डॉ. सी पी राय
संसद में १ जुलाई का दिन केवल और केवल प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी का रहा।
नई भूमिका का प्रारंभ करते ही उन्होंने बहुत आत्मविश्वास के साथ बहुत गंभीर और जिम्मेदारीपूर्ण तथा रणनीतिक हमला किया सरकार पर, भाजपा और संघ की पूरी सरकार लगातार तिलमिलाती रही पर लाचार दिखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार, अमित शाह, राजनाथ सिंह सहित कई मंत्रियों को राहुल गांधी के भाषण में बार-बार उठ-उठकर टोकाटाकी करना पड़ा और अमित शाह तो अध्यक्ष से संरक्षण मांगते हुए भी एक बार दिखाई पड़े, जिनके खड़े होने पर पहले कोई बोलता ही नहीं था। इसी तरह भूपेंद्र यादव सहित कुछ लोगों ने नियमावली से राहुल गांधी को घेरने की कोशिश तो की लेकिन राहुल गांधी पूरी तैयारी से आए थे इसलिए रुके नहीं। जब भी किसी ने टोकने की कोशिश की, राहुल गांधी ने पूरी सजगता से वहीं उसी समय उसका सटीक जवाब देकर ये बता दिया कि पिछले सालों में संघी ट्रोल आर्मी द्वारा उनके बारे में जो कुछ भी गढ़ा गया था वो ध्वस्त होने वाला है। साथ ही यह भी जता दिया कि आने वाला समय संसद में सरकार के लिए पिछले दस साल जितना आसान नहीं होगा। अब बिना काम किए केवल डरा-धमकाकर, लोकसभा अध्यक्ष की ताकत का मनमाना दुरुपयोग कर और केवल जुमलों के सहारे संसद तथा सरकार नहीं चल पाएगी।
ये अलग बात है कि गोदी मीडिया अभी भी सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। वह संसद व लोकतंत्र को भी अपमानित करते हुए राहुल गांधी को एक धर्म का अपराधी सिद्ध करने में पूरी ताकत झोंक रहा है। वैसे भी गोदी मीडिया को लोगों ने देखना बंद कर दिया है आगे इनका और पतन होगा। जनता को अदालत में क्योंकि समानांतर मीडिया, यूट्यूब और व्हॉट्सऐप के माध्यम से राहुल गांधी का भाषण इतना अधिक देखा गया और लगातार देखा जा रहा है की एक नया रिकॉर्ड बन जाने की संभावना है।
राहुल गांधी ने कल धर्म जैसे विषय को अपने तरीके से परिभाषित किया। उन्होंने शिव, बुद्ध, महावीर, ईशा और मुस्लिम धर्म को एक साथ रख कर धर्म को एक ही संदेश का वाहक सिद्ध किया तथा सभी आशीर्वाद वाली मुद्रा के हाथ को अभय मुद्रा बताते हुए बड़ी खूबसूरती से कांग्रेस के साथ जोड़ दिया। राहुल गांधी यह संदेश देने में कामयाब रहे कि सभी धर्मों का संदेश है ‘सत्य और अहिंसा’ तथा ‘डरो मत और डराओ मत’ और यही कांग्रेस की और संपूर्ण इंडिया गठबंधन की विचारधारा है। जब शिव की तस्वीर दिखाने पर लोकसभा अध्यक्ष तथा भाजपा ने विरोध किया तो तुरंत हाजिरजवाबी का परिचय देते हुए राहुल गांधी ने कई बार पूछ लिया की क्या यह शिव की तस्वीर लाना गलत है तो अध्यक्ष तथा सत्तापक्ष दोनों अपने को घिरता महसूस कर चुप हो गए। पिछले लोकसभा की भांति उसे कार्यवाही से निकालने की मांग करने की या निर्देश देने की हिम्मत भी किसी की भी नहीं हुई। राहुल गांधी द्वारा अभय मुद्रा का बार-बार जिक्र जानबूझकर किया गया और ये मुद्दा संघ तथा भाजपा पर करारा हमला तब बन गया, जब उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म अहिंसक है और वो हिंसा कर ही नहीं सकता है पर संघ और भाजपा लगातार देश मे हिंसा कर रही है तथा उसको बढ़ावा दे रही है। ये संगठन देश को डरा कर रखना चाहते हैं, लेकिन हमने उसी के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी और जनता ने वोट से इसी के पक्ष में संदेश दिया है।
