मुख्यपृष्ठस्तंभसंडे स्तंभ : नाम गुम जाएगा... कहानी अजब - गजब नामों की

संडे स्तंभ : नाम गुम जाएगा… कहानी अजब – गजब नामों की

विमल मिश्र

चौपाटी ‘चौ’ और ‘पट्टी’ से बना है, भेंडी बाजार सब्जी, डोंगरी पहाड़ी, गवालिया टैंक तालाब, ताड़देव ताड़ के पेड़ों, खेतवाड़ी धान के खेतों, वालकेश्वर ‘बालू से बने भगवान’ और कोलाबा कोलियों के गांव ‘खोबट’ के नाम से। पायधुनी वह जगह है, जहां कभी पांव धोकर ही शहर में प्रवेश किया जा सकता था। इस शहर ने अपनी जगहों के कई नाम शाही मेहमानों और यहां राज कर चुके ब्रिटिश गवर्नरों और अंग्रेज अधिकारियों से भी लिए हैं। कहानी मुंबई के अजब-गजब नामों की।

चुनाव के माहौल में राजनीतिक दलों के बीच चल रही राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई के बीच नामकरण एक तल्ख मुद्दा है। मुंबई के ज्यादातर स्थानों के नामकरण के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर है।
शाही मेहमानों के नाम पर
विक्टोरिया टर्मिनस (छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस): मलिका विक्टोरिया और बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर।
रायल अल्फेड सेलर्स होम: रानी विक्टोरिया के दूसरे पुत्र ड्यूक ऑफ एडिनबरा के मुंबई आगमन के उपलक्ष्य में।
काला घोड़ा: प्रिंस ऑफ वेल्स (बाद में किंग एडवर्ड सप्तम) की मुंबई यात्रा की स्मृति में।
केईएम (किंग एडवर्ड मेमोरियल) अस्पताल: किंग एडवर्ड के निधन पर उनकी स्मृति में।
प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम: प्रिंस ऑफ वेल्स (बाद में किंग जॉर्ज पंचम) की मुंबई यात्रा की स्मृति में।
प्रिंसेज डॉक: प्रिंस ऑफ वेल्स (बाद में किंग जॉर्ज पंचम) ने इसका शिलान्यास किया।
प्रिंसेज स्ट्रीट: प्रिंसेज ऑफ वेल्स ने इसका उद्घाटन किया।
किंग्स सर्किल: महत्वपूर्ण और रसूखदार लोगों की रिहाइश और ब्रिटिश सम्राट के नाम पर कायम एक गोल उद्यान के नाम पर।
ब्रिटिश गवर्नरों और अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर
एलफिंस्टन रोड लॉर्ड माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन, ग्रांट रोड सर रॉबर्ट ग्रांट, सैंडहर्स्ट रोड लॉर्ड सैंडहर्स्ट और रे रोड लॉर्ड रे के नाम पर। ये सभी स्टेशन मुंबई के ब्रिटिश गवर्नरों के नाम हैं।
करी रोड स्टेशन: बीबी एंड सीआई रेलवे के एजेंट चार्ल्स करी के नाम पर।
अल्टामांट रोड: लखनऊ के नवाब के यहां काम करने वाले कर्नल अल्टामांट के नाम पर, जो कंबाला हिल में आकर बस गए।
कार्माइकल रोड: अंग्रेज प्रशासक डेविड फ्रेमेंटल कार्माइकल के नाम पर।
फ्रेंच ब्रिज: १८६६ में निर्मित गांवदेवी का पुल, जिसका नाम बीबी एंड सीआई रेलवे (पश्चिम रेलवे) के पूर्व ब्रिटिश चेयरमैन और भारतविद पैट्रिक टी. प्रâेंच के नाम पर।
ह्यूजेज रोड: इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के पहले चेयरमैन सर वाल्टर ह्यूजेज की यादगार में, जिन्होंने गांवदेवी के पास इस इलाके को १९०८ को आदर्श उपनगर के रूप में बसाया।
प्रेस्कॉट रोड: १८६० में जे. बी. पेटिट गर्ल्स स्कूल स्थापित करने वाली अंग्रेज महिला मेरी प्रेस्कॉट के नाम पर। यह स्कूल पहले मिस प्रेस्कॉट फोर्ट इंग्लिश स्कूल के नाम से जाना जाता था।
स्लेटर रोड: ग्रांट रोड के पास। १८८० के दशक में बीबी एंड सीआई रेल (पश्चिम रेल) के चीफ इंजिनियर रहे जे. एम. स्लेटर के नाम पर। नया नाम नौशिर भरूचा मार्ग।
अन्य इलाके
आग्रीपाडा: आगरी (किसान) लोगों के वास की वजह है। भट आगरी, यानी चावल की खेती में लगे आगरी, मीठ आगरी, यानी नमक की खेती में लगे लोग और भाजी-पाला आगरी, यानी सब्जी उगाने वाले किसान।
अपोलो बंदर: पुर्तगाली नाम पोलम से। या फिर यहां कभी पाला मछली मिलने की वजह से।
लोहार चाल: यह कभी लोहे के सामानों के लिए मशहूर थी और अब हार्डवेयर और बिजली के उपकरणों के लिए जानी जाती है।
कुंभार वाडा: मिट्टी के बर्तनों के लिए मशहूर।
