मुख्यपृष्ठस्तंभशिलालेख: चंद्रमा की किरणों से रस ग्रहण करती हैं औषधियां!

शिलालेख: चंद्रमा की किरणों से रस ग्रहण करती हैं औषधियां!

चंद्र देव हिंदुस्थानी मनीषा की जिज्ञासा हैं। वे पृथ्वी के निवासियों का आकर्षण रहे हैं। संप्रति हिंदुस्थान की चंद्रमा पर पहुंचने की महत्वाकांक्षी योजना चर्चा में है। सारी दुनिया का ध्यान चंद्र देवता पर लगा हुआ है। हिंदुस्थानी अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक चंद्रयान की सफलता को लेकर पूरे मनोयोग से जुटे हैं। चंद्रयान की सफलता के बाद तमाम नए तथ्य प्रकाश में आएंगे। चंद्रमा का पहला चित्र आ गया है। चंद्रमा वैदिक काल से ही हिंदुस्थान का आकर्षण रहा है। लोकश्रुति के अनुसार चंद्रमा, माता पृथ्वी का भाई है। इसलिए हम सब का मामा है। प्रकृति सृष्टि के उदय के साथ ही चंद्रमा का अस्तित्व भी प्रकट हुआ। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त (१०.९०.१३) में कहा गया है कि विराट पुरुष के मन से चंद्रमा और आंखों से सूर्य प्रकट हुआ-चंद्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत:।’ चंद्रमा का संबंध मन से है। ऋग्वेद में चंद्रमा भी एक देवता हैं। वे अंतरिक्ष के स्थानीय देवता हैं। ऋग्वेद (१०.८५.१९) में कहते हैं, ‘ये चंद्र देवता नित्य उदित होते हैं और नवीनतम होते हैं। सूर्य देव प्रतिदिन नवीन रूप में प्रात:काल प्रकट होते हैं। वे देवों के निमित्त यज्ञ के हवि भाग की व्यवस्था करते हैं।’ इसी तरह चंद्र देव सबको आनंदित जीवन और दीर्घायु प्रदान करते हैं। भारतीय काव्य परंपरा में चंद्रमा सुंदरता बोधक हैं। कवियों ने चंद्रमा के सौंदर्य को सुंदरता का प्रतीक बताया है। हिंदुस्थानी साहित्य में भी चंद्र सौंदर्य भरा पूरा है।
वैदिक काल में चंद्रमा की उपासना की जाती थी। इस उपासना के बीज भारतीय देव शास्त्र से लेकर प्राचीन यूनान, रोमन, ईरानी और जर्मन में पाए जाते हैं। डॉ. गया चरण त्रिपाठी ने ‘वैदिक देवता उद्भव और विकास’ के पृष्ठ २७ में लिखा है, ‘ऋग्वेद में सूर्य के साथ द्वंद्व समास में इसका कई स्थानों पर उल्लेख है। ग्रीक देवशास्त्र में चंद्रमा को तीन चक्रों वाले रथ में आकाश में भ्रमण करते हुए बताया गया है।’ विष्णु पुराण में भी इसी तरह का उल्लेख है। वैदिक साहित्य में चंद्रमा औषधियों और सोम लता से संबंधित हैं। वे औषधियों के राजा हैं। रात्रि में औषधियां चंद्रमा की किरणों से रस ग्रहण करती हैं। सोम और चंद्रमा का संबंध बहुत प्रीतिपूर्ण है। वैदिक देवशास्त्र में चंद्रमा और सोम लगभग पर्यायवाची हो गए हैं। डॉ. त्रिपाठी ने बताया है, ‘आर्य जाति में सूर्य और चंद्रमा की विभिन्न लिंगों में कल्पना बहुत प्राचीन है। जर्मन, ऐंग्लोसेक्शन और लिथुआनियन भाषाओं में सूर्यवाची शब्द स्त्रीलिंग में है और चंद्रमा के शब्द पुल्लिंग में है। लेकिन ग्रीक और लैटिन भाषाओं में सूर्यवाची सभी शब्द पुल्लिंग हैं और चंद्रमा के वाची स्त्रीलिंग। दोनों की भाई और बहन या पति के रूप में कल्पना की गई है। एक लैटिन गीत में कहा गया है कि, ‘एक बार चंद्रमा और सूर्य ने परस्पर विवाह किया। पत्नी सूर्य प्रात:काल उठ जाती थी। लेकिन पति (चंद्रमा) देर से उठता था। दोनों में लड़ाई हो गई। पति (चंद्रमा) उषा काल के तारे से प्रेम करने लगा। इससे शक्तिशाली पैकुण्न नाराज हुआ। उसने पति (चंद्रमा) पर खड़ग से प्रहार किया जिससे वह खंडित हो गया।’ इसी तरह की एक रोचक बात यूरोपीय लोककथा में कही गई है। इस कथा में सूर्य आकाश की पुत्री है और चंद्रमा पुत्र। पिता आकाश ने पुत्र चंद्रमा को दिन में तथा पुत्री सूर्य को रात्रि में प्रकाश करने के लिए नियुक्त किया। पुत्री को रात्रि में डर लगता था। इसलिए उसने दोनों की ड्यूटी बदल दी। दूसरे दिन प्रात: आकाश पुत्री पूरब से उदित हुई। पृथ्वी के लोग उसकी ओर एक टक देख रहे थे। हिंदुस्थान की प्राचीन लोककथाओं में सूर्य और चंद्रमा राजा रानी हैं।
