विमल मिश्र
ह्यूजेज रोड को पैडर रोड से जोड़ने वाला केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर देश का सबसे पहला फ्लाईओवर कहलाता है। दुखद संयोग ही कहेंगे कि जिन दिनों मुंबई का यह फ्लाईओवर अपनी हीरक जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है, उसके डिजाइनर वास्तुकार जाने-माने टाउन प्लानर शिरीष बी. पटेल अलविदा कहकर हमसे हमेशा-हमेशा के लिए जुदा हो गए। उन्हें नई मुंबई के निर्माता के बतौर भी याद किया जाता रहेगा।
हैंगिंग गार्डन के उतार, पैडर रोड, गवालिया टैंक-नेपियंसी रोड और माउंट प्लेजेंट रोड सहित जिन छह रास्तों पर दो छोटी पहाड़ियों के बीच मौजूद केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर देशभर के फ्लाईओवरों का पुरखा है। यह मुंबई के ६० से ज्यादा फ्लाईओवरों में ही सबसे पुराना नहीं, भारत का सबसे पहला फ्लाईओवर कहलाता है। दूसरे नंबर पर आता है मुंबई का ही प्रिंसेज स्ट्रीट-मरीन ड्रॉइव फ्लाईओवर-निर्विवाद देश का सबसे मशहूर फ्लाईओवर।
इस जगह के निवासी फली मास्टर को १४ अप्रैल, १९६५ का वह दिन आज भी याद है, जब समुद्र से उठी हवाओं के झकोरों में उड़ती जुल्फों के बीच धड़कते दिल के साथ फ्लाईओवर की कंक्रीट की शानदार चिकनी सतह पर उन्हें साइकिल सवारी की साध पूरी करने का पहली बार मौका मिला था। मुंबई के कुछ फ्लाईओवरों पर जब दोपहिया चलाना आज बैन है, केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर पर उन दिनों इठलाया करते थे स्कूटर, मोटरसाइकिल व साइकिल सवार और मटरगश्ती करने आए पैदल यात्री भी। कारें उन दिनों कम ही होती थीं। सिगनलों की जगह तैनात होते थे ट्रैफिक पुलिस के सफेद वर्दीधारी जवान। आज जैसी चमकदार स्ट्रीट लाइट्स भी तब कहां होती थीं! सड़कों पर जला करती थीं गैस की लाइटें। फ्लाईओवर से २५ साल पहले पचासा पूरा करने वाले अल्टामाउंट रोड निवासी बुजुर्ग दीपक सावंत बताते हैं, ‘शाम को महानगरपालिका का एक कर्मचारी नियम से इन लाइट्स को जलाने आता था।’
नेहरू जी के आग्रह की देन
केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू २५ मई, १९६३ को मुंबई आए हुए थे। ट्रैफिक पुलिस के डिप्टी कमिश्नर मधुसूदन कस्बेकर (बाद में मुंबई के कमिश्नर नियुक्त हुए) उन्हें एक प्रदर्शनी में घुमाते-घुमाते केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर के मॉडल के पास ले गए। ‘लागत?’ बताया गया ‘बीस लाख रुपए’। ‘मियाद?’ जवाब में मिली फीकी सी मुस्कान। जोर देकर पूछने पर कस्बेकर को बताना पड़ा कि यह फ्लाईओवर बजट की कटौती का शिकार हो गया है। नेहरू जी तत्काल महाराष्ट्र के तत्कालीन राजस्वमंत्री वी. पी. नाईक (बाद में मुख्यमंत्री बने) की ओर मुड़े और सवाल दाग दिया, ‘क्या आप इस युवा ऑफिसर की इच्छा के लिए बीस लाख रुपए नहीं निकाल सकते?’ लिहाजा, बजट फटाफट मंजूर हो गया। तत्कालीन बीएमसी कमिश्नर एस. ई. सुकथणकर, कांट्रैक्टर बी. जी. आकेरकर और मुंबई महानगरपालिका के एग्जिक्युटिव इंजीनियर एम. एस. नेरूरकर की लगन से डिजाइन-कम-टेंडर- मंगवाकर ४८ फुट चौड़े उस फ्लाईओवर के निर्माण में अप्रैल, १९६४ में हाथ लगाया गया, जो अप्रैल, १९६५ में पूरा हो गया। मुंबई के ७० से ज्यादा फ्लाईओवरों में सबसे प्रसिद्ध प्रिंसेज स्ट्रीट-मरीन ड्राइव फ्लाईओवर से पहले, जिसका काम भी १९६४ में ही शुरू हुआ था। देश के पहले फ्लाईओवर के लिहाज से केंप्स कॉर्नर का निर्माण टफ माना जाएगा। दरअसल, इसके निर्माण का पहला ही कदम गलत पड़ गया था, जब एक छोर पर चट्टानी नींव जितना सोचा था, उससे ज्यादा डालने की जरूरत पड़ गई। लिहाजा, शुरुआती डिजाइन सिरे से खारिज करनी पड़ गई, फिर तो बनने तक एक के बाद एक चुनौतियां आती ही गर्इं। इसकी लोड टेस्टिंग की जिम्मेदारी उठाई बॉम्बे आईआईटी ने। ३५० लोगों की रोजाना १८ घंटे की मेहनत आखिरकार, रंग लाई और १४ अप्रैल, १९६५ को मुंबई की शान में एक और इजाफा हो गया। फ्लाईओवर पर लागत आई १७.५ लाख रुपए।