बाबुलनाथ: बाबुलनाथ नामक एक मिस्त्री ने यहां का शिवलिंग दान में दिया था। बबूल नामक वृक्ष से भी इसके नामकरण का संबंध जोड़ा जाता है, जो यहां बहुतायत में थे।
प्रिंसेज स्ट्रीट: १८९६ – ९६ में प्लेग का प्रकोप कम करने के लिए आस-पास की इमारतों को जमीदोज करके समुद्री हवा की आवा-जाही के लिए इस तंग इलाके को खुला और हवादार बनाया गया था। १९०१ में प्रिंस और प्रिंसेज ऑफ वेल्स ने इसका उद्घाटन किया तो ‘प्रिंसेज’ नाम लोगों की जुबान पर नाम चढ़ गया।
भूलेश्वर: भोलेशंकर के स्थानीय मंदिर के नाम पर। कहते हैं इसलिए भी कि भोला नामक एक परदेशी या कोली निवासी ने इस मंदिर का निर्माण कराया।
भेंडी बाजार: सब्जी के नाम पर या ट्यूलिप फूल के नाम पर, जिसे स्थानीय लोग ‘भेंडी’ कहते हैं। अंग्रेज लोग इस इलाके को ाँप्ग्ह् ऊप ँर्aैar कहते थे, जो शायद बिगड़कर ‘भेंडी’ हो गया हो।
ब्रीच कैंडी: महालक्ष्मी और भायखला को जोड़ने वाले अरब सागर से जुड़े इस हिस्से में ब्रीच (दरार) आने की वजह से। कैंडी ‘खिंड’ (रास्ता) का अंग्रेजी उच्चारण हो सकता है।
चौपाटी: ‘चौ’ और ‘पट्टी’ से बना। रीक्लेमेशन से पहले ज्वार का पानी चार तरफ से इस भाग में आता था।
डोंगरी: पहाड़ी से जो यहां पहले हुआ करती थी। ‘डूंगरी’ नामक वस्त्र से भी, जो मजदूर वर्ग पहना करता था।
गवालिया टैंक: नाना चौक के पास एक तालाब हुआ करता था, जहां ग्वाले गायों को स्नान कराया करते थे।
कैंप्स कॉर्नर: कैंप्स एंड कंपनी नामक दवा स्टोर के नाम से मशहूर। यहां सोडा वॉटर मिला करता था। इस स्टोर में वजन की मशीन भी रखी है, जिससे कोई भी अपना वजन बिल्कुल मुफ्त कर सकता था।
खेतवाडी: धान के खेतों की वजह से।
नलबाजार: १८६७ में इस बाजार का निर्माण हुआ। इन किनारों पर पेय जल और गंदे पानी के निकासी के नल बनाए गए इसलिए।
खोदादाद सर्किल: दादर के जाने-माने व्यवसायी खोदादाद ईरानी के नाम पर, जिनके बेटों गुस्तास्प ईरानी और रुस्तम ईरानी ने तिलक ब्रिज के ठीक बाद पड़ने वाले इस गोल चौराहे पर मौजूद चार इमारतें इंप्रेस महल, एम्पायर महल, इंपीरियल महल और रुस्तम महल (नया नाम हरगंगा महल) बनवार्इं।
पास्ता लेंस: कोलाबा की १, २, ३ और ४ नंबर की गलियां, जो कच्छी भाटिया वस्त्र व्यवायी दानवीर गोकुलदास लीलाधर पास्ता के नाम हैं। ‘पास्ता’ राजकुमार का ही आदरसूचक संबोधन है, जो गोकुलदास को उनके लोकोपकारी कार्यों के लिए प्रदान किया गया।
सीरी रोड: मलबार हिल के गांवदेवी से वालकेश्वर मंदिर जाने वाली चढ़ाई वाली सड़क, जिसकी ऊंचाई और संकरेपन को देखकर लोगों ने इस नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
पायधुनी: दक्षिण मुंबई की वह जगह, जहां पांव धोकर शहर में प्रवेश किया जाता था।
ताड़देव: क्षेत्र में बहुतायत मौजूदा ताड़ के पेड़ों से। इसी नाम से यहां एक देव मंदिर भी है।
वालकेश्वर: ‘बालू के ईश्वर’, यानी बालू से बने भगवान, जिनका यहां प्रसिद्ध शिव मंदिर है। बताते हैं इसकी स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी, जब वे रावण द्वारा अपहृत सीता की तलाश में यहां आए थे।
कोलाबा: कोलियों के गांव ‘खोबट’ के नाम से। अरब व्यापारियों ने मुंबई आते जहाज से जैसे ही समुद्र के बीच इसे देखा उनके मुंह से निकला ‘कलाबे’ जो ‘कोलाबा’ बन गया।
मलबार हिल: मलबार समुद्री डाकुओं के नाम पर, जो उत्तर से आने वाले व्यापारी जहाजों की तलाश में आस-पास मंडराते रहते थे।
कंबाला हिल: यह घना जंगल था, जहां उस जमाने के लोगों के विश्वास के अनुसार ‘खांब’ (मृत पूर्वजों की आत्माएं) मंडराती रहती थीं।
नायगांव: राजा भीमदेव का ‘न्याय गांव’ (न्यायालय) यहीं था, इसलिए।
वैतरणा: इस नाम की नदी के कारण।
विला वियना: फिल्म सितारे शाहरुख खान का निवास, जो अब ‘मन्नत’ के नाम से जाना जाता है।
(जारी)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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