चंद्रमा हिंदुस्थानी सौंदर्य कल्पनालोक का महानायक रहा है। चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। उसका अपना प्रकाश नहीं होता। एक तरह से चंद्रमा ब्रह्माण्ड की पहली सौर्य ऊर्जा की लालटेन है। चंद्रमा घटता बढ़ता है। चंद्र प्रकाश घटते-घटते पंद्रहवें दिन अमावस्या हो जाता है। इसी तरह बढ़ते बढ़ते पंद्रहवें दिन पूर्णिमा बनता है। मास और मुहूर्त का विभाजन चंद्रमा के कारण होता है। मुहूर्त का निर्धारण चंद्र नक्षत्र के निर्वचन से होता है। मुहूर्त समय का अति छोटा हिस्सा होता है और सामान्य जीवन को प्रभावित करता है। महाभारतकार ने सुंदर श्लोक में कहा है, ‘मुहूर्तं ज्वलितं श्रेय:, न तु धूमायितं चिरं।’ मुहूर्त भर पूरी शक्ति के साथ जलना और प्रकाश देना श्रेयस्कर है। लेकिन दीर्घ काल तक धुंआ देते जलना बेकार है। अल्पकाल के लोकमंगलकारी कार्य श्रेष्ठ होते हैं। विश्व इतिहास के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर की प्रमुख रचना ‘वृहत संहिता’ है। इसकी व्याख्या डॉ. सुरेश चंद्र मिश्र ने की है। रंजन पब्लिकेशन से प्रकाशित इस पुस्तक के पृष्ठ ६८ में वराहमिहिर ने कहा है, ‘चंद्रमा सूर्य के नीचे स्थित है। इस कारण उसके जिस भाग पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं वह भाग चमकता है। चंद्रमा का प्रकाश वस्तुत: सूर्य का ही प्रकाश है। जिस भाग पर सूर्य की किरणें नहीं पड़ती वह भाग उसकी स्वयं की छाया के कारण काला दिखाई पड़ता है। वराह मिहिर ने चंद्रमा को जलीय ग्रह बताया है। सूर्य की किरणें चंद्रमा पर पड़ती हैं तो रात्रि के अंधकार का नाश करती हैं। अमावस्या के अंत में सूर्य व चंद्रमा का स्पष्ट मान होने पर चंद्रमा सूर्य के ठीक नीचे होता है। तब पृथ्वी की ओर वाला चंद्रभाग अंधकार में रहने से पृथ्वीवासियों को नहीं दिखाई पड़ता। ज्योतिर्विज्ञानियों के अनुसार चंद्रमा एक राशि पर सवा दो दिन गतिमान रहते हैं। आधुनिक काल की बात दीगर है। वैदिक काल से लेकर मगध, वराह मिहिर, आर्यभट्ट, ब्रह्म गुप्त, भास्कराचार्य, कमलाकर भट्ट व सुधाकर द्विवेदी के काल से गुजरते हुए चंद्रमा और उसकी राशियों का निर्वचन जारी है। यद्यपि चंद्रमा स्वयं देवता हैं, लेकिन पूरे एशिया में प्रचलित शिव रूद्र के मस्तक पर चंद्रमा दिखाई पड़ता है। शिव और चंद्रमा का संबंध बहुत प्राचीन है। चंद्रयान पर इसरो के अध्ययन से चंद्रमा के संबंध में नए तथ्य प्राप्त होने की संभावनाएं हैं। संभव है कि चंद्र अभियान के परिणाम प्राचीन हिंदुस्थानी मान्यताओं की कमोबेश पुष्टि करने वाले हों। संभव यह भी है कि नितांत नए तथ्यों का उदघाटन हो। एक अध्ययन प्राचीन है। तब साधन नहीं थे। वैज्ञानिक उपकरण नहीं थे। धरती से परम व्योम तक की जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा और जिजीवीषा थी। ताजा अध्ययन नितांत नवीन और आधुनिक है। इसीलिए जिज्ञासुओं व जानकारों में इस अभियान के परिणामों की अधीर प्रतीक्षा है।

हृदयनारायण दीक्षित, लखनऊ
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के
पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार हैं।)

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