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२० साल में आसमान से गायब हो सकते हैं तारे! साइंटिस्ट बोले- आकाश का रंग हो रहा धुंधला, हर साल बढ़ रही १० फीसदी नाइट स्काई ब्राइटनेस

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
साइंटिस्ट्स का कहना है कि आने वाले २० सालों में लोग तारे नहीं देख सकेंगे। उन्होंने इसकी वजह लाइट पॉल्यूशन को बताया है। ‘द गार्डियन’ के मुताबिक, ब्रिटिन में रहने वाले खगोलशास्त्री (एस्ट्रोनॉमर) मार्टिन रीस ने कहा कि लाइट पॉल्यूशन के कारण आकाश का रंग धुंधला हो रहा। आसान शब्दों में कहें तो अब आकाश का रंग काला नहीं हल्का ग्रे दिखाता है। कुछ ही तारे दिखाई देते हैं। लाइट पॉल्यूशन आर्टिफिशियल लाइट, मोबाइल-लैपटॉप जैसे गैजेट्स, शोरूम्स के बाहर लगी लाइटें, कार की हेडलाइट या फिर होर्डिंग्स की आकर्षित करती तेज रोशनी के कारण है। २०१६ में एस्ट्रोनॉमर्स ने कहा था कि पिछले कुछ सालों में लाइट पॉल्यूशन बढ़ा है। हर साल नाइट स्काई ब्राइटनेस १० फीसदी बढ़ रही है। साइंटिस्ट्स ने कहा था कि लाइट पॉल्यूशन के कारण दुनिया की एक तिहाई से ज्यादा आबादी को आकाशगंगा (मिल्की वे) दिखाई नहीं देती है। अब जर्मन सेंटर फॉर जियोसाइंस के क्रिस्टोफर क्यबा ने कहा कि पैदा हुए बच्चे को १८ साल बाद सिर्फ १०० तारे ही दिखाई देंगे यानी वो बच्चा जब तक १८ साल का होगा वो आसमान में सिर्फ १०० ही तारे देख पाएगा।
लाइट से शरीर के
ग्लूकोज लेवल में इजाफा
दरअसल, जो लोग हर वक्त आर्टिफिशियल लाइट्स के संपर्क में रहते हैं, उनके शरीर का ग्लूकोज लेवल बिना कुछ खाए ही बढ़ने लगता है। इससे हमारे शरीर में बीटा सेल्स की सक्रियता कम हो जाती है। इस सेल की सक्रियता की वजह से ही पैंक्रियाज से इंसुलिन हॉर्मोन रिलीज होता है। डॉ. जू ने कहा कि आर्टिफिशियल लाइट का अधिकतम संपर्क सारी दुनिया के आधुनिक समाज की समस्या है और यह डायबिटीज होने की एक और बड़ी वजह बन गया है। लाइट पॉल्यूशन से असमय मर रहे हैं कीड़े-मकोड़े
लाइट पॉल्यूशन से इकोलॉजिकल खतरा भी है। शंघाई के रुईजीन अस्पताल के डॉक्टर यूजू ने कहा कि अमेरिका और यूरोप के ९९ फीसदी लोग लाइट प्रदूषण वाले आसमान के नीचे रहते हैं। धरती का २४ घंटे का दिन-रात का क्लॉक होता है। यह सूरज की रोशनी और अंधेरे से तय होता है। यह इस ग्रह पर रहने वाले हर जीव पर लागू होता है, लेकिन इंसानों ने इसमें छेड़छाड़ कर दी है। लाइट पॉल्यूशन की वजह से कीड़े-मकोड़ों, परिंदों और कई जानवरों का जीवन चक्र ही बदल गया है। इसमें समय से पहले ही इनकी मौत हो रही है और इससे दुनिया भर में जैव विविधता का भी बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है।

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