मुख्यपृष्ठधर्म विशेषकरवा चौथ पर विशेष : पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक है करवा...

करवा चौथ पर विशेष : पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक है करवा चौथ

आज के नए जमाने में भी हमारे देश में महिलाएं हर वर्ष करवा चौथ का व्रत पहले की तरह पूरी निष्ठा व भावना से मनाती हैं। आधुनिक होते समाज में भी महिलाएं अपने पति की दीर्घायु को लेकर सचेत रहती हैं। इसीलिए वो पति की लंबी उम्र की कामना के साथ करवा चौथ का व्रत रखना नहीं भूलती हैं। पत्नी के अपने पति से कितने भी गिले-शिकवे रहे हों मगर करवा चौथ आते-आते सब भूलकर वो एकाग्र चित्त से अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना से व्रत जरूर करती हैं। हिंदुस्थान एक धर्म प्रधान व आस्थावान देश है। यहां साल के सभी दिनों का महत्व होता है तथा साल का हर दिन पवित्र माना जाता है। हिंदुस्थान में करवा चौथ हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह हिंदुस्थान के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब का पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाएं करवा चौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।
करवा चौथ का व्रत हर साल महिलाओं द्वारा अपने पतियों के लिए किया जाता है और यह न केवल एक त्योहार है बल्कि यह पति-पत्नी के पवित्र रिश्तों का पर्व है। कहने को तो करवा चौथ का त्यौहार एक व्रत है, लेकिन यह नारी शक्ति और उसकी क्षमताओं का सवश्रेष्ठ उदाहरण है। क्योंकि नारी अपने दृढ़ संकल्प से यमराज से भी अपने पति के प्राण ले आती हैं तो फिर वह क्या नहीं कर सकती हैं। किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है, जो सुहागिन स्त्रियां अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे व्रत रखती हैं। बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। शास्त्रों के अनुसार, पति की दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचंद्र गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। करवा चौथ में दिनभर उपवास रखकर रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के अथवा तांबे के बने हुए अपनी सामर्थ्य अनुसार १० अथवा १३ करवे रखें। करवा चौथ के बारे में व्रत करनेवाली महिलाएं कहानी सुनती हैं। एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रौपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा बहना इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चांदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएं अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया।
कहते हैं कि इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी के व्रत को पूर्ण करता है तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है। हिंदुस्थान देश में चौथ माता का सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गांव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया। यहां के चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने करवाया था।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं एवं राजनैतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।)

अन्य समाचार

विराट आउट

आपके तारे