राहुल गांधी ने हमला करते हुए कहा कि भाजपा सरकार पिछले दस साल से संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है इसलिए इंडिया गठबंधन ने संविधान को बचाने का प्रण ले लिया और जनता इस लड़ाई में साथ खड़ी हो गई।
राहुल गांधी ने अपने हमले की शुरुआत सीधे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से की जब उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के आसन पर दो व्यक्ति बैठे हैं एक अध्यक्ष और दूसरे ओम बिड़ला। क्यों जब अध्यक्ष चुने जाने के बाद नरेंद्र मोदी और वे स्वयं उन्हें आसन तक पहुंचाने गए तो बिड़ला जी ने मोदी जी से झुक कर हाथ मिलाया पर उनसे तने रहकर। यह दोहरा व्यवहार था। इस पर बिड़ला जी ने जब सफाई देने की कोशिश की कि मोदी जी बड़े हैं इसलिए वे झुके तो तुरंत राहुल जी ने उन्हें फिर कटघरे में खड़ा कर दिया ये कहते हुए कि लोकसभा में सबसे बड़े लोकसभा अध्यक्ष हैं और उनसे (ओम बिड़ला) बड़ा कोई नहीं, इसलिए उन्हें किसी के सामने नहीं झुकना चाहिए।
राहुल गांधी ने पिछले दस साल के जो-जो मुद्दे थे, सब एक-एक कर धारदार तरीके से उठाए। उन्होंने अग्निवीर पर सरकार को घेरा तो रक्षामंत्री राजनाथ सिंह खड़े हो गए पर राहुल गांधी ने बड़ी होशियारी से ये कहते हुए उन्हें निरुत्तर कर दिया, ‘आप कुछ कहो और मैं कुछ कहूं इससे क्या फर्क पड़ता है क्योंकि अग्निवीर की सच्चाई खुद अग्निवीर जानते हैं और सेना भी जानती है।’ जब उन्होंने किसानों को आतंकवादी कहने का और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश नहीं मानने तथा एमएसपी नहीं देने का सवाल उठाया तो शिवराज सिंह चौहान उठ खड़े हुए पर उनको भी काउंटर अटैक से राहुल ने निरुत्तर कर दिया।
राहुल गांधी ने नीट परीक्षा, किसान, मणिपुर, बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी, हिंसा, भय, अयोध्या, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, अडानी, अंबानी इत्यादि हर मुद्दे पर धारदार तरीके से सरकार को घेरा, लेकिन हमेशा की तरह इस बार न तो अध्यक्ष ने तेवर दिखा कर रोका और तुरंत भाषण का कोई हिस्सा स्पंज किया और न ही सत्ता पक्ष ने कोई हिस्सा हटाने की मांग की। हो सकता है कि बाद में उनके भाषण के कुछ हिस्से कार्यवाही से स्पंज कर दिए जाएं, लेकिन उसका ये फायदा तो होगा कि इतिहास के पन्नों में वो दर्ज नहीं रहेंगे लेकिन तीर तो कमान से निकल चुका है और अपने निशाने पर लग चुका है। करोड़ों की संख्या में देश की जनता सुन चुकी है तथा पूरा वीडियो करोड़ों लोगों के पास है, जो इतिहास से मिटने नहीं देगा। दस सालों बाद कल संसद में लोकतंत्र जिंदा दिखाई पड़ा। दस वर्षों बाद कल पक्ष और विपक्ष में संतुलन बनता दिखा। दस सालों बाद कल लोकसभा अध्यक्ष सत्ता के दबाव को भी कई बार किनारे करते दिखे। जी हां, दस साल बाद कल संसद और संविधान दोनों मुस्कुराते हुए दिखलाई पड़े स्वतंत्र और स्वच्छंद रूप से मुस्कुराते हुए।
(लेखक पूर्व मंत्री और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी मीडिया विभाग के चेयरमैन हैं।)