विमल मिश्र
मुंबई की शकुंतला भगत भारत की पहली महिला सिविल इंजिनियर थीं। उनके और उनके परिवार द्वारा भारत ही नहीं, दुनिया भर में बनवाए गए २०० पुलों ने उनका नाम अमर कर दिया है।
शकुंतला भगत के स्लाइड रूल में जादू था। इसी स्लाइड रूल से उन्होंने भारत में लगभग १०० पुलों का निर्माण किया। परिवार के साथ मिलकर उन्होंने दुनियाभर में लगभग २०० पुलों का डिजाइन तैयार किया और भारत की पहली महिला सिविल इंजीनियर कहलार्इं।
६ फरवरी, १९३३ में मुंबई में जन्मी शकुंतला भगत एस. बी. जोशी की पांच संतानों में से दूसरी थीं। ‘भारत में पुल इंजीनियरिंग के जनक’ के रूप में पहचाने जाने वाले जोशी ने बेटी को भी सिविल इंजीनियरिंग में अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। पौनी सदी से भी पहले, जब लड़कियों का इंजीनियरिंग पढ़ना अजूबा माना जाता था। शकुंतला ने माटुंगा की प्रतिष्ठित विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट (वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट) में दाखिला लिया तो वे अपनी कक्षा की पहली छात्रा थीं। १९५३ में वे संस्थान की पहली महिला स्नातक बनीं तो उन्हें काम के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने पिता की ही पैâक्टरी में प्रशिक्षु के रूप में काम करना शुरू कर दिया, तब उनकी उम्र महज २० वर्ष थी।
काम करते हुए शकुंतला को कुछ ही वक्त बीता था कि पैâक्टरी के फर्श पर एक बॉयलर फट गया, जिसमें कई लोगों के साथ वे खुद भी घायल हो गर्इं। इसने उनका आत्मविश्वास हिला दिया। बेटी का मनोबल बढ़ाने के लिए पिता ने उन्हें अमेरिका में पेंसिलवेनिया भेजा। वहां उन्होंने प्रिâट्ज लियोनहार्ट के अधीन प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रिâट्ज जाने-माने स्ट्रक्चरल इंजीनियर थे और अमेरिका, अर्जेंटीना और वेनेजुएला में कई ऐतिहासिक पुलों की अपनी डिजाइनों के लिए खासा नाम कमा चुके थे।
चार वर्ष पेंसिलवेनिया से निपुण सिविल और स्ट्रक्चरल इंजीनियर की पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल कर शकुंतला घर लौटीं। अमेरिका में रहते वे पश्चिमी शास्त्रीय सिम्फनी का चस्का लगा बैठी थीं और जर्मन सरीखी कई भाषाएं धाराप्रवाह बोलने लगी थीं। दादर में पिता के स्वामित्व वाली इमारत के सामने रहने वाले मैकेनिकल इंजीनियर अनिरुद्ध शिवप्रसाद भगत से विजातीय विवाह करके उन्होंने समाज की नाराजगी मोल ले ली।
शकुंतला को आईआईटी, बंबई में काम मिल गया। असिस्टेंट प्रोफेसर बनकर अब वे सिविल इंजीनियरिंग पढ़ाने लगीं। हैवी स्ट्रक्चरल लेबोरेटरी के प्रमुख के रूप में यहां दस वर्ष अध्यापन करने के बाद १९७० में पति के सहयोग से उन्होंने एक कंपनी कायम की, जिसका नाम था ‘क्वाड्रिकॉन’। सिमेंट एंड कंक्रीट एसोसिएशन ऑफ लंदन के लिए कंक्रीट पर उनके शोध को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। अपनी उपलब्धियों के दम पर वे इंडियन रोड कांग्रेस की सदस्य और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स की फेलो चुनी गर्इं।
दुनिया भर में २०० पुल
शकुंतला ने अपने स्लाइड रूल से भारत में लगभग १०० पुलों का निर्माण किया। परिवार के साथ मिलकर तो दुनिया भर में लगभग २०० पुलों का डिजाइन तैयार किया, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, बांग्लादेश और फिलीपींस में बनाए गए पुल भी शामिल हैं। इस दंपति ने एक पूर्ण प्री-पैâब्रिकेटेड सिस्टम तैयार किया, जो एक पूरे पुल को मॉड्यूलर संरचना में बदल सकता था-जैसे कोई आदमकद लेगो किट, जिसकी मदद से आप कठिन भू-भागों में कोई भी पुल बना सकते हैं। १९७२ में हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्फीति में उन्होंने सबसे पहले ऐसे दो छोटे पुल बनाए थे, वह भी चार महीने के भीतर। उनकी इस तकनीक से देश के पर्वतीय हिमालय क्षेत्र से लेकर पूर्वोत्तर तक कुल ६९ पुल बने। इस तरह के पुलों के लिए उन्होंने हर तरह के ट्रैफिक को भी ध्यान में रखकर मॉड्यूलर और स्टैंडर्ड पार्ट्स तैयार किए, यह देखते हुए कि पुल कितना भार झेल सकते हैं। ‘क्वाड्रिकॉन’ के बनाए स्टील के ये पुल हिमालय क्षेत्रों में आज भी खासे लोकप्रिय हैं, जहां ब्रिज टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना बहुत कठिन माना जाता है।
शुरू में शकुंतला की इस तकनीक पर सरकारी विभागों और निवेशकों का विश्वास डगमगा रहा था, क्योंकि स्टील पर पेंच कसना या उसे जोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन उन्होंने अपनी सभी परियोजनाओं को व्यक्तिगत जोखिम पर उठाए गए धन के साथ पूरा किया। १९७२ में उन्होंने मुंबई में भी रातों-रात एक अनोखे पुल का निर्माण किया। स्टील के पुलों का निर्माण आसानी से हो सके इसके लिए १९६८ में उन्होंने ‘यूनिशर कनेक्टर’ बनाया, जो कई हिस्सों से बने स्टील संरचनाओं के जोड़ों को एक बोल्ट के जरिए आसानी से जोड़ देता है। इस आविष्कार के लिए १९७२ में भगत दंपति को इन्वेंशन प्रमोशन बोर्ड ने सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया। उनके क्रांतिकारी पेटेंटेड आविष्कार ‘क्वाड्रिकॉन मॉड्युलर ब्रिज सिस्टम’ -उन्हें राष्ट्रीय अनुसंधान विकास से ५,००० डॉलर का पुरस्कार दिलाया। १९९३ में उन्हें ‘वूमन इंजीनियर ऑफ दि ईयर’ घोषित किया गया।
शकुंतला की तीन संतानों में बेटी मीता आर्किटेक्ट हैं और पुणे में रहती हैं। उनकी तीसरी संतान चिंटा भगत ने कुछ समय पहले ही अपनी मां के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एमबीए छात्रवृत्ति की स्थापना की है। उनके बड़े बेटे राजेश बोस्टन (अमेरिका) में रहते हैं।
जीवन के अंतिम दो दशकों में मल्टीपल स्केलेरोसिस ने शकुंतला को शारीरिक और मानसिक रूप से जर्जर कर दिया, फिर भी उन्होंने काम जारी रखा। पंगु बना देने वाली इस बीमारी से दूसरों की मदद के लिए उन्होंने मल्टीपल स्केलेरोसिस सोसायटी ऑफ इंडिया के नाम एक करोड़ रुपए की राशि दान की। १४ अक्टूबर, २०१२ में ७९ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)