विमल मिश्र
मुंबई
मुंबई के साल्टपैन लैंड्स बाढ़ के मामले में प्राकृतिक बफर का काम करते हैं। यह वक्त है कि हम सावधान हो जाएं क्योंकि खारभूमि के अनियोजित विकास से पानी के निकास का कोई रास्ता ही नहीं बचेगा और मुंबई को एक बार फिर २००५ के जलप्लावन जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
मुंबई के साल्ट पैन लैंड इतने विशाल हैं कि दक्षिण मुंबई के ओवल जैसे ८० मैदान भी उसके लिए छोटे पड़ें। देश के नौ राज्यों में फैली खार भूमि में ६१,३७० एकड़ केंद्र सरकार के ताबे में है। इसमें १३,००० एकड़ खार भूमि अकेले महाराष्ट्र में है। मुंबई में सबसे अधिक ५,४०० एकड़ भूमि है। नमक के ये खेत पूर्वी उपनगरों में घाटकोपर, चेंबूर, तुर्भे, मांडले, अणिक, शिवड़ी, वडाला, कांजुरमार्ग, भांडुप, नाहुर व मुलुंड और पश्चिमी उपननगरों में मालवणी, दहिसर, मीरा-भाइंदर, नायगांव, वसई और विरार में फैले हुए हैं।
किसके पास?
मुलुंड-भांडुप में ८८२ एकड़ ईस्टर्न फ्री वे के दोनों ओर : वालावलकर परिवार।
कांजुरमार्ग और भांडुप में ५०० एकड़ से अधिक : गरोडिया परिवार और मोहम्मद यूसुफ खोत ट्रस्ट।
कांजुरमार्ग, भांडुप और नाहुर में ४६७ एकड़ ईस्टर्न फ्रीवे के दोनों ओर : बोमनजी परिवार।
मालाड : बैरमजी जीजीभॉय परिवार।
कुर्ला : ए.एच. वाडिया ट्रस्ट।
कांदिवली, बोरिवली, दहिसर : वीकायल प्रापर्टीज।
गोरेगांव : ई.ई. दिनशा ट्रस्ट (नुस्ली वाडिया)।
सुरक्षा दीवार
‘साल्टपैन लैंड्स बाढ़ के मामले में प्राकृतिक बफर का काम करते हैं। उनके अनियोजित विकास से पानी के निकास का कोई रास्ता ही नहीं बचेगा।’ पर्यावरण एक्टिविस्ट नंदू पवार बताते हैं, ‘मुंबई के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी समुद्री किनारों पर स्थित तमाम साल्ट लैंड्स, वेटलैंड्स या मार्शलैंड प्रदूषण को अवशोषित करने के साथ हवा, पानी, तूफान, बाढ़ व अन्य कारणों से होनेवाले जमीन के कटाव को रोकने का ही काम नहीं करते, जून से सितंबर तक, खासकर बारिश के महीनों में जब नमक पैदावार का सीजन खत्म हो जाता है, मछुआरों की जीविका का साधन भी बनते हैं। यह वह वक्त होता है जब मछुआरे मछलियां पकड़ने गहरे समुद्र में नहीं जा पाते। ज्वार के वक्त खाड़ी का पानी खेतों में इकट्ठा हो जाता है, जिसे चैनलों के जरिए लाकर खेतों में ही विशेष रूप से बनाए तालाबों में संग्रहित किया जाता है। इस वक्त ये खेत मछलियों की पैदावार का स्रोत भी बनते हैं।
दु:ख की बात है कि दूरदर्शिता के अभाव, अनियोजित विकास, अवैध निर्माण व अतिक्रमण, मैंग्रोव्ज, खारभूमि व वॉटर बॉडीज के विनाश और मलबे की डंपिंग जैसे कारणों से मुंबई में अब महज पांच सौ हेक्टेयर वेटलैंड्स बच पाए हैं-पिछले दशक में अपने मूल आकार का दसवां हिस्सा। यह तब है, जब ग्लोबल वॉर्मिग और क्लाइमेट चेंज का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। विश्व बैंक ने आगाह किया है कि मुंबई में समुद्र का स्तर २०५० तक ३५ सेंटीमीटर और २०८० तक ६० सेंटीमीटर बढ़ जानेवाला है। अनियोजित विकास, मौसम बदलाव और पर्यावरण की अनदेखी से हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही है। २००५ मुंबई और २०१५ में चेन्नई में आई भीषण बाढ़ के रूप में हम इसका दुष्परिणाम देख चुके हैं।
बिल्डिंग तानने की तैयारी
