विमल मिश्र
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने मुंबई को ‘ट्री सिटी ऑफ दि वर्ल्ड’ का दर्जा दिया- यह उस शहर के लिए विलक्षण बात नहीं है, जिसने अपने कई इलाकों के नाम पेड़-पौधों और वनस्पतियों से ही पाए हैं। मसलन, ताड़देव ताड़ और चिंचपोकली व चिंचबंदर चिंच (इमली) से, भेंडी बाजार भिंडी से, वडाला वड से, फणसवाड़ी फणस (जैकफ्रूट) से और लैबरनम रोड और गुलमोहर मार्ग इन्हीं नामों के वृक्षों से। मुंबई में कई पेड़ १०० से ४५० साल तक पुराने हैं।
शाखाएं फूलों से लदी और उनसे उठने वाली सुगंध मदहोश कर देने वाली। साल के इन दिनों अगर आप घाटकोपर से मुलुंड के पूरे रास्ते पूर्वी द्रुतगति राजमार्ग पर किसी वाहन से गुजर रहे हैं तो विक्रोली के पास आपकी नजर गुलाबी रंग के फूलों से लदे ढेर सारे पेड़ों पर अनायास ही ठिठक जाएगी। मालाड में माइंडस्पेस की बैक रोड पर बोगनविलिया की बहार है। शहर में वसंत रानी पूरे परवान पर है। शहर के दूसरे हिस्सों में यही शान गुलमोहर, शिरीष और पिटूनिया की है।
विक्रोली ही नहीं, मालाड, बोरिवली, सायन, पवई, नेरूल, बेलापुर, खारघर-शहर के आम रास्तों और राजमार्गों पर इन दिनों हर कहीं यह सुवासित दृश्य देखने को मिल जाएगा। वसंत के रंगीले मौसम में प्रकृति ने फूलों की सुंदरता पर अपनी सारी नियामत लुटा दी लगती है।
कोलाबा वुड्स, रेस कोर्स, मुंबई सेंट्रल स्टेशन, ताड़देव, सहार रोड, बोरिवली नेशनल पार्क, आरे मिल्क कॉलोनी, माहिम के महाराष्ट्र नेचर पार्क, पवई-विहार-तुलसी झीलों, घोड़बंदर रोड के घने जंगलों की शोभा और भी निराली है। चंपक सरीखे वृक्ष सड़कों के किनारे, ट्रैफिक आइलैंड और बाग-बागीचों में ही नहीं, कब्रिस्तानों में भी दिखाई देने लगे हैं। रंग-बिरंगे चंपक, गुलमोहर, करंज, अमलतास, सेमल, डेहलिया, शाल्मली, कटेली, पेल्टोफोरम, गार्लिक वाइन, कैम, फिश टेल पाम और नारियल के वृक्षों ने फूल बिखेरकर सड़कों पर कालीन सी बिछा दी है। शीतलता और छाया के लिए मशहूर पीले फूलों से भरे रेन ट्री (शिरीष वृक्ष) झूम रहे हैं। तुंगारेश्वर, दादर की हिंदू और पारसी कॉलोनियों के पेड़ों की डालियां आम और कटहल से लदी हैं। लैबर्नम रोड पर तो कायनात ने जैसे सोने की वर्षा ही कर दी है।
मुंबई विश्वविद्यालय के कालीना परिसर में बैंगनी ‘प्राइड ऑफ इंडिया’ बेतहाशा फूला हुआ है। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. हूबनाथ पांडेय ने इस फूल के बारे में हमारी जानकारी बढ़ाई, ‘यह फूल गर्मी बढ़ने के साथ ही निखरता जाता है। पीले पिटूनिया और रंग-बिरंगे बोगनविलिया का मौसम भी यही है।’ विश्वविद्यालय की बागवानी में उगाने और देखभाल की एक बड़ी जिम्मेदारी यहां के अध्यापकों और छात्रों ने ही उठाई है। इन फूलों का पीक सीजन फरवरी से जून तक है। वसंत के ये फूल वर्षा तक चलेंगे। फिर कदंब के फूलने का वक्त हो जाएगा। बेलापुर सहित नई मुंबई की कई व्यस्त सड़कों के किनारे फूले अमलतास का फल बवासीर का अक्सीर इलाज है।
मुंबई में पिछले दिनों आए ब्रिटेन के विख्यात वृक्ष विशेषज्ञ जेरेमी बारेल बताते हैं, ‘मुंबई की वृक्ष संपदा अमूल्य है, पर अनियोजित विकास की भेड़चाल में इस शहर को उनका खयाल नहीं है। अगर ये एक बार क्षतिग्रस्त हो गए तो जीवन में दोबारा देखने को नहीं मिलेंगे।’ बारेल की चेतावनी भयभीत करने वाली है। बीते दो दशकों में ही मुंबई में वृक्षों की तादाद घटकर एक-तिहाई रह गई है। इनमें बहुतों को इन्प्रâा प्रोजेक्ट्स ने निगल लिया है। इसी कारण शहर में प्रवासी पंछी आना भूलने लगे हैं। जाने-माने नेचर फोटोग्राफर और पर्यावरणविद् संजय मोंगा चेतावनी देते हैं, ‘अगर उनकी रक्षा के लिए तत्काल उपाय नहीं किए तो बहुत देर हो जाएगी।’ २०२२-२३ में केवल ७५ हजार वृक्षों का रोपण कोई शुभ लक्षण नहीं कहलाएगा। मुंबई महानगरपालिका के अलावा मुंबई विश्वविद्यालय, एसएनडीटी, बॉम्बे आईआईटी, बीएआरसी, आरसीएफ जैसी सरकारी संस्थाओं के साथ गोदरेज व महेंद्रा सरीखे निजी उद्यमों के भी अपने निजी उद्यान हैं। मुंबई के लोग अपने राह-रास्तों, वनों, उद्यानों और दूसरी जगह उगने वाले पेड़ों और उनके फूलों के बारे में जान पाएं, इसलिए मुंबई महानगरपालिका ने रानी बाग सहित अपने कई उद्यानों में उनका प्रकार, खिलने के समय, आदि जरूरी जानकारी देने वाले सूचना फलक लगाए हैं।
फूली गुलमोहर की शाखाएं
हलक सूखा पड़ा है, बदन में जैसे कांटे उग आए हैं और तन-मन पसीने की चुहचुहाहट से बेचैन है, पर मुंबई की गलियां, सड़कें और बाग-बागीचे पीत, गुलाबी और लाल वर्णीय आभा में जगमग हैं। पेड़ों की शाखाएं गुलमोहर, सोनमोहर, पलाश, बसंतरानी, शाल्मली, अमलतास, सूरजमुखी, कचनार, चंपा, अर्जुन, तमन, पुत्राजीवा, कनकचंपा, सप्तपर्णी और नाना प्रकार के फूलों के भार से झुकी जा रही हैं-सारे शहर को सुवास से भरते हुए। ऋतुओं के लिहाज से भले यह गर्मियों का मौसम हो फूलों के लिहाज से सबसे विविध और रंगीला है। शहर की मलियाली रिहाइशों ने फूलों से ही संबंधित अपना विशु त्योहार शायद मौसम को देखकर ही चुना है। शहर में हर मौसम की अलग बहार है। गुलाब तो सदाबहार है, पर जंगली फूल देखने हों तो पहली बारिशों के बाद बोरिवली नेशनल पार्क जाइए।
बॉम्बे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी के डॉ. अशोक कोठारी और वंदन झवेरी उत्साही युवकों को दक्षिण मुंबई का हेरिटेज वॉक कराते समय भीखाजी बहराम वेल के बरगद के पुराने पेड़, पीडब्ल्यूडी ऑफिस के पास स्टार एपल ट्री, ओवल मैदान के निकट देसी बादाम के पेड़, हाई कोर्ट के निकट करंज व आम के पेड़, मुंबई यूनिवर्सिटी गार्डन में चाइनीज फैन पॉम व पागोडा ट्री, राजबाई टॉवर के पीछे बर्मा ट्री, एलफिंस्टन कॉलेज के निकट पुराने बकुल ट्री, म्यूजियम कंपाउंड में शताब्दी पुराने बाओबॉब ट्री और लॉयन गेट के निकट टाबेबुइया रोजिया ट्री रनिंग कमेंट्री के साथ दिखाते हैं। काला घोड़ा फेस्टिवल के दौरान फोर्ट क्षेत्र (जो खुद कभी ‘बॉम्बे ग्रीन’ कहलाता था) में होने वाला नेचर वॉक फोर्ट इलाके के ‘प्राइड ऑफ बर्मा’ (शहर में इस तरह के केवल छह पेड़ हैं) और ‘ट्री आफ हेवन’ और ‘वैâनन बॉल ट्री’ जैसे दुर्लभतम वृक्षों को जानने का अवसर है।
ठाणे के सुकांत मिश्र दूसरे वॉलंटियरों के साथ वैली टॉवर सोसायटी के सीनियर मेंबर्स और बच्चों को पास के जंगल, नेचर पार्क, बटरफ्लाई पार्क या हरे-भरे स्थानों पर ले जाकर उन्हें पेड़ों, फूलों और वनस्पतियों से परिचित कराते हैं। २०० किस्म के फूलों से भरी ठाणे की ओवलेकर वाड़ी अपनी तितलियां के कारण सैलानियों का आकर्षण बनी हुई है। यहां की घोड़बंदर रोड पर मौजूद घने जंगलों में गहरे गुलाबी रंग के फूलों वाले शाल्मली वृक्षों की भरमार है।
मुंबई में डच, पुर्तगाली या अंग्रेज-जो भी आए, अपने यहां के खास पौधों को लाना नहीं भूले। ‘क्लाइनहोविया’ मानसून में झूमने वाला ऐसा ही डच वृक्ष है। आप यहां रेन ट्री और ३० फुट ऊंचे तबेबुइया सरीखे अमेरिकी पेड़ के साथ कई यूरोपीय, लैटिन अमेरिकी और अप्रâीकी पेड़ भी देख सकते हैं। गुलमोहर दरअसल, मैडागास्कर से आया पेड़ है।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)