मनमोहन सिंह
एक हाथी के चलती ट्रेन से टकराने का तकरीबन डेढ़ मिनट का वायरल वीडियो झिंझोड़ कर रख देता है। ट्रेन से टकराने के बाद वह दूसरी पटरी पर गिर जाता है। गहरी चोट के बावजूद वह उठने और आगे के दोनों पैरों से पटरी पार करने की कोशिश करता है। उसके पीछे के दोनों पैर और पिछले हिस्सों में इतनी ताकत नहीं है कि वो खड़ा हो सके। कुछ ही क्षणों में वह गिर जाता है, रेलवे की पटरियों पर। वह उल्टा पड़ा है। उसके शरीर में कोई हरकत होती नहीं दिखती। उसके चारों पैर आकाश की तरफ है, जैसे वह हाथ जोड़कर पूछ रहा है ऊपर वाले से… उसकी क्या गलती है और उसे किस बात की सजा मिली?
यह हादसा है, असम का। रेल महकमे के लिए यह एक आम दुर्घटना है, जिसके मुताबिक असम के मोरीगांव जिले में जागी रोड रेलवे स्टेशन के पास एक तेज रफ्तार ट्रेन कंचनजंगा एक्सप्रेस की चपेट में आने से एक वयस्क हाथी की मौत हो गई। मोदी सरकार की रेलवे को उन्नत बनाने को लेकर जो सपने हैं, उन सपनों में इन जानवरों के लिए कोई जगह नहीं! इस बाबत कोई गंभीरता नहीं! उन्हें वंदे भारत के अलावा और कुछ दिखता भी नहीं! वरना क्या वजह है कि २०२२ में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव इस घोषणा, इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए इंडियन रेलवे की ट्रेन पटरियों के आस-पास फेंसिंग लगाई जाएगी, की जमीनी हकीकत घोषणा बनकर रह गई है और कंचनजंगा एक्सप्रेस ने एक और हाथी की जान ले ली है।
गौरतलब है कि इससे पहले भी २०१७ में हाथियों को पटरियों से दूर रखने के लिए ‘प्लान बी’ की घोषणा की गई थी। इसमें मधुमक्खियों के भिनभिनाने की आवाज लाउडस्पीकर के जरिए बजाया जाता है, जिससे हाथियों को सुनाई दे। हाथी ही नहीं कई बेजुबान जानवरों की जानें रेल की पटरियों पर चली जाती हैं। दिल झकझोर देने वाली बात तो यह है कि कई दफा रेल लाइनों पर चारा इसलिए रख दिया जाता है, ताकि आवारा पशु चारा खाने आएं और ट्रेन की चपेट में आकर मार जाएं।
वैâग की रिपोर्ट बताती है कि रेलवे की चपेट में आकर कितने जानवरों ने अपनी जिंदगी गंवाई हैं, आंकड़े आपको सकते में डाल सकते हैं। साल २०१७-१८ से २०२०-२१ के बीच ३ एशियाई शेरों और ७३ हाथियों के साथ ६३,००० से अधिक जानवरों की मौत रेलवे पटरियों पर हुई। इन आंकड़ों से परेशान वैâग ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर रेलवे की तरफ से इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर चिंता भी जताई थी।
वैâग की रिपोर्ट ‘परफॉर्मेंस ऑडिट ऑन डिरेलमेंट इन इंडियन रेलवे’ के मुताबिक, रेलवे को यह कन्फर्म करना चाहिए कि उन गाइडलाइंस का सख्ती से पालन हो रहा है, जिन्हें जानवरों की मौत को रोकने के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय एवं रेल मंत्रालय ने जारी किया था। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए दी गई सलाह ही इन आंकड़ों में कमी ला सकती है, लेकिन सलाह सिर्फ सलाह बनकर रह गई थी।
दरअसल, जिस वक्त रेल मंत्री कमलेश वैष्णव फेंसिंग एक्सपेरिमेंट की बात कर रहे थे, वह महीना था नवंबर २०२२ का। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, १ अप्रैल २०२२ से नवंबर २०२२ तक यानी सिर्फ सात महीनों में २,६५० से ज्यादा जानवर रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आ गए थे। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि सिर्फ सात महीनों में ढाई हजार से ज्यादा जानवर ट्रेन की चपेट में आए हैं तो डेढ़ साल से अब से भी अधिक वक्त में कितने जानवरों की जान गई होगी? वैâग ने संसद में अपनी यह चिंता जाहिर की थी । उसका पर्यावरण, वन और रेल मंत्रालय को चेताना यानी सरकार को चेताना था। मोदी सरकार इस बात का एहसास जरूर दिलाया कि वह चेती है, लेकिन जानवरों की जान के मामले में भी वह जुमलेबाजी करते नजर आई।