मैंग्रोव्सया तीवर समुद्र और धरती के बीच बफर जोन हैं-वन भूमि, उद्यानों और खार भूमि के साथ ही मुंबई की प्राकृतिक संपदा का महत्वपूर्ण अंग। महाराष्ट्र के मछुआरे अपना जीवन स्रोत मानकर इनकी पूजा करते हैं। मुंबई के समुद्र को और विशिष्ट बनाती है कोरल रीफ समुद्र की रंग-बिरंगी चट्टानें।
विमल मिश्र
मुंबई के गिर्द मैंग्रोव्स की घनी बसाहट है, जहां हजारों किस्म के जीव-जंतुओं की एक बड़ी अनूठी दुनिया बसती है। मुंबई बंदरगाह के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी समुद्री किनारों पर इनकी बहुतायत है। समुद्र और धरती के विभाजक ये मैंग्रोव्स मुंबई में न सिर्फ प्रदूषण को अवशोषित करते हैं, बल्कि हवा, पानी, तूफान, बाढ़ व अन्य कारणों से होने वाले जमीन के कटाव को रोकने का काम भी कर रहे हैं। ये मैंग्रोव्स सैकड़ों किस्म की मछलियों का जन्म स्थान हैं और यहां बनीं कोरल रीफ या मूंगे की चट्टानें (इन्हें प्रवाल भित्ति या प्रवाल शैल भी कहते हैं।), समुद्री घास, मछलियों, शंखों और अन्य जीव-जंतुओं और हजारों-लाखों किस्म की माइक्रो लाइफ के जीवों की संरक्षक। मुंबई और पास का मालवण हार्बर समृद्ध वन्यजीव अभयारण्य ही नहीं, दुर्लभ माइग्रेटरी बर्ड्स और फ्लेमिंगो के साथ ३४१ प्रकार की मछलियों व वनस्पतियों और ११ प्रकार के मूंगों की प्रजातियों का ठिकाना है। मालवण अपने कोरल रीफ अभयारण्य के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध हुआ है। कोरल रीफ समुद्र के गर्म और उथले समुद्री जल में पाई जाने वाली रंग-बिरंगी चट्टानें हैं, जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए वैâल्शियम कार्बोनेट से बनती हैं। मुंबई में मरीन ड्रॉइव, कोलाबा में गीता नगर, हाजी अली और वर्ली के तटीय समुद्र में इनकी अच्छी तादाद है। कोस्टल रोड के निर्माण के दौरान क्षति न पहुंचे इसलिए इन्हें हटाकर कुछ दूर शिफ्ट किया गया। वर्ली कोलीवाडा के निकट समुद्र में २१० कृत्रिम कोरल रीफ भी स्थापित की जा रही हैं। पुडुचेरी के बाद देश में यह अपनी तरह का दूसरा प्रयास है। मैंग्रोव्स के मौजूदा खतरे को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने कुछ समय पहले मुंबई, ठाणे और नई मुंबई में ऐसे ६,१३५ हेक्टेयर इलाके को ‘रिजर्व फॉरेस्ट’ घोषित किया है। मुंबई शहर के मैंग्रोव्स की सुरक्षा के उद्देश्य से प्रदेश के वन विभाग ने एक हाई-टेक सीसीटीवी वैâमरा नेटवर्क स्थापित करने के लिए १२० करोड़ रुपए का टेंडर जारी किया है। इस तरह बनी निगरानी प्रणाली मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) को दहिसर से पंजे वेटलैंड और कोलाबा से पनवेल तक कवर करने वाली है।
प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं के रक्षक
कठिन से कठिन हालात में फल-फूल सकने की अपनी क्षमता के कारण प्रकृति के लचीलेपन का उत्तम उदाहरण है मैंग्रोव्स। आप इन्हें समुद्र और धरती के बीच बफर जोन कह लीजिए। मैंग्रोव्स प्राणी विविधता और वन्यजीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। मैंग्रोव्ज (जो मुंबई में ‘तीवर’ कहलाते हैं) की मछुआरे अपना जीवन स्रोत मानकर पूजा करते हैं। मैंग्रोव्स केवल मछलियों का पालन क्षेत्र नहीं हैं, वे कई किस्म की औषधियों का उत्पादन क्षेत्र भी हैं, जबकि उनकी लकड़ियों का उपयोग मछुआरे जलावन र्इंधन से लेकर फर्नीचर बनाने तक में करते हैं। दुनियाभर के मैंग्रोव्सका पांच फीसदी हिस्सा अकेले भारत में है। वेटलैंड्स और मैंग्रोव्स में पानी रोकने और जब्त करने की क्षमता शामिल है। ये न सिर्फ प्रदूषण को अवशोषित करने, बल्कि हवा, पानी, तूफान, बाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले जमीन के कटाव को रोकने का काम करते हैं, बल्कि सैकड़ों किस्म की मछलियों का जन्मस्थान भी हैं। कोरल रीफ समुद्री घास के उत्पादन में मदद कर मछलियों, शंखों और अन्य जीव-जंतुओं और हजारों-लाखों किस्म के माइक्रोलाइफ जीवों