जिंदगी में बहार

जिंदगी की बहार आ गई
जिंदगी की बहार पीछे-पीछे भागती गई
ले मैं आ गई तेरे लिए
मैं तेरे को छोड़ के कभी न जाऊं
मैं तेरे लिए ही बनी हूँ
मुझे तेरे लिए ही भेजा गया है
तू जितना मर्ज़ी खेल मुझसे
मैने तेरा ही दामन थामा है
तेरे पास गम को फटकने न दूँ मैं
तेरी जिंदगी में ख़ुशी लाती रहूं मैं

जिंदगी की बहार चली गई
ज़िन्दगी की बहार हाथ में आते आते छूट गई
क्यूं गुम हो गई यह बहार
क्यूं छिन्न गई यह बहार
रूठी तकदीर को क्या मंज़ूर है
बहार अपनी आग़ोश में क्यूं नहीं लेती
दबे पाऊं गुज़रती है
किसी ओर की जिंदगी में चली जाती है
बीती हुई बहार क्यूं लौट के नहीं आती
जीवन में रंग क्यूं नहीं भरती

जीवन की बहार की डोर को पकड़े रखो
कहीं कट गई कहीं लुप्त हो गई
जीना ही भारी पड़ जायेगा

अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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