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संडे स्तंभ: एक था कांग्रेस हाउस…

ग्रांट रोड का कांग्रेस हाउस किसी ‌जमाने में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मुख्यालय होता था। महात्मा गांधी के ‘सविनय अवज्ञा’ और ‘भारत छोड़ो’ का केंद्रस्थल, जहां स्वतंत्रता आंदोलन के शीर्ष राष्ट्रीय नेता और आजादी के परवाने बैठकी जमाते। देश की आजादी संबंधी कितने ही महत्वपूर्ण निर्णय यहां लिए गए। २६ मार्च, १९२५ को गांधीजी इसका उद्घाटन करने खुद यहां आए।
कांग्रेस भवन विट्ठल भाई पटेल रोड पर है। ऐतिहासिक स्थलों और घटनाओं से भरपूर ऐसे इलाके मुंबई में कम ही होंगे। वह मणि भवन, जो १९१७ से १९३४ तक महात्मा गांधी का निवास होने से स्वतंत्रता आंदोलन की धुरी बन गया था, यहीं पास की लैबर्नम रोड पर है। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जन्मभूमि गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज और ‘भारत छोड़ो’ की प्रेरणा भूमि गवालिया टैंक (अगस्त क्रांति मैदान) यहां से ज्यादा दूर नहीं है। लॉर्ड विलिंगटन के विरुद्ध एक आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर यहां एक हाल का निर्माण स्थानीय जनता ने चंदा देकर करवाया था। आज भी आपको यहां तिलक मंदिर, सरोजिनी सदन, कस्तूरबा कुटीर, विट्ठल सदन और दादाभाई मंजिल जैसे नाम मिल जाएंगे। कांग्रेस हाउस के नीचे एक ‘कांग्रेस रेस्त्रां’ भी है, जिस पर गोरी पुलिस की हमेशा टेढ़ी नजर रही। कुछ ही दूरी पर सदी पुराना क्वींस मेरी स्कूल है, जहां शबाना आजमी सरीखे छात्र पढ़े।
एनी बेसेंट व रुक्मिणी देवी अरुंडेल की थियोसॉफिकल सोसायटी का मुख्यालय-ब्लॉवट्स्की लॉज भी आपको आस-पास मिलेगा। मालाड स्टोन से निर्मित इस लॉज का नाम रूसी दार्शनिका हेलेना ब्लॉवट्स्की के नाम पर रखा गया है, जो १९२८ में यहां रहीं। मॉडल हाउस जैसे इसके मकान में विख्यात गायिका सुमन कल्याणपुर और मशहूर यूनियन लीडर एन.एम. जोशी रहे। वी. शांताराम की ‘डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’ फेम डॉ. द्वारिकानाथ कोटनीस के परिजनों ने भी इसे अपना आवास बनाया। यह इलाका १८६० के दशक के जमाने की असलाजी भीकाजी अगियारी और १८६९ में बने इमैनुएल चर्च (मिशन हाउस के ठीक सामने) का भी घर है। चर्चित रॉबर्ट मनी टेक्निकल इंस्टीट्यूट यहीं पर है।
फिल्म और संगीत से जुड़ा
कांग्रेस हाउस की जगह बाद में मुंबई संगीत कलाकार मंडल का केंद्र बनी। इसका उपयोग आगरा के दरबार से संगीतकारों व नृत्यांगनाओं के पुनर्वास के लिए किया जाता रहा। १९७२ में इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया। जब भी कांग्रेस हाउस में झंडारोहण समारोह होता, मुंबई संगीत कलाकार मंडल के शहनाई नवाज संगत के लिए मौजूद होते। यहां के संगीत समारोहों में बड़े गुलाम अली खां और अमीर खां सरीखे उस्ताद महफिलें सजाया करते। यहां के कलाकारों की शोहरत ऐसी पैâली कि उन्हें ढूंढ़ने फिल्म वाले खुद यहां आने लगे। धीरे-धीरे कई फिल्म स्टूडियो आस-पास बस गए। मशहूर उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो यहीं आर्देशिर ईरानी के ज्योति फिल्म स्टूडियो में काम किया करते थे और भायखला से, जहां वे रहते थे, टहलते हुए रोजाना नाना चौक आया करते थे। यह जगह मंटो की कई कृतियों की भावभूमि है। मर्चेंट-आइवरी की ‘कर्टीजन ऑफ बॉम्बे’ सहित कई फिल्मों की शूटिंग इधर हुई, जिनमें यहां की नाचने वालियों का नृत्य आपको देखने को मिलेगा।
वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। जैसे ही शास्त्रीय संगीत और कथक जैसे शास्त्रीय नृत्यों को फिल्मी संगीत ने बेदखल किया, मुंबई संगीत कलाकार मंडल के गायक और वाद्यकार फिल्मों की ओर मुड़ने लगे। नृत्यांगनाओं ने ले ली बियर बारों की शरण। १९८० के दशक में यह इलाका कांग्रेस हाउस के आस-पास की जीर्ण इमारतों में मुजरों और देह व्यापार के लिए प्रसिद्ध हो चला। यह दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली और हाजी मस्तान सरीखे गैंगस्टरों का अड्डा बन गया।
इस इलाके से मंटो की ढेरों यादें जुड़ी हैं। ग्रांट रोड स्टेशन और लैमिंगटन रोड से कुछ दूरी पर विट्ठल भाई पटेल रोड का यह इलाका जिस वैâनेडी ब्रिज के किनारे से शुरू होता है उसे ‘पवन पुल’ नाम मंटो का ही दिया हुआ है। वैâनेडी ब्रिज जॉन पिट वैâनेडी के नाम पर है, जो ब्रिटिश काल (१८५० के दौरान) के दौरान रेलवे इंजीनियर हुआ करते थे। वैâनेडी ब्रिज के दूसरे किनारे पर प्रॉक्टर रोड है, जिसका नाम पड़ा है बॉम्बे चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष रहे सर हेनरी प्रॉक्टर के नाम पर। ‘हारता चला गया’ मंटो की वह मशहूर कहानी है, जिसमें आपको कांग्रेस हाउस के आस-पास के कोठों में होनेवाले मुजरों का जीवंत चित्रण मिलेगा।
विडंबना ही कहेंगे कि मुंबई का वह इलाका, जिसके बिलकुल पास महात्मा गांधी का कर्म क्षेत्र और घर (मणि भवन) रहा… जिसका नाम कांग्रेस के एक बड़े नेता विट्ठल भाई पटेल के नाम पर रखा गया है, आज जिस्मफरोशी के लिहाज से शहर का बदनाम इलाका बन गया है। कुछ समय बाद ‘कांग्रेस हाउस’ का नाम भी लोग भूल जाएंगे। टैक्सी वालों को यह अंदाज अभी से मालूम है, तभी ‘कांग्रेस हाउस’ बताने पर वे आपको शापुर बाग ले जाते हैं – पारसियों की वह कॉलोनी, जो १९३९ से यहां मौजूद है।

विमल मिश्र

(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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