अब यादें ही बचीं निर्माता की
जिस जगह केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर का निर्माण हुआ है, वह एक तरह से मुंबई का प्रवेशद्वार है। इसने अपना नाम केंप्स एंड कंपनी से पाया, जो यहीं एक कोने पर एक मंजिला मेडिकल स्टोर होता था। केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर के प्रिंसिपल आर्किटेक्ट थे शहरी नियोजन में देश के शिखर के शहरी योजनाकार शिरीष बी. पटेल, जिन्होंने मुंबई के शुरुआती विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नई मुंबई की परिकल्पना और नियोजन का प्रवर्तक भी उन्हें ही माना जाता है। शिरीष बी. पटेल का बीते शुक्रवार को ९२ वर्ष की आयु में निधन हो गया।
चुनौतियों भरा प्रोजेक्ट
यह देखते हुए कि केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर देश का पहला फ्लाईओवर था उसे बनाने में महज सात महीने लगना उस वक्त के लिए बहुत बड़ी बात थी। ‘६४ के बीच के महीनों की बात होगी, जब कुल जमा १७.५ लाख रुपए में इसका कांट्रैक्ट बी. जी. आकेरकर ने हासिल किया था। शिरीष बी. पटेल को-जो शिरीष पटेल एंड असोसिएट्स के चेयरमैन एमरीटस रहे-जब फ्लाईओवर का प्रिंसिपल आर्किटेक्ट चुना गया। उस वक्त लंदन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके मुंबई में काम का सिलसिला जमाए उन्हें चार साल ही हुए थे। कुछ वर्ष पहले शिरीष जी से जब इस पत्रकार की बातचीत हुई थी, तब भी छह इंजीनियरों के साथ इसके निर्माण में दिन में १८-१८ घंटे की मेहनत उन्हें उसी तरह याद थी, जैसे इसके निर्माण की एक-एक बात।
डिजाइन से लेकर निर्माण और लोड टेस्टिंग तक-फ्लाईओवर के निर्माण में शिरीष को कितनी ही परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। इसकी चुनौती पहले कदम से ही शुरू हो गई थी, जब उन्हें बताया गया कि मुख्य स्पैन के दोनों छोरों पर नीचे कठोर चट्टान है। लाचारी में उन्होंने डिजाइन बदले तो ट्रॉयल पिट से पता चलता है कि ऐसी कोई चट्टान नहीं है। यू टर्न, पार्विंâग, टॉयलेट, रैंप, जमीन के नीचे भविष्य की जरूरतों और बदलते मौसम के अनुसार सीवर, पानी की पाइपलाइनों के लिए पहले से इंतजाम रखना- और यह सब लागत और समय की सीमाओं के भीतर करना बहुत टेढ़ा काम था। कांट्रैक्टर से पटरी नहीं बैठने जैसी बाधाएं अलग थीं। २० फुट खुदाई करने पर एक पुलिस इंस्पेक्टर ने वो काम ये कहकर रुकवा दिया था कि बस, इसके आगे खतरा है। महीनों से संजोई डिजाइन को आखिरी में छोड़ना उस वक्त शिरीष की टीम को बिल्कुल ऐसा लगा, जैसे लाड से पाले अपने बच्चे को फेंक देना पड़े। डेडलाइन की टेंशन अलग थी। अक्टूबर आ गया था और प्रोजेक्ट का फाउंडेशन ड्राइंग ही नहीं बना था। इसे बनाने का वक्त ही कहां था! अगले दो महीने उन्हें १६-१६ घंटे काम करना पड़ा। तमाम बाधाओं के बावजूद यह काम उन्होंने बिल्कुल समय पर पूरा किया। वह भी लागत के भीतर और बगैर उसकी क्वॉलिटी से कोई समझौता किए। फ्लाईओवर बहुत अच्छी तरह डिजाइन किया और बहुत अच्छी तरह बना है, तभी ६० साल से टिका है। कुछ वर्ष पहले जरूर पुल के दो हिस्सों के बीच गैप पाए जाने से घबराहट पैâल गई थी। शिकायत मिलने पर ढांचागत ऑडिट किया गया, जिसमें फ्लाईओवर को पूरी तरह सुरक्षित घोषित कर दिया गया।
बीते ६० वर्षों में जैसे-जैसे इस पर उम्र की झुर्रियां चढ़ती गई हैं, केंप्स कॉर्नर फ्लाईओवर के मेंटिनेंस का खर्च भी बढ़ता जा रहा है। तय उम्र पार कर लेने के बाद इसका रिटायर होना तय है। इसकी जगह लेने की तैयारी कर रहा था, गिरगांव चौपाटी से हाजी अली जंक्शन तक ४.१ किलोमीटर लंबा प्रस्तावित पैडर रोड फ्लाईओवर। पर लता मंगेशकर सहित स्थानीय नागरिकों के भारी विरोध के बाद २०१६ में यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। इसकी जगह आ गई कोस्टल रोड।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)