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१९ सितंबर गणेश चतुर्थी पर विशेष : देवा श्री गणेशा देवा…सामाजिक क्रांति का पर्व है गणेशोत्सव

रमेश सर्राफ धमोरा
झुंझुनू, राजस्थान
गणेश चतुर्थी मनाने के दौरान लोग भगवान गणेश की पूजा करते हैं। गणेश हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जानेवाले देवता हैं। यह उत्सव खासतौर से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। हालांकि, अब ये हिंदुस्थान के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाने लगा है। गणेश चतुर्थी पर लोग पूरी भक्ति और श्रद्धा से ज्ञान और समृद्धि के भगवान की पूजा करते हैं।
भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी नए काम को प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान गणेश की पूजा करने के बाद प्रारंभ होने वाला कार्य हर हाल में पूरा होगा। भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। गणेश शब्द का अर्थ होता है, जो समस्त जीव के ईश अर्थात स्वामी हो। गणेश जी को विनायक भी कहते हैं। विनायक शब्द का अर्थ है विशिष्ट नायक। वैदिक मत में सभी कार्य का आरंभ जिस देवता के पूजन से होता है वही विनायक हैं। गणेश चतुर्थी के पर्व का आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्त्व है। मान्यता है कि भगवान गणेश विघ्नों का नाश करनेवाले और मंगलमय वातावरण बनाने वाले हैं। गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु सहित पूरे भारत में काफी जोश के साथ मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इन प्रतिमाओं का दस दिनों तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में लोग गणेश प्रतिमाओं का दर्शन करने पहुंचते हैं। दस दिन बाद गणेश प्रतिमाओं को समुद्र, नदी, तालाब में विसर्जित किया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार आने से दो-तीन महीने पहले ही कारीगर भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियां बनाना शुरू कर देते हैं। गणेशोत्सव के दौरान बाजारों में भगवान गणेश की अलग-अलग मुद्रा में बेहद ही सुंदर मूर्तियां मिल जाती हैं। गणेश चतुर्थी वाले दिन लोग इन मूर्तियों को अपने घर लाते हैं। कई जगहों पर १० दिनों तक पंडाल सजे हुए दिखाई देते हैं, जहां गणेश जी की मूर्ति स्थापित होती है। प्रत्येक पंडाल में एक पुजारी होता है, जो इस दौरान चार विधियों के साथ पूजा करते हैं। सबसे पहले मूर्ति स्थापना करने से पहले प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। उन्हें कई तरह की मिठाइयां प्रसाद में चढ़ाई जाती हैं। गणेश जी को मोदक काफी पसंद हैं, जिन्हें चावल के आटे, गुड़ और नारियल से बनाया जाता है। इस पूजा में गणपति को लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। इस त्योहार के साथ कई कहानियां भी जुड़ी हुई हैं, जिनमें से उनके माता-पिता पार्वती और भगवान शिव के साथ जुड़ी कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है। शिवपुराण में रुद्रसंहिता के चतुर्थ खंड में वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपने मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया था। १८९५ में पुणे के शनिवारवाड़ा में ११ गणपति स्थापित किए गए। उसके अगले साल ३१ और अगले साल ये संख्या १०० को पार कर गई। गौरतलब है कि १९०४ में लोकमान्य तिलक ने लोगों से कहा कि गणपति उत्सव का मुख्य उद्देश्य स्वराज्य हासिल करना है। आजादी हासिल करना है और अंग्रेजों को भारत से भगाना है। आजादी के बिना गणेश उत्सव का कोई महत्व नहीं रहेगा। तब पहली बार लोगों ने लोकमान्य तिलक के इस उद्देश्य को बहुत गंभीरता से समझा। आजादी के आंदोलन में लोकमान्य तिलक द्वारा गणेश उत्सव को लोकोत्सव बनाने के पीछे सामाजिक क्रांति का उद्देश्य था। लोकमान्य तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों की दूरी समाप्त करने के लिए यह पर्व प्रारंभ किया था जो आगे चलकर एकता की मिसाल बना।
लोकमान्य तिलक ने जिस उद्देश्य को लेकर गणेश उत्सव को प्रारंभ करवाया था वो उद्देश्य आज कितने सार्थक हो रहें हैं। आज के समय में पूरे देश में पहले से कहीं अधिक धूमधाम के साथ गणेशोत्सव मनाए जाते हैं। मगर आज गणेशोत्सव में दिखावा अधिक नजर आता है। आपसी सदभाव व भाईचारे का अभाव दिखता है। आज गणेश उत्सव के पंडाल एक दूसरे के प्रतिस्पर्धात्मक हो चले हैं। गणेशोत्सव में प्रेरणाएं कोसों दूर होती जा रही हैं और इनको मनाने वालों में एकता नाम मात्र की रह गयी है। इस बार हमें एक बार फिर से संगठित होकर गणेशोत्सव को इतनी ख़ुशी व धूमधाम से मनाना चाहिए जिससे समाज में एकता व भाईचारा बढ़ सके। सही मायने में तभी हमारी पूजा सार्थक हो सकेगी।

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