सामना संवाददाता / धार
धार जिले में दूसरे कोरोना काल के दौरान बड़ौदा के एक निजी अस्पताल में उपचार के दौरान चिकित्सकों द्वारा एक व्यक्ति को मृत घोषित कर उसका वहीं अंतिम संस्कार कर दिया गया था। लेकिन ठीक दो साल बाद अचानक मृतक के जीवित घर लौटने पर परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि, इस दौरान वह किसी गिरोह के द्वारा बंधक बनाकर प्रताड़ित किए जाने की बात कह रहा है। जैसे ही मौका मिला, वह बदमाशों के चंगुल से भागकर अपने मामा के घर सरदारपुर तहसील में पहुंच गया और वहां से पुलिस को सूचना दी। बता दें कि ग्राम कड़ोदकला निवासी कमलेश साल २०२१ में कोरोना हो गया था। कोरोना उपचार के लिए उसे बड़ौदा के निजी अस्पताल ले जाया गया था। यहां उपचार के दौरान डॉक्टरों ने कमलेश को मृत घोषित कर दिया था। अस्पताल की सूचना पर परिजन पहुंचे। किंतु कोरोना पॉजिटिव होने से परिवार वालों को मृतक का शव दूर से ही दिखाया गया था। पॉलीथीन में लिपटी देह को पुष्टि के साथ पहचानना संभव नहीं था। किंतु डॉक्टरों के कहने पर परिवार वालों ने उसे कमलेश ही मान लिया था। कोरोना संक्रमित होने से मौत होने पर कोविड टीम ने उसका बड़ोदरा में ही अंतिम संस्कार कर दिया।
विधवा का जीवन बिता रही थी पत्नी
अस्पताल प्रबंधन के रिकॉर्ड के अनुसार, मृत मानकर परिवार वालों ने घर पर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए शोक निवारण कार्यक्रम की रस्म का आयोजन भी कर दिया था। बेटे के निधन से पिता गेंदालाल गहरे सदमे में पहुंच गए थे, जो आज तक भी उबर नहीं पाए। वहीं, पत्नी भी दो साल से विधवा का जीवन व्यतीत कर रही थी। किंतु जैसे ही कमलेश के जीवित होने की सूचना मिली तो उनके गमगीन चेहरों पर खुशियों की रौनक लौट गई।