विजय कपूर
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश वी रामासुब्रह्मण्यम के नेतृत्व वाली १२ सदस्यों की चयन समिति ने विख्यात ड्रैग-फिलिकर हरमनप्रीत सिंह और पैरा एथलीट प्रवीण कुमार के नामों की सिफारिश देश के सबसे बड़े खेल सम्मान मेजर ध्यानचंद खेल रत्न के लिए की है। भारतीय हॉकी टीम को पेरिस ओलिंपिक २०२४ में कांस्य पदक दिलाने में हरमनप्रीत सिंह की प्रमुख व शानदार भूमिका थी। प्रवीण कुमार ने पेरिस पैरालंपिक २०२४ में एशियन रिकॉर्ड तोड़ते हुए पुरुष हाई जंप टी-६४ वर्ग का स्वर्ण पदक जीता था। निश्चित रूप से दोनों हरमनप्रीत सिंह व प्रवीण कुमार अपनी असाधारण उपलब्धियों के कारण इस सर्वोच्च सम्मान के योग्य अधिकारी हैं, लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि इस सम्मान सूची से शूटर मनु भाकर का नाम गायब है, जबकि तथ्य यह है कि इस साल के खेल रत्न की सबसे योग्य उम्मीदवार वही थीं।
राजनीति की बू
गौरतलब है कि पेरिस ओलिंपिक २०२४ में मनु भाकर ने शूटिंग में दो कांस्य पदक जीते थे यानी इस प्रतियोगिता में भारत ने जो कुल छह पदक जीते, उनमें से एक-तिहाई (दो पदक) उनकी प्रतिभा व प्रयासों से प्राप्त हुए थे। मनु भाकर ने भारतीय खेलों का नया इतिहास रचते हुए पहले १० मी एयर पिस्टल (महिला) का व्यक्तिगत कांस्य पदक जीता और फिर सरबजोत सिंह के साथ मिलकर मिश्रित टीम स्पर्धा में भी कांस्य पदक जीता। भारत के लिए दो व्यक्तिगत ओलिंपिक पदक जीतनेवाले खिलाड़ियों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। पहलवान सुशील कुमार (कांस्य बीजिंग २००८ व रजत लंदन २०१२), बैडमिंटन में पीवी सिंधु (रजत रिओ २०१६ व कांस्य टोक्यो २०२०) और जैवलिन में नीरज चोपड़ा (स्वर्ण टोक्यो २०२० व रजत पेरिस २०२४)। लेकिन आजाद भारत में एक ही ओलिंपिक में दो पदक जीतने का श्रेय केवल मनु भाकर के ही हिस्से में आया है। गौरतलब है कि पेरिस १९०० में भारत के लिए नार्मन प्रिटचार्ड ने दो रजत पदक जीते थे (पुरुष २००मी व पुरुष २००मी बाधा दौड़)। इसलिए खेल रत्न के लिए मनु भाकर के नाम की सिफारिश का न किया जाना अजीब लगता है, जिसमें राजनीति की बू भी प्रतीत हो रही है।
इस संदर्भ में खेल मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि मनु भाकर ने इस उच्चतम खेल सम्मान के लिए अप्लाई ही नहीं किया था, लेकिन दूसरी ओर मनु भाकर के करीबी सूत्रों का दावा है कि उन्होंने वास्तव में अपनी एप्लीकेशन खेल मंत्रालय को भेजी थी। सूत्रों की बातों में दम प्रतीत होता है, क्योंकि पेरिस में दो पदक जीतने के बाद मनु भाकर ने ‘एक्स’ पर ट्वीट किया था, ‘मुझे बताओ, क्या मैं मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड के योग्य हूं। शुक्रिया।’ अगर यह मान भी लिया जाए कि मनु भाकर ने अवॉर्ड के लिए अप्लाई नहीं किया था तो क्या चयन समिति को उनकी अविश्वसनीय उपलब्धि का स्वत: संज्ञान लेते हुए उनके नाम की सिफारिश नहीं की जानी चाहिए थी? क्या यह जरूरी है कि खिलाड़ी देश का गौरव बढ़ाने के लिए मैदान पर दिन-रात मेहनत भी करे और फिर अपने सम्मान के लिए हाथ में कटोरा लेकर भीख भी मांगे? खेल मंत्रालय और चयन समिति को तो मालूम होना चाहिए कि किस खिलाड़ी की क्या उपलब्धियां रही हैं और उसी को आधार बनाकर सम्मान / अवॉर्ड दिया जाना चाहिए, बजाय इसके कि खिलाड़ी स्वयं अर्जी डालकर हाथ फैलाए कि ‘मुझे ये अवॉर्ड दे दो’।
राहुल-सोनिया से मुलाकात
