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संडे स्तंभ : इस घर ने रची है मुंबई की तकदीर

विमल मिश्र
मुंबई

कैपिटल सिनेमा के बगल में हजारीमल सोमानी मार्ग (पुराना नाम वौडबी रोड) से चर्चगेट या फोर्ट की कारोबारी गलियों में वॉक करते रोज लाखों लोग महलनुमा इस इमारत की बुलंद सुंदरता को सिर उठाकर देखते हैं तो सोचते हैं, कौन नसीबवाला यहां रहता होगा! कम ही लोगों को इसके महत्व के बारे में मालूम होगा। एस्प्लेनेड हाउस यही है- आधुनिक भारत के निर्माता जमशेदजी टाटा का निजी निवास। करीब १४० वर्ष पुरानी इस इमारत का नाम सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को ने ‘ऑनरेबल मेंशन’ किया है।
आधुनिक दक्षिण मुंबई की नींव डालने के लिए १८६० के दशक में फोर्ट की दीवारें जब गिराई जा रही थीं तो कई शानदार इमारतें वहां बनीं। १८८५ में बनकर तैयार हुआ तीन मंजिला एस्प्लेनेड हाउस इनमें सबसे सुंदर इमारतों में से था। आर. डी. सेठना स्कॉलरशिप फंड ने कोई २० वर्ष पहले इसकी हालत में सुधार का काम शुरू कराया। बॉम्बे जिमखाना के ठीक सामने की इस बिल्डिंग का स्वामित्व इसी ट्रस्ट के हाथ में है। बहरहाल, इसमें ट्रस्ट के मुख्यालय के अलावा कुछ प्राइवेट कंपनियों के कार्यालय हैं। पुनरोद्धार से एस्प्लेनेड हाउस को उसकी पुरानी शान वापस दिलाने वाले विख्यात कंर्जवेशन आर्किटेक्ट विकास दिलावरी का यह दसवां यूनेस्को अवॉर्ड है। रिस्टोरेशन में तीन चरणों में पूरे दस साल लगे हैं। इससे इमारत की सुंदरता ही बहाल नहीं हुई है, बल्कि उसकी उम्र भी बढ़ गई है।
दिलावरी ने यह काम हाथ में लिया तो बिल्डिंग की हालत बहुत ही बुरी थी। रख-रखाव बिल्कुल ही न होने से ढांचा जर्जर हो चुका था, खासकर पिछले हिस्से में उसकी एनेक्सी जहां घुड़साल, हौज और नौकरों के क्वार्टर थे। वॉटरप्रूफिंग न होने से जगह-जगह रिसाव और उसके बदरंग दाग थे। दरारें साफ नजर आती थीं। पुराने फोटो की मदद से दिलावरी ने रिस्टोरेशन में प्रामाणिकता में इंच भर का खलल नहीं आने दिया है। बाहरी दीवारों और उन पर उत्कीर्ण सुंदर कलाकृतियों के साथ सीढ़ियों और शौचालयों को भी पुराना रूप दिया गया है। बिल्डिंग के बाहर, जहां जरूरी हुआ वहां लैंडस्केपिंग से भी काम लिया गया है। इसी तरह संगमरमर की सीढ़ियों और इमारत में प्रवेश करने के लिए दोनों तरफ के प्रवेश द्वारों की शोभा भी बहाल की गई है। आंगन के उद्यान की शोभा बढ़ाती हैं, कोनों की प्रतिमाएं और फव्वारे।
स्वामिभक्त कुत्ते का स्मारक
लकड़ी की खूबसूरत सीढ़ियां, जस्ते के घुमावदार शामियाने, टेराकोटा के कलश, अलंकारिक जंगले, तांबे से निर्मित घुमावदार छज्जे, बरोक शैली में बना एस्प्लेनड हाउस मुंबई की उन गिनी-चुनी भव्य इमारतों में से है, जिसकी कांक्रीट स्लैब फ्लोरिंग नहीं है। इसके फर्श और सीलिंग में टीकवुड व दूसरी महंगी लकड़ियों व प्लास्टर ऑफ पेरिस का प्रचुरता से प्रयोग किया गया है। लोहे के मुख्य जालीदार दरवाजे पर टाटा परिवार की निशानी के साथ लोहे के सरिये को पकड़े हुए हाथ और फारसी भाषा का सूत्र ‘हुमाता-हुश्वता-हवशर्ता’ नजर आएगा। इसका अर्थ है ‘सुविचार-सत्कर्म-शुभाषित’। बीच में चौक और सामने अहाता-शुरू में दो मंजिलों की यह इमारत कांच के खपरैल वाली थी। बाद में एक मंजिल और बढ़ाई गई। उस जमाने के रईसों के चलन के अनुसार, यहां एक कुत्ताघर भी था। इसे बनवाते वक्त जमशेदजी अपने स्वामिभक्त कुत्ते तक को भूले नहीं। अगर आप ध्यान से देखें तो दार्इं तरफ के प्रवेश द्वार पर टेराकोटा से बना उसका छोटा-सा स्मारक दिखेगा ‌जिसे ‘सेंट बर्नार्ड’ के नाम से पुकारा जाता है। बिल्डंग को डिजाइन किया है आर्किटेक्ट फर्म गोस्टलिंग एंड मॉरिस ने।
