विमल मिश्र
बेलॉर्ड इस्टेट घूमिए। लगेगा जैसे लंदन आ पहुंचे हों। फोर्ट सहित दक्षिण मुंबई की दूसरी इमारतों को देखकर भी यही प्रतीति होगी। हॉर्निमन सर्किल, डी. एन. रोड, मेट्रो सिनेमा के इलाके, मंत्रालय और कोलाबा जैसे क्षेत्रों में पिछले डेढ़-दो सदी में बनी इमारतों पर गोथिक, विक्टोरियन गोथिक, एडवर्डियन नियोक्लासिकल, आर्ट डेको आदि पश्चिमी वास्तु, डिजाइन और निर्माण शैली का असर दरअसल, इतना ज्यादा है कि सवाल उठने लगे हैं कि क्या मुंबई का कुछ खुद का भी है? ‘क्वींस नेकलेस’ मरीन ड्रॉइव की आर्ट डेको इमारतों को नया रूप, चित्रकारी, मॉटिफ और सज्जा देने की प्रस्तावित योजना को लेकर उठे विवादों के संदर्भ में मुंबई की हेरिटेज इमारतों के वास्तु पर चर्चा।
मुंबई का सबसे परिचित चेहरा मरीन ड्रॉइव का समुद्र किनारा एशिया की सबसे विशाल व्यूइंग गैलरी कहलाता है। क्या ‘क्वींस नेकलेस’ की शोभा उतनी ही होती, अगर उसका साथ देने को नरीमन पॉइंट से गिरगांव चौपाटी और उससे भी आगे ४० के करीब खूबसूरत ‘आर्ट डेको’ इमारतें नहीं होतीं! दरअसल, ओवल ग्राउंड के साथ मरीन ड्रॉइव परिसर मियामी (अमेरिका) के बाद विश्व का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां समुद्र तट पर विक्टोरियन गोथिक बिल्डिंग्ज के साथ इतनी बड़ी संख्या में आर्ट डेको बिल्डिंग्ज मौजूद हैं! मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस और एलीफेंटा के बाद मुंबई के हिस्से यूनेस्को द्वारा घोषित यह तीसरी ‘विश्व विरासत है।
सुर्खियों में मरीन ड्रॉइव : मरीन ड्रॉइव इस बार सुर्खियों में है, प्रिंसेज स्ट्रीट फ्लाईओवर से एयर इंडिया बिल्डिंग तक, करीब ३० ‘आर्ट डेको’ इमारतों को मुंबई की संस्कृति को दर्शाने वाला नया रूप, चित्रकारी, मॉटिफ और सज्जा देने की प्रस्तावित योजना के लिए। विख्यात जे. जे. इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स ने इसके वास्ते मुंबई मनपा को कुछ थीम्स पेश की हैं : पहली थीम है लोकल ट्रेनें, गेटवे ऑफ इंडिया और डिब्बावाला। दूसरी है मुंबई में मनाए जाने वाले रंगा-रंग उत्सव। और तीसरी, बॉलीवुड। मरीन ड्रॉइव के इस हिस्से पर नई प्रकाश सज्जा के साथ लाइट एंड साउंड और वाटर शो शुरू करने की भी योजना है। दीगर बात है कि इस योजना को लेकर मरीन ड्रॉइव के निवासियों का रवैया उत्साहवर्धक नहीं है। आर्ट डेको मुंबई ट्रस्ट के फाउंडर ट्रस्टी और नरीमन पाइंट चर्चगेट सिटिजंस एसोसिएशन के अध्यक्ष अतुल कुमार, जो हाल में ही मियामी में ‘आर्ट डेको’ पर १६वें विश्व सम्मेलन में भाग लेकर लौटे हैं, ने तो इस योजना को चुनौती देने का मन बना लिया है।
ब्रिटिश विरासत : बेलॉर्ड इस्टेट घूमिए, लगेगा जैसे लंदन आ पहुंचे हों। फोर्ट सहित दक्षिण मुंबई की कई इमारतों को भी देखकर यही खामख्याली होगी। मुंबई के हॉर्निमन सर्किल, डी. एन. रोड, मेट्रो सिनेमा, मंत्रालय और कोलाबा जैसे क्षेत्रों में पिछले डेढ़-दो सदी में बनी इमारतों पर गोथिक, विक्टोरियन गोथिक, एडवर्डियन नियोक्लासिकल, आर्ट डेको, आदि ब्रिटिश और पश्चिमी वास्तु, डिजाइन और निर्माण शैली का असर दरअसल, इतना अधिक है कि कुछ विरासतदान को यह कहने में संकोच नहीं कि मुंबई के वास्तु में उसका अपना और मौलिक बहुत कम है। यह सिर्फ इमारतों पर नहीं है, मुंबई का चर्च, अस्पताल, सिनेमा, बागीचे, यहां तक कि फ्लाईओवर, रेसकोर्स और स्ट्रीट फर्नीचर भी पश्चिमी प्रभाव से अछूते नहीं हैं।
