एक पल के लिए अगर
समय ठहर जाए तो
मैं अतीत के पन्नों को खोलूं
और मिटा दूं
दु:ख की स्मृतियां।
मगर फिर ये चंचल मन बोलता है
सदियों से बंद कंठ खोलता है
झिलमिलाने लगती हैं
यादों की लड़ियां,
टूटने लगती हैं
संघर्षों की कड़ियां।
भला दुख के बिना
सुख कहां है?
जहां खट्टी-मीठी यादें हैं,
खूबसूरत सा एक
जीवन वहां है।
समय ठहर जाए एक पल
तो याद करूं
सुख-दुख की युगल कथा
और भूल जाऊं,
जीवन की करुण व्यथा।।
कवि योगेंद्र पांडेय
देवरिया, उत्तर प्रदेश