बिजनेस बनाने के लिए टाटा, जैगुआर लैंड रोवर व कोरस को खरीदा। वह समाजसेवी भी थे। उन्होंने २००८ में कॉर्नेल को ५० मिलियन डॉलर दान दिए थे और इस तरह वह इस यूनिवर्सिटी के इतिहास में सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय दानकर्ता बने।
रतन टाटा जबरदस्त निवेशक भी थे और उन्होंने ३० से अधिक स्टार्ट-अप्स में निवेश किया, अधिकतर व्यक्तिगत तौर पर और कुछ अपनी इंवेस्टमेंट कंपनी के जरिए। वह टाटा ग्रुप व टाटा संस के १९९० से २०१२ तक चेयरमैन रहे, फिर अक्टूबर २०१६ से फरवरी २०१७ तक अंतरिम चेयरमैन रहे। उन्हें २००८ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जोकि भारत में भारत रत्न के बाद दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। रतन टाटा को इससे पहले २००० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। रतन टाटा शिक्षा, मेडिसिन व ग्रामीण विकास के समर्थक थे। वह इन क्षेत्रों में भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी दिल खोलकर मदद किया करते थे। उनके दान व समाजसेवा के बारे में अगर एक-एक करके बताया जाए तो कई खंडों की पुस्तक तैयार हो जाएगी इसलिए अगर इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी चाहिए तो गूगल कर लें या उन पुस्तकों का अध्ययन कर लें, जो रतन टाटा के बारे में लिखी गई हैं।
बहरहाल, रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की और उनका अपना कोई बच्चा नहीं था। २०११ में एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, ‘मेरे जीवन में चार ऐसे अवसर आये जब मैं शादी करने के बहुत करीब था, लेकिन हर बार मैं एक न एक कारण से डरकर पीछे हट गया।’ रतन टाटा १९४८ में जब दस साल के थे तो उनके माता-पिता अलग हो गये थे और इसलिए उनकी परवरिश उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने की। वह अपने पिता नवल टाटा के अधिक करीब नहीं थे। कई बातों को लेकर बाप-बेटे में अक्सर मतभेद रहते थे। वे बचपन में वायलिन सीखना चाहते थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे पियानो सीखें। इस पर दोनों के बीच मतभेद हुआ। रतन टाटा अमेरिका जाकर शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन नवल टाटा चाहते थे कि वे ब्रिटेन में तालीम हासिल करें। बेटा आर्किटेक्ट बनना चाहता था और पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे। रतन टाटा जब लॉस एंजेल्स में काम कर रहे थे तब उन्हें एक लड़की से प्यार हो गया था। वह उससे शादी करना चाहते थे, लेकिन १९६२ के भारत-चीन युद्ध के कारण लड़की के पिता उसे भारत भेजने के पक्ष में नहीं थे। नतीजतन यह शादी न हो सकी। फिर इसके बाद उनके जीवन में तीन अन्य अवसर आए, जब उनकी शादी हो सकती थी, लेकिन हर बार उन्होंने खुद ही अपने पैर पीछे खींच लिए।
टाटा संस का १९९१ में चैयरमैन बनने के बाद रतन टाटा ने सबसे पहले उन तीन व्यक्तियों की छुट्टी की, जिन्हें जेआरडी टाटा ने कंपनी की पूरी कमान दी हुई थी। रतन टाटा को लग रहा था कि इन तीनों ने कंपनी पर कब्जा किया हुआ है इसलिए वह एक रिटायरमेंट पॉलिसी लेकर आए, जिसके तहत कंपनी के बोर्ड से किसी भी डायरेक्टर को ७५ की उम्र के बाद हटना पड़ेगा। फलस्वरूप तीनों व्यक्तियों को कंपनी से हटना पड़ा।
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने महत्वपूर्ण विस्तार किया और अब यह १०० से अधिक देशों में काम कर रहा है और मार्च २०२४ में साल के अंत पर उसने १६५ बिलियन डॉलर राजस्व में हासिल किए। वह अपनी कंपनी में नई-नई चीजें लाते रहे, जैसे भारत का पहला सुपरएप्प टाटा नेऊ। उनका ग्रुप विशाल अंतर्राष्ट्रीय एंटरप्राइज बना, जिसका पोर्टफोलियो सॉफ्टवेयर से स्पोर्ट्स कार तक बना। टाटा ग्रुप के समक्ष सबसे कठिन समय २००८ के मुंबई हमले के दौरान आया जब उसकी फ्लैगशिप होटल ताजमहल पर हमला हुआ। रतन टाटा अंतिम मुख्य उपलब्धि २०२१ में एयर इंडिया को सफलतापूर्वक टाटा ग्रुप में वापस लाना रहा। एयर इंडिया का लगभग ९० वर्ष पहले राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। रतन टाटा के निधन से शक्तिशाली टाटा ट्रस्ट्स में टॉप पर एक खालीपन आ गया है, जोकि चैरिटीज का समूह है। इस ट्रस्ट्स के पास टाटा संस का लगभग ६६ प्रतिशत हिस्सा है, जो प्रमुख लिस्टेड टाटा फर्मों को नियंत्रित करता है। शारीरिक दृष्टि से रतन टाटा की कमी हमेशा महसूस की जाएगी, लेकिन एक दुर्लभ औद्योगिक विचार के रूप में वह हमेशा जिंदा रहेंगे।
(लेखिका शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं)

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