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हर कश से कम होता है स्पर्म काउंट: नामर्द बना रहा है धूम्रपान और धुआं

  • वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार

आज की भागमभाग दुनिया और टेंशन भरे माहौल ने इंसानों की यौन क्षमता को प्रभावित किया है। ऐसे में माता-पिता नहीं बन पानेवाले दंपतियों की संख्या बढ़ी है। पहले माना जाता था कि संतान नहीं होने का कारण महिला का बांझ होना है। ऐसे में लोग दूसरी शादी कर लेते थे। पर जैसे-जैसे विज्ञान ने तरक्की की और इस क्षेत्र में रिसर्च हुआ तो अब पता चला है कि सिर्फ महिला ही नहीं पुरुष भी बांझ होते हैं। यही वजह है कि कुछ समय पहले तक लोगों को लगता था कि बांझपन सिर्फ महिलाओं में होने वाली बीमारी है, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है, पुरुष बांझपन के भी मामले सामने आ रहे हैं। ये एक ऐसी समस्या होती है, जिसमें दंपति को सालों साल कोशिश करने के बावजूद भी गर्भधारण करने में परेशानी होती है। ९० फीसदी के करीब पुरुषों में बांझपन का कारण शुक्राणु की कमी और खराब क्वालिटी होती है। यानी सीमेन में स्पर्म काउंट कम होता है तो महिला को गर्भधारण करने में समस्या होती है। अब वैज्ञानिकों ने उन प्रमुख जोखिम कारकों की पहचान की है, जो शुक्राणु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं और जिससे पुरुष बांझपन के शिकार हो सकते हैं।
स्टडी में पाया गया कि प्रदूषण, धूम्रपान, वैरिकोसेले, मधुमेह, टेस्टिक्युलर ट्यूमर और उम्र का शुक्राणु कोशिकाओं की गुणवत्ता पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ सकता है। यह अध्ययन रिप्रोडक्टिव बायोलॉजी एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ था, जिसमें ऐसे कारकों का अध्ययन किया गया था जो शुक्राणु की आनुवंशिकता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
डीएनए विखंडन विश्लेषण
वर्तमान में शुक्राणु कोशिकाओं की कार्यक्षमता का निर्धारण करने के लिए डीएनए विखंडन विश्लेषण एकमात्र साक्ष्य-आधारित परीक्षण है। डीएनए जितना अधिक खंडित होगा, शुक्राणु की प्रजनन क्षमता उतनी ही कम होगी। इसके अलावा, यह गर्भपात के जोखिम को बढ़ा सकता है। वैज्ञानिकों ने लगभग २७,००० अध्ययनों पर अपना शोध आधारित किया, जिसे अब तक का सबसे बड़ा मेगा-विश्लेषण माना जाता है।
धूम्रपान से वीर्य की गुणवत्ता पर असर
वर्तमान अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया कि नॉन स्मोकर की तुलना में धूम्रपान करने वालों में डीएनए के विखंडन को औसतन ९.१९ फीसदी तक बढ़ा सकता है। धूम्रपान से सीमेन की क्वालिटी पर असर पड़ता है और शुक्राणु इन एक्टिव होने लगते हैं। इसके अलावा, शुक्राणु की गुणवत्ता में शराब के सेवन और शरीर के वजन की नैदानिक ​​​​रूप से महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी। क्लैमाइडिया और एचपीवी जैसे कुछ संक्रमणों ने शुक्राणु की गुणवत्ता को खराब नहीं किया, लेकिन बैक्टीरिया या अन्य यौन संचारित रोगों ने डीएनए विखंडन (८.९८ प्रतिशत और ५.५४ प्रतिशत) में वृद्धि दिखाई।
महिलाओं में बढ़ रहा है बांझपन
महिलाओं की तरह ही उम्र के साथ कम स्पर्म काउंट और बांझपन का खतरा बढ़ जाता है। ३० साल के बाद टेस्टोस्टेरोन स्तर के उत्पादन में कमी आती है, जो शुक्राणु उत्पादन को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। वहीं ४० से ७० साल की उम्र के पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन होने की संभावना ३ गुना बढ़ जाती है, जिससे कम संख्या में शुक्राणु निकलता है। वहीं कोकीन और मरिजुआना जैसी नशीले पदार्थ का लंबे समय तक इस्तेमाल शुक्राणुओं की कमी का कारण बनता है.

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