विक्टोरियन गोथिक (गोथिक रिवाइवल), एडवर्डियन नियो क्लासिकल और नियो क्लासिकल शैली : मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, मुबई महानगरपालिका मुख्यालय, क्राफर्ड मार्वेâट, पीडब्ल्यूडी, ओल्ड सक्रेटेरियट, बॉम्बे हाई कोर्ट, सेंट्रल टेलिग्राफ ऑफिस और महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय सरीखी इमारतें गोथिक शैली में बनाई गई हैं। ‘गोथिक’ शब्द की कहानी विचित्र सी है। ‘गोथ’ एक ऐसी बर्बर कौम थी, जो रोमन साम्राज्य पर हमलों के लिए कुख्यात हो गई थी। वास्तुकला से तो इसका दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। १३-१५ सदी के बीच यूरोप में भवन निर्माण की जब नई शैली विकसित हुई तो उसने रोमन शैली को चलन से दूर कर दिया। इससे क्षुब्ध होकर ग्रीक-रोमन शैली के प्रशंसक इसे घृणा से ‘गोथिक’ पुकारने लगे। यही निंदाजनक शब्द बाद में वास्तु की नई शैली के रूप में विख्यात हो गया। अंग्रेजों के पास अपनी खुद की मौलिक वास्तु शैली तो थी नहीं, इसलिए १९वीं सदी में जब उन्होंने मुंबई में पैर जमाने शुरू किए तो अपनी सत्ता की स्थायी छाप छोड़ने के लिए यहां अपनी बनाई इमारतों में थोड़ा अंग्रेजी पुट डालकर उन्होंने यही शैली अपना ली। इससे पहले मुंबई की इमारतें नियो क्लासिकल शैली में बनाई जाती थीं।
मुंबई में विक्टोरिया युग की नुमाइंदा ये इमारत शुद्ध गोथिक नहीं हैं। इन्हें ‘मुंबई गोथिक’ कहना ज्यादा उचित होगा। किफायतशारी के लिए अधिकतर इमारतों में इतालवी संगमरमर के बजाय स्थानीय निर्माण सामग्री का अधिक उपयोग किया गया है, मसलन पुणे का बसाल्ट, कुर्ला व मालाड की खदानों से निकला न्हायोलाइट पत्थर और पोरबंदर का चुनिया पत्थर। मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, मुंबई मनपा मुख्यालय, हाई कोर्ट, राजाबाई टॉवर सहित मुंबई विश्वविद्यालय, ओल्ड सक्रेटेरियट, टाउन हॉल, सेंट जेवियर कॉलेज, सेंटल टेलिग्राफ ऑफिस, विल्सन कॉलेज, क्राफर्ड मार्वेâट और एस्प्लेड मैंशन (वाट्सन होटल) इस शैली की मिसाल हैं।
इंडो सारसेनिक शैली : अरबी प्रभाव वाली इंडो सारसेनिक शैली १९वीं सदी के मध्य में विकसित हुई। इन इमारतों में गुंबद, मेहराबों, मीनारों, पेंच व रंगीन कांचों का इस्तेमाल प्रचुरता से दिखेगा। छत्रपति शिवाजी वास्तु संग्रहालय, गेटवे ऑफ इंडिया, ताजमहल होटल, जीपीओ बिल्डिंग, सिविल और सेशंस कोर्ट, एलफिंस्टन कॉलेज, डेविड ससून लाइब्रेरी, नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, पश्चिम रेल मुख्यालय, महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय, आर्मी एंड नेवी बिल्डिंग ऐसी ही इमारतें हैं।
आर्ट डेको : मुंबई की आर्ट डेको इमारतें यूरोप और अमेरिका में बीती सदी के १९२० और १९३० के दशक में पैâले स्थापत्य आंदोलन से जन्मीं। इन इमारतों की सजावट में रंगों के अलग-अलग शेड्स का उपयोग किया गया, जिनमें मुख्य रंग हल्के रखे गए, उभार और आउटलाइनों पर चटख रंगों के साथ। समान रूप, प्रवेशद्वार, ज्यामितीय अग्रभाग, तश्तरी के आकार वाले बुर्ज, रॉट आइरन की सजावटी गोल, विस्तृत व वैंâटीलीवर बालकनी, सीढ़ियां, रेलिंग और दरवाजे, सजावटी शब्दसज्जा व मॉटिफ – मुंबई की आर्ट डेको इमारतें मशीन से बनी ज्यामिती के मानिंद हैं। इनके आर्किटेक्ट्स अधिकतर हिंदुस्थानी हैं। बैकबे रिक्लेमेशन, ओवल मैदान और मरीन ड्रॉइव की पहली पंक्ति की इमारतें जैसे क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया, धनराज महल, इंप्रेस कोर्ट, सोना महल, न्यू इंडिया एश्योरेंस बिल्डिंग, ओशियाना, इरोज सिनेमा, लिबर्टी व रीगल सिनेमा आदि में आप इस वास्तु का नजारा कर सकते हैं। मुंबई में अपार्टमेंट सिस्टम शुरू करने वाली यही इमारतें हैं।
आर्ट डेको बिल्डिंग्ज दक्षिण मुंबई में ज्यादा हैं। सबसे अधिक लैंडमार्क इमारतें ओवल मैदान, फोर्ट, मरीन ड्राइव, कोलाबा, मलबार हिल, मोहम्मद अली रोड व कफ परेड के ईद-गिर्द हैं। ये मध्य मुंबई (खासकर दादर-माटुंगा) और चेंबूर, वडाला, बांद्रा व जुहू में भी मौजूद हैं। बाहरी जगहों में ये पुणे, अमदाबाद, चेन्नै, बंगलुरू, कोलकाता और बडोदरा में भी देखने को मिलती हैं। विक्टोरियन गोथिक, इंडो सारसेनिक व नियो क्लासिकल इमारतों के अलावा कई इमारतों में उस समय चलन में रही शैलियां भी अपनाई गई हैं। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग आधुनिक वास्तुशैली की मिसाल है।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)