दिलावरी बताते हैं, ‘उस जमाने में फोर्ट में यह अकेली बिल्डिंग थी। चारों ओर से ओपन होने के कारण समुद्र का मनोरम नजारा सामने दिखता था और हवा खुलकर आती थी।’ हर बात में परिपूर्णता के हामी जमशेदजी ने शिल्पकार मॉरिस की मदद से इसे पूरी तबीयत से सजाया था। फर्नीचर और डेकोरेशन का बहुत-सा सामान यूरोप से लाया गया था। इसमें संजोई चीनी और जापानी कलाकृतियों की कई विशिष्टजनों ने अपने संस्मरणों में चर्चा की है। मुंबई और भारत की तस्वीर बदल देने वाले कई बड़े निर्णय उन्होंने इसी बिल्डिंग में रहते हुए किए।
टाटा पैलेस
कोई बैंक भी इतना शानदार हो सकता है, महज इसे जानने के लिए कोई फोर्ट के टाटा पैलेस को आकर देखे! लोग इसे डॉएच्च बैंक के मुख्यालय के नाम से ही जानते थे। डॉएच्च बैंक के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स चले जाने के बाद अब यह वैâथेड्रल एड जॉन कॉनन स्कूल के आई. बी. सेक्शन के हवाले है। कुछ वर्ष पहले रिस्टोरेशन के बाद जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे सर रतन टाटा के नियो क्लासिकल बरोक शैली में बने इस पैलेस का इंटीरियर ही नहीं, लाइटिंग और ब्रैंडिंग भी पूरी तरह बदल गई है। लैंडस्केप गार्डंस से युक्त पूर्ण आधुनिक यह कार्पोरेट बिल्डिंग एस्प्लेनेड हाउस से कुछ ही फर्लांग दूर होगी। रतन जमशेदजी के साथ पहले एस्प्लेनेड हाउस में ही रहते थे। पिता की मौत के साल भर बाद वे मरीन लाइंस की ब्राइटलैंड बिल्डिंग में रहने चले गए और टाटा पैलेस में १९१५ में रहने आए, जब इसका निर्माण पूर्ण हो चुका था। रतनजी के भाग्य में यहां ज्यादा रहना लिखा नहीं था। इलाज के लिए वे इंग्लैंड गए तो वापस लौटना हुआ ही नहीं, वहीं उनका देहांत हो गया।
टाटा पैलेस-जिसका निर्माण प्रâांसीसी कलाकार गैब्रियल मॉरिस ने १९०८ में किया-बाहर से जितना खूबसूरत है उतना ही अंदर से भी। चक्करदार सीढ़ियों, प्रशस्त पोर्टिको और हरे-भरे लॉन के साथ इसकी शान बढ़ाती हैं भव्य कांस्य मूर्तियां, महोगनी के कीमती फर्नीचर व फानूस और सुंदर कलाकृतियां। डॉएच्च बैंक के अधिग्रहण के बाद यह बदले हुए रूप में है। हजारीमल सोमानी मार्ग से निरंतर आने वाले शोर-गुल को रोकने के लिए अब यहां डबल विंडो हैं। संगमरमर के फर्श की जगह पीवीसी टाइलों ने ले ली है और विजली वायरिंग कंसील्ड हो गई है। टाटा घराने के रत्न जे. आर. डी. टाटा अल्टामाउंट रोड के ६०,००० वर्ग फुट क्षेत्र में पैâले जिस केयर्न हाउस में पत्नी थेल्मा के साथ ५० वर्ष से अधिक समय तक रहे औपनिवेशिक स्कॉटिश शैली का १५ कमरों का खूबसूरत बागीचे वाला बिल्कुल सादा सा बंगला है। इस बंगले को उन्होंने बाई अवाबाई एफ. पेटिट रिसुडुअरी इस्टेट ट्रस्ट से १,२२९ रुपए माहवार किराए पर लिया था। यह संपत्ति मूल रूप से उनके संबंधी सर दिनशा पेटिट परिवार की थी, जिसे उसने १८८८ में एक स्कॉट रॉबर्टसन से से ८८,००० रुपए में खरीदा था। कालांतर में पेटिट परिवार की एक बेटी बकुलबाई मेहता ने इसे शिक्षा संस्थान चलाने वाले एक शैक्षिक ट्रस्ट को सौंप दिया। आज यह ग्रेड-३ की विरासत इमारत है।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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