अभिषेक कुमार पाठक / मुंबई
महाराष्ट्र के गांवों और कस्बों तक पहुंचनेवाली एसटी बसें, जिन्हें ‘लाल परी’ के नाम से जाना जाता है, कभी यात्रियों की पहली पसंद हुआ करती थीं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इन बसों में होनेवाले हादसों ने लोगों के इस भरोसे को बुरी तरह हिला दिया है। २०१८ से २०२४ तक के आंकड़े चौंकानेवाले हैं। ६ सालों में १५,७६७ बस दुर्घटनाओं में १,९९६ यात्रियों की जान जा चुकी है। इन आंकड़ों से न सिर्फ यात्रियों में डर बढ़ा है, बल्कि एसटी बसों की सुरक्षा और प्रबंधन पर भी गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
एसटी बसों की बढ़ती दुर्घटनाओं और घटती सेवाओं के चलते, खासकर युवा यात्रियों का झुकाव अब निजी वाहनों, ट्रेनों और हवाई जहाजों की ओर बढ़ रहा है। युवा वर्ग का मानना है कि एसटी बसों में न केवल सुविधाओं की कमी है, बल्कि ये यात्रा सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा प्राइवेट बसों की सुविधाओं और सेवाओं ने एसटी बसों की लोकप्रियता को कमतर कर दिया है। हालांकि, प्राइवेट बस दुर्घटनाओं के आंकड़ों में भी इजाफा हुआ है, लेकिन फिर भी यात्रियों का रुझान प्राइवेट बस सेवाओं की ओर बढ़ता जा रहा है। एसटी प्रशासन ने हादसों की संख्या कम करने के लिए नई बसों और तकनीकी सुधारों का वादा किया है, लेकिन पिछले ६ सालों के आंकड़े दर्शाते हैं कि यह सुधार या तो अपर्याप्त हैं। चालकों की ट्रेनिंग और बसों के रखरखाव पर ध्यान देने के बावजूद हादसों की संख्या में गिरावट दिखाई नहीं दिखाई जा रही है।