एम. एम. सिंह
एलजीबीटीक्यूआइए (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्विर, इंटरसेक्स एंड असेक्सुअल) समुदाय को संयुक्त बैंक खाते खोलने की अनुमति देने की सलाह उनके दैनिक आय की व्यवस्था करने की दिशा में एक छोटा कदम है। समुदाय को उत्तराधिकार, विरासत, गुजारा भत्ता और रखरखाव से दूर रखा गया है। अक्टूबर २०२३ में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को संवैधानिक अधिकार देने से मना कर दिया, बावजूद कोर्ट का पैâसला काफी मायने रखता है।
हाल ही में वित्त मंत्रालय की एक सलाह ने समलैंगिक जोड़ों के लिए दैनिक जीवन की कुछ कठिनाइयों को कम करने की दिशा में पहला कदम उठाया है, जो कानूनी रूप से विवाह नहीं कर सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के परिपत्र के साथ स्पष्टीकरण ने सभी वाणिज्यिक बैंकों को यह स्पष्ट कर दिया कि एलजीबीटीक्यूआइए समुदाय के लोगों और समलैंगिक संबंधों में रहनेवालों को संयुक्त बैंक खाते खोलने और अपने समलैंगिक भागीदारों को उनके लाभार्थियों के रूप में नामित करने से नहीं रोका जा सकता है।
दरअसल, यह छोटा-सा कदम है, क्योंकि उनकी जिंदगी में तकलीफों का कोई अंत नहीं है। इस समुदाय के लोग भले ही अपने पार्टनर के साथ कितने ही लंबे समय से रहते हैं, लेकिन जब उनमें से कोई अस्पताल में होता है या उसे कोई मेडिकल पैâसला लेना होता है, तो उनके पार्टनर को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता। क्योंकि जिंदगी और मौत से जुड़े ऐसे पैâसलों के लिए अस्पताल खून के रिश्तेदारों या कानूनी जीवनसाथी की मांग करते हैं।
इस साल की शुरुआत में कोच्चि के जेबिन नामक एक व्यक्ति को केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी थी कि उसे अपने लिव इन पार्टनर मनु के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाए, जिसकी गिरने से मृत्यु हो गई थी। मनु के परिवार ने उसका शव लेने और उसके मेडिकल बिल का भुगतान करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें उनका रिश्ता मंजूर नहीं था। कोर्ट ने पैâसला सुनाया कि जेबिन अंतिम संस्कार में उसे श्रद्धांजलि दे सकता है, बशर्ते मनु के परिवार को कोई आपत्ति न हो।
ऐसे गंभीर मामलों से परे, दैनिक जीवन की सामान्य दिनचर्या समलैंगिक जोड़ों के लिए कठिन हो सकती है। वे एक परिवार के रूप में राशन कार्ड प्राप्त नहीं कर सकते हैं, आश्रित जीवनसाथी के रूप में ग्रेच्युटी, भविष्य निधि लाभ या बीमा लाभ के भुगतान के लिए नामांकित नहीं हो सकते हैं या जीवनसाथी की ओर से किए गए भुगतानों के लिए कर लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उत्तराधिकार, विरासत, गुजारा भत्ता और रखरखाव के कानून समलैंगिक जोड़ों को ध्यान में नहीं रखते हैं। उनके संचार को विवाहित जोड़ों के लिए आरक्षित साक्ष्य विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं किया जाता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें अदालत में एक-दूसरे के खिलाफ सबूत देने के लिए मजबूर किया जा सकता है। वे एक-दूसरे को अंग दान नहीं कर सकते। वे एक साथ बच्चे को गोद नहीं ले सकते।
समलैंगिक विवाह के अधिकार के लिए यह समुदाय अदालत इसलिए गया था, क्योंकि उनका मानना है कि इस देश में विवाह ही एक जोड़े को कानूनी अधिकारों का एक समूह प्रदान करता है, जो सामाजिक स्वीकृति से कहीं अधिक है।
हालांकि, अक्टूबर २०२३ के अपने पैâसले में, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा कि न्यायिक समीक्षा को विधायी क्षेत्र में आनेवाले मामलों से दूर रहना चाहिए। हालांकि, इसने यह भी कहा कि संविधान समलैंगिक जोड़ों सहित सभी व्यक्तियों की संघ में प्रवेश करने की स्वतंत्रता की रक्षा करता है और कहा कि ‘संघ से मिलनेवाले अधिकारों के गुलदस्ते को मान्यता देने में राज्य की विफलता का परिणाम समलैंगिक जोड़ों पर असमान प्रभाव पड़ेगा, जो वर्तमान कानूनी व्यवस्था के तहत विवाह नहीं कर सकते हैं’।
कोर्ट ने ऐसे अधिकारों के दायरे को परिभाषित करने के लिए वैâबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता का भी उल्लेख किया। मई में इसकी पहली बैठक हुई तथा जुलाई में हितधारकों के साथ परामर्श शुरू हुआ। एलजीबीटीक्यूआइए समुदाय के सदस्यों को समिति को सीधे ई-मेल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। संयुक्त बैंक खातों के अलावा, न्यायालय ने निर्देश दिया कि पैनल को इस बात पर विचार करना चाहिए कि राशन कार्ड के उद्देश्य से समलैंगिक संबंध में भागीदारों को एक ही परिवार का हिस्सा वैâसे माना जाए। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि चिकित्सा व्यवसायियों का कर्तव्य है कि वे परिवार या निकटतम रिश्तेदार या निकटतम मित्र से परामर्श करके और उनके मित्रों को ‘परिवार’ का हिस्सा मानने के लिए विचार करें। कोर्ट ने पैनल को जेल मुलाकात के अधिकार और मृतक साथी के शरीर तक पहुंचने और अंतिम संस्कार, उत्तराधिकार अधिकार, वित्तीय और भौतिक लाभ तथा ग्रेच्युटी जैसे रोजगार से मिलनेवाले अधिकारों पर विचार करने का निर्देश दिया।
बीमा विनियामक, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभारी राज्य विभागों, चिकित्सा बोर्ड के दिशा-निर्देशों और आयकर विभाग की ओर से इसी तरह की सलाह समलैंगिक जोड़ों को कुछ लाभ सुलभ कराने के लिए पर्याप्त हो सकती है। हालांकि, परिवार और विरासत कानूनों, किशोर न्याय अधिनियम और आयकर अधिनियम में संशोधनों को संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित करने की आवश्यकता हो सकती है, ताकि अधिक गहरे बदलाव किए जा सकें। एक-एक करके सभी अधिकारों को हासिल करना इस समुदाय के लिए फिलहाल एक लंबी लड़ाई है।