मैंग्रोव्ज माफिया के लिए आफत माने जानेवाले नंदू पवार ने जबसे खार भूमि को लेकर राज्य सरकार और बिल्डरों के ताजा मंसूबों के बारे में सुना है, उनकी बेचैनी बढ़ गई है। कानूनी अंकुश और मुकदमेबाजी की रुकावटों के बावजूद महाराष्ट्र सरकार ५,४०० एकड़ में पैâले इस बेशकीमती ओपन स्पेस का बड़ा हिस्सा आवासीय परियोजनाओं और चुनिंदा इंप्रâा प्रोजेक्ट्स के लिए खोलना चाहती है और इसके लिए केंद्र सरकार से कोस्टल रेगुलेशन जोन के कड़े नियमों से रियायतें चाहती है, जबकि बिल्डर लॉबी खार भूमि के निजी स्वामियों को लुभावने ऑफर्स से पटाकर नमक पैदा करनेवाली इस जमीन पर एक नई मुंबई बसा देने की ताक में है। मेट्रो कार शेड को लेकर छिड़ा विवाद भी ज्यादा पुरानी बात नहीं है।
मुंबई की खार भूमि बहुत विशाल है। बहरहाल, खार भूमि के कई निजी स्वामियों के इस वक्त सरकार के साथ मुकदमे चल रहे हैं और कई बिल्डरों व डेवलपर्स की लोलुप निगाहें सरकार के पैâसलों पर हैं। पिछली सरकारें मुंबई की हर उपलब्ध जमीन का उपयोग कर चुकी हैं। लिहाजा, अफोर्डेबल हाउजिंग के लिए जमीन अब बची ही नहीं है। ऐसे में घुमा-फिराकर सारा दारोमदार खार भूमि पर ही आ गया है। जाहिर है, जमीन की आसमान छूती कीमतों के बीच इन्हें विकास के लिए खोलने पर वारे-न्यारे हो जानेवाले हैं। बिल्डर लॉबी उन्हें डेवलपमेंट के लिए मोटी रकम (जो अरबों में है) के साथ बिल्डअप एरिया का खासा बड़ा हिस्सा देने को भी राजी है। इन जमीनों की लीज खत्म है और गुजर गई किसी भी लीज का नवीनीकरण नहीं किया गया है। इनमें कइयों से मिल्कियत को लेकर मुकदमेबाजी चल रही है।
विकास के नाम पर मुंबई महानगरपालिका और राज्य सरकार की गिद्ध दृष्टि हमेशा से इस कमाऊ जमीन पर रही है। समस्या यह है मुंबई की ८४ प्रतिशत खार भूमि कोस्टल जोन रेगुलेशन एक्ट में आने के कारण वहां किसी तरह का निर्माण कार्य प्रतिबंधित है इसलिए कानूनन, मुंबई की कोई खारभूमि विकसित नहीं की जा सकती। ‘वनशक्ति’ के प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर स्टालिन दयानंद बताते हैं, ‘इसलिए सरकार अब कानून बदलवाने पर ही आमादा है।’
अतिक्रमण का शिकार
मुंबई के नए ड्राफ्ट डेवलपमेंट प्लान के अनुसार मुंबई की हद में ५,३७९ एकड़ जमीन खार भूमि है। इसमें ४,३१६ एकड़ भूमि कोस्टल जोन रेगुलेशन एक्ट या फॉरेस्ट लैंड में आने के कारण उसका विकास संभव नहीं है। इस भूमि का एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमण का शिकार है। सरकारी अतिक्रमणों-सीवेज प्लांट, श्मशान यहां तक कि सरकारी स्टाफ क्वार्टर्स सहित। अकेले ईस्टर्न एक्सप्रेस-वे बनवाने के लिए राज्य सरकार ने ४८३ एकड़ जमीन अधिगृहीत की है। ३७० एकड़ भूमि पर १,९७० के दशक से बड़े हाउजिंग प्रोजेक्ट काबिज हैं। मसलन, छेड़ा नगर, घाटकोपर (१४० एकड़), बांगुर नगर, गोरेगांव (९७ एकड़) और गरोडिया नगर, घाटकोपर। ४४ एकड़ खार भूमि पर झोपड़पट्टियों का कब्जा है। विशेषज्ञों ने कई वजहों से इस जमीन पर घर बनाने के खतरों के प्रति आगाह किया है। मसलन, लगातार नमक बनाने के कारण खार भूमि की मिट्टी का कमजोर हो जाना। कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट के प्रमुख देबी गोयनका ने बताया, ‘बिल्डर और डेवलपर पहले ही सरकारी आवास और पुनर्वास योजनाओं को अलाभकारी बताकर बढ़े हुए एफएसआई की मांग कर रहे हैं। उम्मीद कम है कि ये जमीनें उनके लिए खोले जाने पर वे उसके विकास में बढ़-चढ़कर भाग लें। कारण, इन जगहों पर बुनियादी ढांचा या तो है ही नहीं या फिर ठीक से विकसित नहीं है। खार भूमि के लिए मुआवजे के परिमाण को देखते हुए सरकार को इस इलाके को विकास के लिए खोलने से पहले दो बार सोचना होगा।’
(समाप्त)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)