का संरक्षण भी करते हैं। दुनियाभर के मैंग्रोव्स का पांच फीसदी हिस्सा अकेले भारत में है। मुंबई तट के मैंग्रोव्स वन्यजीव अभ्यारण्य ही नहीं, दुर्लभ माइग्रेटरी बर्ड्स और फ्लेमिंगो का ठिकाना भी है। कोलाबा, मलबार हिल और शिवड़ी-माहुल इलाके, माहिम, बांद्रा, वर्सोवा, मढ़ आइलैंड इलाके, मालाड के एवरशाइन नगर, मालवणी, गोराई, मनोरी व मढ़ आइलैंड इलाके, दहिसर पूर्व, मीरा रोड, ठाणे-घोड़बंदर, ऐरोली, वसई खाड़ी, आदि इलाकों में मैंग्रोव्ज के सघन वन हैं। मढ़ आइलैंड का शुमार तो देश की ३८ नेशनल मैंग्रोव्स साइट्स में किया जाता है।
विक्रोली मैंग्रोव्स
बोरिवली के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान, गोरेगांव की आरे कॉलोनी और माहिम निसर्ग उद्यान के साथ मुंबई चौथा हरियाला फेफड़ा कौन? जवाब है विक्रोली मैंग्रोव्स। ठाणे खाड़ी के पश्चिमी छोर पर २,००० एकड़ में शाखाओं प्रशाखाओं में पैâला, सघन वनयुक्त विक्रोली मैंग्रोव्स दरअसल, बोरिवली नेशनल पार्क और आरे कॉलोनी के बाद तीसरा विशालतम हरित क्षेत्र है। न्यूयॉर्क से प्रसिद्ध सेंट्रल पार्क से भी तीन गुना बड़ा। ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर मेहराबयुक्त का गोदरेज इंडस्ट्रीयल गोल्डन टाउनशिप मैंग्रोव्स इकोसिस्टम्स का बड़ा सा एक गेट इस रहस्यलोक में पहुंचने का रास्ता है। निजी स्वामित्व में यह मुंबई का सबसे विशाल मैंग्रोव्ज है। विडंबना यह है कि रोज इससे होकर गुजरने वाले आधे से ज्यादा मुंबईकर भी इसे अस्तित्व से बेभान हैं। ऐरोली मैंग्रोव्स के साथ इसकी गणना भारत के १२ विरल मैंग्रोव्स फॉरेस्ट में होती है।
विक्रोली मैंग्रोव्स पक्षियों की २०८, तितलियों की ८२, रेंगने वाले जीवों की ३१, स्तनपाइयों की चार, मछलियों की २२, केकड़ों की १४, झींगों की सात, मकड़ी की ७९ और कीड़ों की ७५ प्रजातियों का घर है। यहां छह लाख टन कॉर्बन संग्रहीत है और यह हर वर्ष मुंबई शहर को ५०,००० टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाता है। यहां कायम पर्यावरण सेल को डॉ. सालिम अली, एच. एन. सेठना, ए. के. गांगुली और एन. वासुदेवन सरीखे दिग्गजों द्वारा मार्गदर्शन का सौभाग्य हासिल है। इसे एक पूरी तरह समर्पित वेटलैंड मैनेजमेंट सर्विसेज की भी सेवा हासिल है। कुछ समय पहले इसने एक मैंग्रोव्स ऐप भी लॉन्च किया है।
मैंग्रोव्स पार्क
पर्यावरणविद देबी गोयनका ने मैंग्रोव्स पार्क का प्रस्ताव २००७ में किया था-हॉन्ग कॉन्ग के माई पो वेटलैंड पार्क की तर्ज पर। सरकार ने २००९ में इसे मंजूरी भी दे दी थी, पर वर्षों तक यह योजना कागज से ही आगे नहीं बढ़ी। महाराष्ट्र सरकार के मैंग्रोव्स सेल ने बीते वर्षों में मैंग्रोव्स पार्क कायम करने सरीखे कई कदम उठाए हैं। भांडुप पंपिंग स्टेशन पर फ्लेमिंगो को देखने के लिए मछुआरों की बोट्स पर आपको दूरबीन से लैस सैलानी दिख जाएंगे। ऐरोली में कुछ ही समय पहले मैंग्रोव्स और मरीन जैव-विविधता केंद्र सार्वजनिक भ्रमण के लिए खुला है। यह फ्लेमिंगो अभयारण्य से घिरा है। नई मुंबई में नेरूल के पास पॉम बीच रोड के गिर्द ऐसे दो पार्क कायम करने की योजना को भी महाराष्ट्र के वन विभाग ने कुछ समय पहले हरी झंडी दिखाई है। दर्शक गाइडेड टूर, विजिटर गैलरी, वैâफेटेरिया, आदि से लैस इस मैंग्रोव्स पार्क और वहां बसने वाले पक्षियों व घड़ियालों आदि का स्कॉईवॉक से दीदार करेंगे। महाराष्ट्र सरकार महानगरपालिका के साथ मिलकर करीब २७ करोड़ रुपए की लागत से गोराई जेटी के निकट भी एक सौर ऊर्चा चालित मैंग्रोव्स पार्क विकसित करने जा रही है। दहिसर और कांजुर मार्ग जैसी जगहों पर भी ऐसे उद्यान बनाने की योजना है। उरण और ठाणे के जैव विविधता पार्क भी लोकप्रिय होने लगे हैं। जुहू-वर्सोवा लिंक रोड के समानांतर सागर से लगी एक पट्टी पर भी एक ऐसा पार्क है, जिसे वर्सोवा अंधेरी इनवॉयरनमेंट फोरम ने विकसित किया है। (जारी)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)