–सुरेश एस डुग्गर–
चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियर), २१ जून। कल यानी २२ जून बृहस्पतिवार को रामगढ़ सेक्टर में इस चमलियाल सीमांत पोस्ट पर आयोजित किए जा रहे बाबा चमलियाल के मेले में इस बार भी लगातार ६ठी बार भी दोनों मुल्कों के बीच ‘शक्कर’ और ‘शरबत’ नहीं बंटेगा क्योंकि इस बार भी पाक रेंजरों ने अड़ियल रवैया अपनाते हुए भारतीय पक्ष के सभी न्यौतों को अस्वीकार कर दिया।
जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है, वह बाबा दीलिप सिंह मन्हास की समाधि है। इसके बारे में प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चंबल नामक चर्म हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था। उसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली। इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढ़ने लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनका गला काटकर उनकी हत्या कर डाली। बाद में उनकी हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है कोई जानकारी नहीं है।
इस मेले का एक अन्य मुख्य आकर्षण भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा ट्रॉलियों तथा टैंकरों में भरकर ‘शक्कर’ तथा ‘शर्बत’ को पाक जनता के लिए भिजवाना होता था। इस कार्य में दोनों देशों के सुरक्षा बलों के अतिरिक्त दोनों देशों के ट्रैक्टर भी शामिल होते हैं और पाक जनता की मांग के मुताबिक उन्हें प्रसाद की आपूर्ति की जाती रही है, जिसके अबकी बार भी संपन्न होने की उम्मीद खत्म हो चुकी है। यह लगातार ६ठी बार होगा कि पाक रेंजर पवित्र चद्दर को बाबा की दरगाह पर चढ़ाने के लिए नहीं ला पाएंगे, जिसे पाकिस्तानी जनता देती है और न ही वे प्रसाद को स्वीकार करेंगे।
दरअसल, परंपरा के अनुसार पाकिस्तान स्थित सैदांवाली चमलियाल दरगाह पर वार्षिक साप्ताहिक मेले का आगाज गुरुवार को होता है और अगले गुरुवार को समापन। भारत-पाक विभाजन से पूर्व सैदांवाली तथा दग-छन्नी में चमलियाल मेले में शरीक हुए बुजुर्ग गुरबचन सिंह, रवैल सिंह, भगतू राम व लेख राज ने बताया कि यह ऐतिहासिक मेला है। पाकिस्तान के गांव तथा शहरों के लोग बाबा की मजार पर पहुंचकर खुशहाली की कामना करते हैं। भारत-पाक के बीच सरहद बनने के बाद मेले की रौनक कम हो गई। पहले मेले के सातों दिन बाबा की मजार पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। वर्तमान में मेले के आखिरी तीन-चार दिन ही अधिक भीड़ रहती है। जिस दिन भारतीय क्षेत्र दग-छन्नी स्थित बाबा चमलियाल दरगाह पर वार्षिक मेला लगता है, उस दिन पाकिस्तान को तोहफे के तौर पर पवित्र शरबत और शक्कर भेंट किए जाते हैं। भेंट किए गए शरबत शक्कर को सैदांवाली स्थित चमलियाल दरगाह ले जाकर संगत को बांटा जाता है। पाक श्रद्धालु कतारों में लगकर बाबा के पवित्र शरबत-शक्कर को हासिल करते हैं।
वर्ष २०२० और २०२१ में कोरोना के कारण इस मेले को रद्द कर दिया गया था और वर्ष २०१८ व २०१९ में पाक रेंजरों ने न ही इस मेले में शिरकत की थी और न ही प्रसाद के रूप में ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ को स्वीकारा था, क्योंकि वर्ष २०१८ में १३ जून के दिन पाक रेंजरों ने इसी सीमा चौकी पर हमला कर चार भारतीय जवानों को शहीद कर दिया था तथा पांच अन्य को जख्मी। तब भारतीय पक्ष ने गुस्से में आकर पाक रेंजरों को इस मेले के लिए न्यौता नहीं दिया था। पर अबकी बार उन्होंने किसी भी न्यौते को स्वीकार नहीं किया। नतीजतन, देश के बंटवारे के बाद से चली आ रही परंपरा इस बार भी टूट जाएगी। वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है कि यह परंपरा टूटने जा रही हो, बल्कि अतीत में भी पाक गोलाबारी के कारण व अन्य कई कारणों से कई बार यह परंपरा टूट चुकी है।