गौरतलब है कि पिछले साल तेज गेंदबाज मुहम्मद शमी ने ओडीआई विश्व कप (पुरुष) में सर्वाधिक विकेट (२४) लेने के बावजूद अर्जुन अवॉर्ड के लिए अप्लाई नहीं किया था, लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के कहने पर नेशनल स्पोर्ट्स डे अवॉर्ड्स कमेटी ने स्वत: संज्ञान लिया और शमी को अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। क्या अब भारतीय शूटिंग संघ को मनु भाकर के लिए खड़ा नहीं होना चाहिए कि उन्हें खेल रत्न दिया जाए? ध्यान रहे कि मनु भाकर को अर्जुन अवॉर्ड २०२० में दिया गया था, लेकिन उस समय उनके संभावित राजनीतिक झुकाव के बारे में किसी को कोई अंदाजा नहीं था। पेरिस में दो पदक जीतने के बाद वह भारत में सबसे पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी से मिलने के लिए गई थीं। इन मुलाकातों की फोटो मीडिया में खूब प्रचारित की गई। इसलिए अनुमान व चर्चाएं ये भी हैं कि राजनीतिक कारणों से मनु भाकर के नाम की सिफारिश खेल रत्न के लिए नहीं की गई। अगर ऐसा है तो बहुत गलत व चिंताजनक है।
खेलों में सियासत का दखल तो होना ही नहीं चाहिए। इस आदर्शवादी वाक्य के बावजूद तथ्य यह है कि राष्ट्रीय खेल पुरस्कार निरंतरता के साथ फेवर, लॉबिंग, नेटवर्किंग व सोशल मीडिया की उपस्थिति का अखाड़ा बनते जा रहे हैं। संक्षेप में वह राजनीतिक हो गए हैं। ध्यान रहे कि जब २०२० में पहलवान साक्षी मलिक को अर्जुन अवॉर्ड के लिए नहीं चुना गया था तो बहुत बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। साक्षी ने खुलकर इस बात पर आपत्ति व्यक्त की थी। साक्षी की आपत्ति पर आश्चर्य भी हुआ था, क्योंकि उन्हें २०१६ में खेल रत्न से सम्मानित किया गया था कि उन्होंने रिओ २०१६ में कांस्य पदक जीता था तो फिर वह तुलनात्मक दृष्टि से कम दर्जे के अर्जुन अवॉर्ड के लिए क्यों रो रही थीं? उनकी हरकत अजीब अवश्य थी, लेकिन आश्चर्यजनक न थी, क्योंकि अवॉर्ड का अर्थ केवल प्राइज मनी, सम्मान या प्रतिभा की मान्यता ही नहीं है, बल्कि इसका अर्थ प्रमोशन और रिटायर होने पर अधिक पेंशन भी है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों का संबंध बहुत बातों से हो गया है सिवाय खेलों के। ऐसा काफी समय से हो रहा है और हर साल स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि योग्य खिलाड़ियों को बहुत नीचे गिरना पड़ता है कि उन्हें नोटिस किया जाए या
अवॉर्ड मिल सके।
खिलाड़ी के गुरु का सम्मान
हालांकि, इस साल दो खेल रत्न के साथ ३० अर्जुन अवॉर्ड्स के लिए चयन समिति ने सिफारिश की है, जिनमें १७ पैरा एथलीट्स भी हैं, लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से नाम हैं जिन्हें सूची में होना चाहिए था, लेकिन नहीं हैं। बहरहाल, यह अच्छी बात है कि पहलवान अमन, शूटर्स सरबजोत और स्वप्निल को अर्जुन अवॉर्ड्स वाली सूची में शामिल किया गया है। भारत के पहले पैरालिंपिक स्वर्ण पदक विजेता पैरा तैराक मुरलीकांत पेटकर की सिफारिश अर्जुन की लाइफ टाइम अचीवमेंट वैâटेगरी में की गई है। पैरा शूटिंग कोच सुभाष राणा को द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित करने के लिए कहा गया है, लेकिन यह अजीब बात है कि एक्टिव पैरा एथलीट अमित कुमार सरोहा, जिन्होंने हाल ही में पेरिस में बतौर प्रतियोगी हिस्सा लिया था और पिछले आठ साल से टॉप्स से भी लाभान्वित हो रहे हैं, को भी द्रोणाचार्य पुरस्कार देने की सिफारिश की गई है। एक खिलाड़ी को गुरु वाला सम्मान वैâसे दिया जा सकता है? दरअसल, समस्या यह है कि पुरस्कार मेरिट की बजाय मनमर्जी से दिए जाने लगे हैं। भारतीय खेलों की यही त्रासदी है, तभी हम पेरिस में ७१वें स्थान पर रहे थे।
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)